सुप्रीम कोर्ट ने लगभग 37 साल पुराने एक मामले में रेलवे के ट्रैवलिंग टिकट एग्जामिनर (टीटीई) को बरी कर दिया है. अदालत ने कहा कि उनके खिलाफ रिश्वत मांगने के आरोप पुख्ता सबूतों से साबित नहीं हो सके. कोर्ट ने मृतक कर्मचारी के परिवार को तीन महीने के भीतर सभी बकाया वेतन और पेंशन लाभ देने का आदेश दिया है.
यह मामला 31 मई 1988 का है, जब रेलवे विजिलेंस टीम ने अचानक जांच की थी. उस समय नागपुर के सेंट्रल रेलवे में तैनात टीटीई पर आरोप था कि उन्होंने तीन यात्रियों से बर्थ देने के बदले 50 रुपये की रिश्वत मांगी. जांच में बताया गया कि उनके पास 1254 रुपये की अतिरिक्त नकदी मिली और ड्यूटी पास में भी गड़बड़ी की गई थी.
रेलवे के ट्रैवलिंग टिकट एग्जामिनर बरी
विभागीय जांच के बाद 1989 में आरोप तय किए गए और 1996 में अनुशासनिक प्राधिकारी ने उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया. बाद में कर्मचारी ने यह आदेश केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में चुनौती दी. 2002 में CAT ने बर्खास्तगी रद्द कर पुनर्नियुक्ति और सभी लाभ देने का आदेश दिया.
रिश्वत मांगने के आरोप साबित नहीं हो सके
लेकिन 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने CAT के आदेश को पलट दिया. इस पर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र की पीठ ने कहा कि जांच रिपोर्ट में गंभीर त्रुटियां थीं और दो यात्रियों ने भी रिश्वत के आरोप का समर्थन नहीं किया था. कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी अब नहीं रहे, लेकिन उनके परिवार को न्याय मिलना चाहिए.
सृष्टि ओझा