मसूरी में हजारों फॉरेस्ट बाउंड्री पिलर्स गायब होने पर हाईकोर्ट सख्त... केंद्र और उत्तराखंड सरकार को नोटिस जारी

हाईकोर्ट ने CBI, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) और उत्तराखंड राज्य सरकार/वन विभाग को नोटिस जारी किए हैं. यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया.

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उत्तराखंड हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि मसूरी में वन सीमा स्तंभों का गायब होना बेहद गंभीर विषय है. (Photo- Representational) उत्तराखंड हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि मसूरी में वन सीमा स्तंभों का गायब होना बेहद गंभीर विषय है. (Photo- Representational)

लीला सिंह बिष्ट

  • नैनीताल,
  • 24 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:25 PM IST

हिमालयी क्षेत्र की पारिस्थितिक सुरक्षा से जुड़े एक गंभीर मामले में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने मसूरी में वन भूमि पर हो रहे कथित अवैध अतिक्रमण को लेकर सख्त रुख अपनाया है. मसूरी वन प्रभाग से 7,000 से अधिक वन सीमा स्तंभों (फॉरेस्ट बाउंड्री पिलर्स) के रहस्यमय ढंग से गायब होने पर हाईकोर्ट ने CBI, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) और उत्तराखंड राज्य सरकार/वन विभाग को नोटिस जारी किए हैं.

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यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता गौरव कुमार बंसल ने अदालत को बताया कि वन सीमाओं के निर्धारण के लिए लगाए गए ये स्तंभ जानबूझकर हटाए गए हैं, जिससे मसूरी जैसे संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण, अवैध निर्माण और पर्यावरणीय नुकसान का रास्ता खुल गया है.

याचिका में दावा किया गया कि यह महज लापरवाही नहीं, बल्कि भ्रष्ट वन अधिकारियों, प्रभावशाली राजनीतिक लोगों और भूमि माफियाओं के बीच कथित मिलीभगत का नतीजा है. अधिवक्ता बंसल ने वन विभाग के आंतरिक दस्तावेजों का हवाला देते हुए बताया कि आधिकारिक तौर पर 7,375 वन सीमा स्तंभों के लापता होने की बात स्वीकार की गई है. इनमें से अधिकांश स्तंभ मसूरी और रायपुर रेंज जैसे व्यावसायिक रूप से महत्वपूर्ण इलाकों से गायब हुए हैं.

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याचिका के अनुसार, वन सीमाओं के खत्म होने से न केवल बड़े पैमाने पर वन क्षरण हुआ है, बल्कि भूस्खलन का खतरा भी बढ़ा है. इसके चलते हाल के महीनों में क्षेत्र में बाढ़, सड़कों के टूटने और संपर्क मार्गों के बाधित होने जैसी गंभीर घटनाएं सामने आई हैं.

अदालत को यह भी बताया गया कि वन विभाग की वर्किंग प्लान शाखा ने उच्चस्तरीय जांच की सिफारिश की थी, लेकिन राज्य सरकार ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. इसके बजाय एक कनिष्ठ अधिकारी के जरिए औपचारिक पुनः परीक्षण कराने का प्रयास किया गया, जिसे याचिकाकर्ता ने प्रभावशाली लोगों को बचाने की कोशिश बताया.

मामले की गंभीरता को देखते हुए हाईकोर्ट ने CBI से संभावित आपराधिक साजिश और अवैध संपत्ति अर्जन की जांच पर जवाब मांगा है. वहीं, MoEF&CC से वन संरक्षण कानून के तहत अपनी भूमिका स्पष्ट करने को कहा गया है. अदालत ने टिप्पणी की कि मसूरी में वन सीमा स्तंभों का गायब होना बेहद गंभीर विषय है, जिस पर केंद्र और राज्य दोनों को जवाब देना होगा.

याचिका में वन भूमि के पुनः सीमांकन और डिजिटलीकरण, वन भूमि को राजस्व विभाग से वन विभाग को सौंपने और एक समग्र पारिस्थितिक पुनर्स्थापन योजना तैयार करने की भी मांग की गई है.

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