मनी लॉन्ड्रिंग केस: IAS अनिल पवार ने अपनी गिरफ्तारी को बताया 'अवैध', हाईकोर्ट से रिहाई की मांग

याचिका में दावा किया गया है कि ईडी द्वारा की गई याचिकाकर्ता की तलाशी पूरी तरह से गैर-कानूनी, अवैध, मनमानी और असंवैधानिक थी. इसी आधार पर पूरी कार्यवाही को रद्द करने और रद्द करने की मांग की गई है.

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आईएएस अनिल पवार ने गिरफ्तारी को बताया अवैध (Photo- ITG) आईएएस अनिल पवार ने गिरफ्तारी को बताया अवैध (Photo- ITG)

विद्या

  • मुंबई,
  • 18 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:04 PM IST

बॉम्बे हाईकोर्ट ने निलंबित आईएएस अधिकारी अनिल पवार की याचिका पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) को नोटिस जारी किया है. पवार को मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपों में पिछले महीने गिरफ्तार किया गया था. अपनी याचिका में उन्होंने अपनी गिरफ्तारी को "अवैध और गैर-कानूनी" घोषित करने की मांग की है और तत्काल रिहाई की गुहार लगाई है.

पवार ने अपने वकील उज्ज्वल चव्हाण के माध्यम से दायर याचिका में दावा किया है कि ईडी द्वारा उनकी गिरफ्तारी और उनके खिलाफ शुरू की गई पूरी कार्यवाही मनमानी और असंवैधानिक है. याचिका में कहा गया है कि उनके खिलाफ कोई भी प्राथमिकी (FIR) दर्ज नहीं है, इसलिए उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला नहीं बनता.

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ईडी ने पवार पर वापी-विरार नगर निगम के कमिश्नर रहते हुए भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं. ईडी ने दावा किया है कि मई में नगर नियोजन के उप निदेशक वाई.एस. रेड्डी के ठिकाने पर छापेमारी के दौरान ₹ 8.6 करोड़ की बेहिसाब नकदी और ₹ 23.2 करोड़ के आभूषण जब्त किए गए थे. इसके अलावा, ईडी ने पवार के रिश्तेदारों के पास से भी ₹ 1.3 करोड़ नकद और संपत्ति के दस्तावेज मिलने का दावा किया था.

यह भी पढ़ें: बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा आरक्षण पर दायर जनहित याचिका खारिज की, कहा- ऐसे मामलों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश न करें

पवार की याचिका में पलटवार

पवार ने अपनी याचिका में ईडी के आरोपों का खंडन किया है. उन्होंने दावा किया कि नगर निगम में 41 अवैध इमारतों के निर्माण के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जबकि उन्होंने इन निर्माणों को कभी मंजूरी नहीं दी थी. उन्होंने कहा कि वह 2022 में नगर निगम में शामिल हुए, जबकि अवैध निर्माण 15 साल पहले ही शुरू हो गए थे.

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याचिका में दावा किया गया है कि ईडी मामले के लिए निर्धारित अपराध खरीदारों के खिलाफ बिल्डरों द्वारा दर्ज धोखाधड़ी और जालसाजी की 4 एफआईआर हैं. याचिका में कहा गया है कि 4 एफआईआर में कुल 43 आरोपी बिल्डरों ने 2008-2010 के दौरान 3500 परिवारों को 100 से 500 करोड़ रुपये में 41 इमारतें बनाकर बेचीं. ईडी का दावा है कि यह अपराध की आय (पीओसी) का प्रारंभिक बिंदु है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि ईडी के पास मनी लॉन्ड्रिंग के लिए कोई ठोस सबूत नहीं है. इसमें कहा गया है कि ईडी के पास बैंक स्टेटमेंट, खाता बही या किसी भी गवाह का बयान नहीं है जो यह साबित कर सके कि उन्हें किसी अपराध से प्राप्त राशि मिली है. इस मामले पर अब अगली सुनवाई 30 सितंबर को होगी.

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