'हम सिसकियां सुनने के लिए ही बैठे...' सुप्रीम कोर्ट ने बिजली चोरी के केस में 18 साल की सजा काट रहे शख्स को किया रिहा

कैद की सजा भुगत रहा याचिकाकर्ता इकराम बिजली चोरी के अलग-अलग 9 मामलों में दोषी पाया गया था. ट्रायल कोर्ट ने सभी मामलों में इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट की धारा 136 और आईपीसी की धारा 411 के तहत अलग-अलग दो-दो साल कैद और हजार-हजार रुपए नकद जुर्माने की सजा सुनाई. इन 9 अलग-अलग मामलों में बाकी अभियुक्त तो अन्य थे. सिर्फ इकराम सभी में कॉमन था.

Advertisement
सांकेतिक तस्वीर. सांकेतिक तस्वीर.

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 3:43 PM IST

उत्तर प्रदेश में बिजली चोरी के 9 केसों में दो-दो साल कैद यानी कुल 18 साल कैद और जुर्माना की सजा पाए व्यक्ति को सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए बरी कर दिया है. कोर्ट ने अपने इस आदेश के पीछे निजी स्वतंत्रता और बुनियादी अधिकारों की संरक्षा की अपनी भूमिका का भी हवाला दिया है. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणियां भी की हैं. कोर्ट ने कहा कि हम यहां ऐसे लोगों की सिसकियां सुनने के लिए ही बैठे हैं.

Advertisement

कैद की सजा भुगत रहा याचिकाकर्ता इकराम बिजली चोरी के अलग-अलग 9 मामलों में दोषी पाया गया था. ट्रायल कोर्ट ने सभी मामलों में इलेक्ट्रिसिटी ऐक्ट की धारा 136 और आईपीसी की धारा 411 के तहत अलग-अलग दो-दो साल कैद और हजार-हजार रुपए नकद जुर्माने की सजा सुनाई. इन 9 अलग-अलग मामलों में बाकी अभियुक्त तो अन्य थे. सिर्फ इकराम सभी में कॉमन था. सभी अभियुक्तों के साथ उसे भी सभी 9 केसों में दो दो साल सजा हुई. क्योंकि उसने भी अपना अपराध कोर्ट के सामने कबूल कर लिया था. कोर्ट ने भी इसके बाद उसकी हिरासत की अवधि को सजा में ही एडजस्ट करते हुए आदेश में लिख दिया था कि सभी मुकदमों की सजा एक के बाद एक चलेंगी. यानी 9 मुकदमों के लिए 18 साल सजा.

'...तो नागरिकों की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी'

Advertisement

बिजली चोरी के जुर्म में पिछले कई सालों से जेल में बंद एक शख्स को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने रिहा करने का आदेश दिया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने आदेश पारित करते हुए कहा कि वैसे तो हमारे सामने आया कोई भी मामला छोटा-बड़ा नहीं होता. लेकिन अगर हम निजी स्वतंत्रता से संबंधित ऐसे मामलों में कुछ नहीं करेंगे तो हमारा यहां बैठने का मतलब क्या रह जाता है. हम यहां ऐसे ही लोगों की सिसकियां सुनने के लिए हैं, इसीलिए तो हम रातों को जागते हैं. अगर हम उनकी सुरक्षा नहीं करेंगे तो नागरिकों की स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी. स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार तो किसी भी नागरिक का अभिन्न और अकाट्य अधिकार है. इसकी सुरक्षा सुप्रीम कोर्ट की पूरी जिम्मेदारी है. न कम न ज्यादा!

हाईकोर्ट से भी नहीं मिली थी राहत

2015 में सुनाई गई सजा के बाद अब तक इकराम सात साल सलाखों के पीछे गुजार चुका है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत का फैसला बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का फैसला दरकिनार करते हुए दोषी को रिहा करने का आदेश दिया.

 

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement