'बिहार में हुई SIR की प्रक्रिया वोटर-फ्रेंडली...', सुप्रीम कोर्ट बोला- 11 दस्तावेज 7 से बेहतर

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग पर नागरिकता प्रमाण के मामले में रुख बदलने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि नागरिकता प्रमाण पर चुनाव आयोग पूरी तरह से पलट गया है. कोई व्यक्ति तभी आपत्ति कर सकता है जब उसे लगे कि कोई नागरिक नहीं है, फिर ERO नोटिस जारी करेगा.

Advertisement
SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई (File Photo: PTI) SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई (File Photo: PTI)

अनीषा माथुर

  • नई दिल्ली,
  • 13 अगस्त 2025,
  • अपडेटेड 7:07 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिहार में मतदाता सूची की स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) प्रक्रिया को मतदाता-हितैषी बताया. अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया में पहचान के लिए मान्य दस्तावेजों की संख्या 7 से बढ़ाकर 11 कर दी गई है, जिससे मतदाताओं को अधिक विकल्प मिलते हैं. कोर्ट ने आधार से जुड़ी आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि दस्तावेजों का यह विस्तार किसी को बाहर करने के बजाय प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाता है.

Advertisement

सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि अगर कोई गणना फॉर्म कानूनी फॉर्म को समाहित करता है, तो क्या यह नियमों का उल्लंघन होगा या फिर यह अधिक व्यापक अनुपालन माना जाएगा.

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने चुनाव आयोग पर नागरिकता प्रमाण के मामले में रुख बदलने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि नागरिकता प्रमाण पर चुनाव आयोग पूरी तरह से पलट गया है. कोई व्यक्ति तभी आपत्ति कर सकता है जब उसे लगे कि कोई नागरिक नहीं है, फिर ERO नोटिस जारी करेगा. ऐसे में दो महीने में सभी बड़े निर्णय कैसे होंगे? दिसंबर से SIR शुरू करें और एक साल में पूरा करें, कोई विरोध नहीं करेगा.

सिंघवी की दलील

सिंघवी ने कहा कि फॉर्म-6 के तहत आधार कार्ड अब भी नाम जोड़ने के लिए मान्य दस्तावेज़ है. उन्होंने कहा कि पहले यह मान लिया जाता था कि सबको बाहर रखा जाएगा, जब तक वे अपना हक साबित न कर दें, लेकिन अब यह सोच बदल दी गई है.उन्होंने चेतावनी दी कि 2003 से 2025 के बीच जिनका नाम जोड़ा गया है, उन्हें भी बाहर किया जा सकता है, अगर वे सबूत नहीं दे पाए.

SIR प्रक्रिया के समय पर उठाए सवाल

Advertisement

सिंघवी ने इस प्रक्रिया के समय पर सवाल उठाते हुए कहा कि SIR 2003 के संसदीय चुनाव से सिर्फ एक साल पहले हुआ था. फिर इसे बिहार में जुलाई में क्यों शुरू किया जा रहा है? अरुणाचल प्रदेश से क्यों नहीं, जहां चुनाव 2026 में हैं? या लक्षद्वीप से क्यों नहीं, जहां चुनाव 2028 में हैं?

क्या है इस प्रक्रिया का मकसद?

बता दें कि SIR 2003 के बाद मतदाता सूची का पहला बड़ा पुनरीक्षण है. इसका मकसद बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को सही करना है. चुनाव आयोग ने बिहार से शुरुआत कर, गैर-नागरिकों समेत अपात्र मतदाताओं को हटाने की प्रक्रिया शुरू की है. इस प्रक्रिया के तहत 2003 की सूची में शामिल न रहे मतदाताओं को जन्मस्थान का प्रमाण और नागरिकता का स्व-घोषणा पत्र जमा करना होगा. आलोचकों का कहना है कि फॉर्म-6 में नागरिकता प्रमाण की अनिवार्यता नहीं है, जिससे गैर-नागरिकों के शामिल होने की आशंका है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement