'जो होना था हो गया, उसने सजा भुगती...', सुप्रीम कोर्ट ने नीतीश कटारा हत्याकांड के दोषी की फरलो मंजूर की

पीड़ित पक्ष की ओर से फरलो का विरोध किया गया, जिस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि फरलो, रिमिशन या ज़मानत जैसे मामलों में शिकायतकर्ता की भूमिका सीमित होती है. पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, "जो होना था, हो गया और उसने उस घटना के लिए सजा भी भुगती है. अब वह रिहाई की मांग कर रहा है, सरकार कह रही है रिहाई का सवाल ही नहीं. ऐसे में शिकायतकर्ता की भूमिका कहां से आती है?"

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

सृष्टि ओझा

  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2025,
  • अपडेटेड 10:33 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने नीतिश कटारा हत्याकांड के दोषी सुखदेव यादव उर्फ पहलवान को तीन महीने की फरलो (अस्थायी रिहाई) पर रिहा करने का आदेश दिया है. बुधवार को यह अंतरिम राहत तब दी गई जब अदालत को बताया गया कि पहलवान ने लगातार 20 वर्षों की सजा पूरी कर ली है और अब रिहाई का हकदार है.

हालांकि, पीड़ित पक्ष की ओर से फरलो का विरोध किया गया, जिस पर अदालत ने स्पष्ट किया कि फरलो, रिमिशन या ज़मानत जैसे मामलों में शिकायतकर्ता की भूमिका सीमित होती है. पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा, "जो होना था, हो गया और उसने उस घटना के लिए सजा भी भुगती है. अब वह रिहाई की मांग कर रहा है, सरकार कह रही है रिहाई का सवाल ही नहीं. ऐसे में शिकायतकर्ता की भूमिका कहां से आती है?"

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अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस मामले की नृशंसता (gruesomeness) पर विचार नहीं कर रही, बल्कि सिर्फ याचिकाकर्ता द्वारा अब तक काटी गई सजा और व्यवहार के आधार पर निर्णय ले रही है.

याचिका में बताया गया कि ट्रायल कोर्ट ने सुखदेव यादव को IPC की धारा 302 (हत्या) समेत अन्य धाराओं में दोषी ठहराया था. बाद में, उसकी सजा बढ़ाकर 20 साल की वास्तविक कैद कर दी गई, जिसमें रिमिशन (सजा में कटौती) शामिल नहीं था.

सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कोर्ट फरलो पर आदेश दे सकता है, लेकिन इसके साथ शिकायतकर्ता की सुरक्षा का भी ध्यान रखा जाए.

वहीं, शिकायतकर्ता की वकील ने विरोध जताते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का आचरण अब तक आपत्तिजनक रहा है और वह राहत का पात्र नहीं है. उन्होंने हाई कोर्ट के फरवरी 2025 के उस आदेश का हवाला भी दिया जिसमें न्यायाधीश ने खुद को सुनवाई से अलग कर लिया था, यह कहते हुए कि कोर्ट को प्रभावित करने की कोशिशें हुईं.

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अंत में, सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने और 20 वर्षों की निरंतर सजा को ध्यान में रखते हुए कहा कि फरलो पर रिहाई उचित है, बशर्ते कड़ी शर्तें लगाई जाएँ जिससे इस छूट का दुरुपयोग न हो.

अदालत ने आदेश दिया कि याचिकाकर्ता को 7 दिनों के भीतर ट्रायल कोर्ट में पेश किया जाए, और ट्रायल कोर्ट उचित शर्तों के साथ उसे फरलो पर रिहा करे, जिसमें शिकायतकर्ता की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जाए. मुख्य मामला अब 29 जुलाई को नियमित पीठ के सामने सुना जाएगा.

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