Mainpuri Byelection: अखिलेश ने डिंपल को बनाया प्रत्याशी, BJP ने 'परिवारवाद' बताकर किया हमला

90 के दशक में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने विचारधारा के सहयोगियों की अपेक्षा अपने परिवार के लोगों को चुनाव में आगे किया था. हालांकि, जनेश्वर मिश्र, मोहन सिंह जैसे विचारधारा के सिपाहियों को जगह मिली. इस फॉर्म्युले की विपक्ष ने ‘परिवारवाद’ कह कर आलोचना तो की लेकिन इसको सफलता भी मिली. अब अखिलेश यादव इसी आजमाए हुए फॉर्म्युले को अपनाना चाहते हैं.

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अखिलेश यादव के साथ पत्नी डिंपल यादव (फाइल फोटो) अखिलेश यादव के साथ पत्नी डिंपल यादव (फाइल फोटो)

शिल्पी सेन

  • लखनऊ,
  • 12 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 11:35 AM IST

मुलायम सिंह यादव की विरासत वाली मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव के लिए समाजवादी पार्टी ने मुलायम की बहू और पूर्व सांसद डिम्पल यादव को मैदान में उतार दिया है. अभी बीजेपी के प्रत्याशी का इंतजार है. लेकिन इस बीच छोटी बहू और बीजेपी नेता अपर्णा यादव ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी से मुलाकात कर सियासी सरगर्मी बढ़ा दी है. मगर इतना तय हो गया है कि मैनपुरी के उपचुनाव में सपा जहां मुलायम की विरासत की बात कह कर वोट मांगेंगीं. वहीं, बीजेपी अखिलेश यादव पर ‘परिवारवाद’ के आरोप को लेकर हमला करेगी.

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पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के पुरोधा मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई मैनपुरी सीट पर उपचुनाव रोचक हो गया है. सपा अपनी परम्परागत सीट और अपने गढ़ में मुलायम के बिना पहला चुनाव फेस करेगी. ऐसे में सपा के लिए भावनात्मक हुए चुनाव में समाजवादी पार्टी मुलायम की विरासत का हवाला देकर वोट मांगेगी. ये बात और भी ज्यादा स्पष्ट हो गई है क्योंकि अखिलेश यादव ने यहीं से सांसद रहे तेज प्रताप यादव और अपने चचेरे भाई पूर्व सांसद धर्मेंद्र यादव के मुकाबले अपनी पत्नी और परिवार की बड़ी बहू को प्रत्याशी बना कर जहां चुनाव को सीधे मुलायम के उत्तराधिकार से जोड़ा है. वहीं परिवार में विरोध भी शांत करने की कोशिश की है. लेकिन अखिलेश के लिए यही विरासत की लड़ाई विपक्षी बीजेपी के लिए मुद्दा भी बन गई.

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बीजेपी ने शुरू किया परिवारवाद पर हमला 
डिम्पल यादव के उम्मीदवार घोषित होते ही बीजेपी के नेताओं ने परिवारवाद का आरोप लगाते हुए हमला तेज कर दिया है. प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का कहना है, ''ये तो पहले से ही अपेक्षित था. सपा में कार्यकर्ता तो केवल जिंदाबाद और मुर्दाबाद के नारे लगाने के लिए होते हैं. चुनाव तो सैफई कुनबे के लोग ही लड़ेंगे. लेकिन बीजेपी ने हर बार मैनपुरी में बढ़त बनाई है और इस बार कमल का फूल खिलेगा.''

वहीं, कन्नौज लोकसभा में डिम्पल यादव को हराने वाले सुब्रत पाठक भी परिवारवाद का आरोप लगाने में पीछे नहीं रहे. तुरंत बयान जारी कर कह दिया कि सपा ने अपने मूल चरित्र के अनुसार ही प्रत्याशी घोषित किया है. सपा का गठन तो समाजवाद के नाम पर हुआ, पर इसके बाद पार्टी जातिवादी हो गई. फिर यह एक परिवार में ही सिमट गई. पिता, चाचा, बेटा बहू, पोता सब सांसद विधायक बन गए. 

