विचाराधीन कैदियों की रिहाई के मामले में UP सरकार को फटकार, SC ने मांगा 853 का ब्यौरा

सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीन कैदियों की रिहाई में देरी को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नसीहत भी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से ऐसे 853 कैदियों का ब्यौरा देने के लिए कहा है जो 10 साल से जेल में बंद हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार को दो हफ्ते का समय दिया है.

Advertisement
सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2022,
  • अपडेटेड 3:20 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार, इलाहाबाद हाईकोर्ट को लगाई फटकार
  • सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से दो हफ्ते में मांगा 853 कैदियों का ब्यौरा

उत्तर प्रदेश की जेल में बंद विचाराधीन कैदियों की रिहाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले में सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के साथ ही इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से लगातार समय मांगे जाने पर भी नाराजगी जताई.

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद हाईकोर्ट को इस बात के लिए फटकार लगाई कि जेल में बंद विचाराधीन कैदियों को बिना देरी के क्यों नहीं रिहा किया गया. सुप्रीम कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार से जेल में बंद उन 853 कैदियों का ब्यौरा देने के लिए भी कहा है जो पिछले 10 साल से प्रदेश की जेल में बंद हैं.

Advertisement

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नसीहत भी दी है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नसीहत देते  हुए कहा कि यदि आप इसे संभालने में सक्षम नहीं हैं तो हम ये बोझ उठाएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि हम इसे संभाल लेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से ये भी कहा कि आपने 853 मामलों का विश्लेषण नहीं किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के रवैये पर भी नाराजगी जताई और कहा कि आप काम करने की बजाय अदालत से समय मांगते जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से ये भी कहा कि 10 साल या उससे अधिक समय से जेल में बंद 853 कैदियों का ब्यौरा दें. सर्वोच्च न्यायालय ने 853 कैदियों का ब्यौरा देने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को दो हफ्ते का समय दिया है.

Advertisement

गौरतलब है कि अभी पिछले हफ्ते ही चीफ जस्टिस एनवी रमना ने देश में विचाराधीन कैदियों की बड़ी संख्या को लेकर चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था कि इससे आपराधिक न्याय प्रणाली प्रभावित हो रही है. चीफ जस्टिस रमना ने उस प्रक्रिया पर सवाल उठाने को जरूरी बताया था जिसके तहत लोगों को बगैर मुकदमा लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement