पंचायत आरक्षण का प्रारूप तय नहीं, क्या यूपी पंचायत चुनाव में हो सकती देरी?

इसके बावजूद अभी तक पंचायत चुनाव के आरक्षण रोस्टर को लेकर सरकार में बैठक हो रही हैं और सूबे के ग्राम विकास राज्य मंत्री ने त्रिस्‍तरीय पंचायत चुनाव के लिए 15 फरवरी तक आरक्षण की स्थिति स्‍पष्‍ट हो जाने की बात कही है. ऐसे में पंचायत चुनाव में देरी हो सकती है.

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कुमार अभिषेक

  • लखनऊ ,
  • 25 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 2:39 PM IST
  • यूपी में पंचायत चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं
  • यूपी पंचायत चुनाव के आरक्षण का रोस्टर तय नहीं
  • पंचायत परिसीमन के बाद आरक्षण पर सभी की नजर

उत्तर प्रदेश में होने पंचायत चुनाव की सियासी सरगर्मियां तेजी से बढ़ती जा रही हैं और प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ने के लिए कमर कस ली है. ऐसे में गांव में ग्राम प्रधान, बीडीसी और जिला पंचायत सदस्यों के लिए होने वाले चुनाव में लोगों को आरक्षण सूची का इंतजार है. इसी से तय होगा कि कौन सा वार्ड और कौन सी ग्रामसभा किस जाति के चुनाव लड़ने के लिए आरक्षित की गई है. पंचायत आरक्षण के लिए  22 जनवरी डेडलाइन तय की गई थी, जो पार हो गई.

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इसके बावजूद अभी तक पंचायत चुनाव के आरक्षण रोस्टर को लेकर सरकार में बैठक हो रही हैं और सूबे के ग्राम विकास राज्य मंत्री ने त्रिस्‍तरीय पंचायत चुनाव के लिए 15 फरवरी तक आरक्षण की स्थिति स्‍पष्‍ट हो जाने की बात कही है. ऐसे में पंचायत चुनाव में देरी हो सकती है.

पंचायत चुनाव के लिए 22 जनवरी को ग्राम प्रधानों और ग्राम पंचायत सदस्यों के चुनाव के लिए आरक्षण सूची जारी होनी थी, लेकिन सरकार में आरक्षण के रोस्टर के लेकर बैठक ही चल रही है. ऐसे में पंचायत चुनाव में आरक्षण के प्रारुप को तैयार होने में लगातार देरी हो रही है. उत्तरप्रदेश के संसदीय एवं ग्राम्य विकास राज्यमंत्री आनंद स्वरूप शुक्ला ने हाल ही में बयान दिया है कि 15 फरवरी तक आरक्षण की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी.

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इससे साफ जाहिर होता कि अभी तक आरक्षण के रोस्टर को लेकर कोई रूप रेखा अभी तक तैयार नहीं हो सकी है. सूत्रों की मानें तो सरकार आरक्षण के रोस्टर के लिए बैठक कर मंथन ही कर रही है जबकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 31 मार्च तक हर हाल में पंचायत चुनाव करा लेने की बात कही थी. 

ग्राम प्रधान, बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य, जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख के निर्वाचन क्षेत्रों में आरक्षण के बदलाव होने की संभावना मानी जा रही है. विभाग की ओर से चुनाव के लिए परिसीमन की सूची जारी हो गई है, लेकिन आरक्षण को लेकर अभी तक कोई कोई प्रारुप सामने नहीं आया है. ऐसे में लोगों का जोर इस बात पर है कि इस बार जो सीट जिस वर्ग के लिए आरक्षित है या अनारक्षित है, वो चुनाव के लिए किस वर्ग के लिए तय होगी. ऐसे में हम बताते हैं कि सूबे में पंचायत और वार्डों का आरक्षण किस फॉर्मूले के जरिए तय होता है. 