बीजेपी का हमला अखिलेश यादव पर ही होगा
दरअसल, यह तय है कि मैनपुरी में उम्मीदवार कोई भी हो पर बीजेपी का हमला अखिलेश यादव पर ही होगा. इसके लिए परिवारवाद सबसे बड़ा हथियार है. सैफई परिवार को ही आगे करने और कार्यकर्ताओं की अनदेखी करने का आरोप बीजेपी पहले भी  लगाती रही है. ऐसे में इस बार यह हमला अखिलेश यादव पर होगा. हालांकि, समाजवादी पार्टी और खुद अखिलेश यादव के लिए मैनपुरी का उपचुनाव भावनात्मक चुनाव है. सपा के गढ़ मैनपुरी में मुलायम के न रहने पर लोगों के समर्थन की उम्मीद है तो परिवार के सदस्यों खास तौर पर शिवपाल सिंह यादव के रुख की वजह से भी मुश्किलें बढ़ी हैं. परिवार में कई दावेदारों के बीच डिम्पल को प्रत्याशी बना कर अखिलेश ने सबसे आसान फैसला करने की कोशिश की है.

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पार्टी को गढ़ में मजबूत करना अखिलेश के लिए सबसे जरूरी 
राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल कहते हैं, ''मुलायम की विरासत और उनके चेहरे के प्रति मैनपुरी में लोगों का जो भावनात्मक लगाव है और वहां के कार्यकर्ताओं की जो निष्ठा है वो प्रदेश के किसी भी दूसरे हिस्से से ज्यादा है. इस बात को अखिलेश जानते हैं. ऐसे में डिम्पल की जीत की राह आसान हो सकती है. अखिलेश परिवारवाद का विपक्ष का आरोप भी जानते हैं लेकिन पहले पार्टी का मजबूत होना जरूरी है. मुलायम की गैरमौजूदगी में यह पहला चुनाव है. इसलिए लगातार हार रही समाजवादी पार्टी की मॉरल बूस्टिंग (moral boosting)जरूरी है. आरोपों से तो वो बाद में भी निपट लेंगे. इसीलिए डिंपल को पिता की सीट पर लड़ाना ज्यादा मुफीद है.''

रतन मणि लाल ये भी कहते हैं कि अगर बीजेपी के परिवारवाद को लेकर तमाम हमले के बावजूद डिम्पल जीतती हैं तो कार्यकर्ताओं और पार्टी को बहुत ताकत मिलेगी. वो ये कह पाएंगे कि मैनपुरी की जनता ने बीजेपी के (परिवारवाद के) आरोप को नकार दिया. इसलिए अखिलेश ने यह फैसला लिया होगा.

मुलायम ने परिवार के लोगों को चुनाव में किया था आगे
बता दें, नब्बे के दशक में समाजवादी पार्टी के गठन के बाद मुलायम सिंह यादव ने अपने विचारधारा के सहयोगियों की अपेक्षा अपने परिवार के लोगों को चुनाव में आगे किया था. हालांकि, जनेश्वर मिश्र, मोहन सिंह जैसे विचारधारा के सिपाहियों को जगह मिली. पर चुनावी मुख्यधारा में मुलायम परिवार का ही वर्चस्व रहा. इस फॉर्म्युले की विपक्ष ने ‘परिवारवाद’ कह कर आलोचना तो की लेकिन इसको सफलता भी मिली. मुलायम के बिना हो रहे पहले चुनाव में अखिलेश यादव इसी आजमाए हुए (tried and tested) फॉर्म्युले को अपनाना चाहते हैं.

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'RSS-BJP को क्यों है दिक्कत?'
सपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता अमीक जामेई (ameeque Jamei) डिम्पल यादव की रिकॉर्ड जीत का दावा करते हुए कहा, ''महिलाएं राजनीति में हाशिए पर हैं. लोकसभा और राज्यसभा में भी उनकी संख्या कम है. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश याद ने जौनपुर से बिना किसी राजनीतिक अनुभव वाली डॉ. रागिनी सोनकर को विधायक बनवाया. सिराथु जैसी सीट से पल्लवी पटेल को चुनाव लड़वाने का साहस दिखाया. ऐसे में अगर लोकसभा में डिम्पल यादव जी जीत कर पहुंचती हैं तो RSS-भाजपा को दिक्कत क्यों है? दरअसल, आरएसएस-बीजेपी का चरित्र मूलतः महिला विरोधी और पुरुषवादी है. इसलिए डिम्पल यादव जी का नाम घोषित होने से उनको दिक्कत है.''

 

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