चक्रानुक्रम आरक्षण व्यवस्था

बता दें कि उत्तर प्रदेश के पंचायत चुनाव में 33 फीसदी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, जो सभी तरह की सीटों में शामिल होंगी. इनमें ओबीसी, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण हैं. साल 2015 के पंचायत चुनाव में सीटों का आरक्षण नए सिरे से हुआ था. इसलिए अब एक बार फिर आरक्षण किया जाना चाहिए. आरक्षण की रूप रेखा चक्रानुक्रम आरक्षण से तय होती है. चक्रानुक्रम आरक्षण का अर्थ यह है कि आज जो सीट जिस वर्ग के लिए आरक्षित है, वो अगले चुनाव में वह सीट उस वर्ग के लिए आरक्षित नहीं होगी. 

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21 फीसदी एससी-एसटी आरक्षण 

चक्रानुक्रम के आरक्षण के वरीयता क्रम में पहला नंबर आएगा अनुसूचित जाति महिला का. एससी की कुल आरक्षित सीटों में से एक तिहाई पद इस वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे. फिर बाकी बची एससी की सीटों में एससी महिला या पुरुष दोनों के लिए सीटें आरक्षित होंगी. इसी तरह एसटी के 21 प्रतिशत आरक्षण में से एक तिहाई सीटें एसटी महिला के लिए आरक्षित होंगी और फिर एसटी महिला या पुरुष दोनों के लिए होगा. 

27 फीसदी ओबीसी आरक्षण 

उत्तर प्रदेश पंचायत चुनाव में 27 फीसदी सीट ओबीसी के लिए आरक्षित होंगी, इनमें से एक तिहाई सीटें ओबीसी महिला के लिए तय होंगी. इसके अलावा ओबीसी के लिए आरक्षित बाकी सीटें ओबीसी महिला या पुरुष दोनों के लिए अनारक्षित होगा. इसके अलावा बाकी अनारक्षित सीटों में भी पहली एक तिहाई सीट महिला के लिए होगी और बाकी सीटों पर सामान्य वर्ग से लेकर कोई भी जाति से चुनाव लड़ सकता है. इन सारी सीटों पर चीजें चक्रानुक्रम आरक्षण से तय होती है. 

आरक्षण कैसे तय होता है

आरक्षण तय करने का आधार ग्राम पंचायत सदस्य के लिए गांव की आबादी होती है. ग्राम प्रधान का आरक्षण तय करने के लिए पूरे ब्लॉक की आबादी आधार बनती है. ब्लॉक में आरक्षण तय करने का आधार जिले की आबादी और जिला पंचायत में आरक्षण का आधार प्रदेश की आबादी बनती है. इस तरह से वार्ड के आरक्षण ग्राम सभा की आबादी के लिहाज से होती है. 

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उदाहारण के तौर पर किसी एक विकास खंड में 100 ग्राम पंचायतें हैं. वहां पर 2015 में ग्राम प्रधान पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित किए गए थे. अब इस बार के पंचायत चुनाव में इन 27 के आगे वाली ग्राम पंचायतों की आबादी के अवरोही क्रम में (घटती हुई आबादी) प्रधान पद आरक्षित होंगे.

इसी तरह अगर किसी एक विकास खंड में 100 ग्राम पंचायतें हैं और वहां 2015 के चुनाव में शुरू की 21 ग्राम पंचायतों के प्रधान के पद एससी के लिए आरक्षित हुए थे तो अब इन 21 पदों से आगे वाली ग्राम पंचायतों के पद अवरोही क्रम में एससी के लिए आरक्षित होंगे.

बता दें कि 2015 में ग्राम प्रधान पद के लिए सीट जिन पंचायतों को आरक्षित की गई थी, उसके आधार पर इस बार बदलाव किया जाएगा. हालांकि, कई नेता अपनी राजनीतिक रसूख के दम पर अपने गांव को प्रधान पद के सीट पिछड़ा वर्ग और एससी-एसटी के लिए आरक्षित नहीं होने देते हैं. ऐसे में अगर कोई जिला अधिकारी के पास शिकायत करता है तो उन सीटों पर आरक्षण की व्यवस्था का दबाव बढ़ जाता है. हालांकि, इस बार ग्राम पंचायतों में आरक्षण की व्यवस्था ऑनलाइन होने की बात कही जा रही है. 
 

 

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