Modi@4: अहम केसों में फ्लॉप रही NIA, धुल गया 'हिंदू आतंकवाद' का दाग

एनआईए पर कार्यशैली पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि जिन बड़े मामलों में वो विफल रही उनमें से सभी ऐसे केस थे जिनके आधार पर यूपीए सरकार ने हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाला था. वैसे एनआईए का गठन साल 2009 में यूपीए ने ही किया था.

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इन 4 मामलों में NIA विफल नजर आई इन 4 मामलों में NIA विफल नजर आई

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 28 मई 2018,
  • अपडेटेड 7:58 AM IST

राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए को देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी के तौर पर देखा जाता है. लेकिन पिछले चार सालों में जिस तरह से इस एजेंसी ने कई मामलों में नाकामयाबी की इबारत लिखी, उससे इसकी साख कमजोर हो गई. एक के बाद एक कई अहम मामलों में एनआईए विफल होती रही और कई दागी कमजोर जांच की वजह से छूटते रहे. ऐसे में एजेंसी के काम पर सवाल उठना भी लाजमी है.

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कई बार ऐसा लगा कि एजेंसी की जांच आरोपियों को दोषी साबित करने के लिए थी ही नहीं. कमजोर चार्जशीट और सबूतों की कमी इस बात की तस्दीक करती है. एनआईए पर कार्यशैली पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि जिन बड़े मामलों में वो विफल रही उनमें से सभी ऐसे केस थे जिनके आधार पर यूपीए सरकार ने हिंदू आतंकवाद का जुमला उछाला था. वैसे एनआईए का गठन साल 2009 में यूपीए ने ही किया था.

मक्का मस्जिद ब्लास्ट 2007

18 मई 2007 की दोपहर करीब 1 बजे मक्का मस्जिद में जोरदार धमाका हुआ, जिसमें 9 लोगों की मौत हो गई  जबकि 58 लोग घायल हो गए थे. इस घटना के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए हवाई फायरिंग भी की, जिसमें पांच और लोग मारे गए. यह मामला सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया था लेकिन फिर यह मामला NIA के पास चला गया. जांच चलती रही. 2014 में सरकार बदली, निजाम बदला और एजेंसी का रवैया भी बदल गया. नतीजा ये हुआ कि इस मामले में कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए मुख्य आरोपी स्वामी असीमानंद समेत सभी 5 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया.

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सीबीआई ने 2010 में सबसे पहले असीमानंद को ही गिफ्तार किया था, लेकिन 2017 में उसे जमानत मिल गई थी. हैरानी की बात है कि NIA ने ऐेसे संवेदनशील मामले में उसकी जमानत को रद्द करने के लिए ऊंची अदालत में कोई अपील भी नहीं की. इस घटना में 160 चश्मदीद गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे. लेकिन 54 गवाह मुकर गए. अप्रैल 2011 में इस केस को एनआईए को सौंपा गया. इस दौरान केस के एक प्रमुख अभियुक्त और आरएसएस कार्यकर्ता सुनील जोशी को गोली मार दी गई.

एनआईए ने जांच के बाद दस लोगों को आरोपी बनाया था, जो सभी अभिनव भारत संगठन के सदस्य थे. स्वामी असीमानंद सहित, देवेंद्र गुप्ता, लोकेश शर्मा उर्फ अजय तिवारी, लक्ष्मण दास महाराज, मोहनलाल रतेश्वर और राजेंद्र चौधरी को मामले में आरोपी बनाया गया था. लेकिन NIA ने इस मामले में 5 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी और सभी को कोर्ट ने बरी कर दिया था.

समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट 2007

भारत और पाकिस्तान के बीच सप्ताह में दो दिन चलने वाली रेल गाड़ी समझौता एक्सप्रेस में 18 फरवरी 2007 को एक बम धमाका हुआ था, जिसमें 68 लोगों की मौत हो गई. जबकि 12 लोग घायल हुए. ट्रेन उस दिन दिल्ली से लाहौर जा रही थी. इस धमाके में मारे गए ज़्यादातर यात्री पाकिस्तानी नागरिक थे.

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इसी तर्ज़ पर हैदराबाद की मक्का मस्जिद, अजमेर शरीफ दरगाह और मालेगांव में भी धमाके किए गए थे. इन सभी मामलों के तार आपस में जु़ड़े हुए थे. समझौता मामले की जांच में हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र एटीएस को एक हिंदूवादी संगठन अभिनव भारत के शामिल होने के सूबत मिले थे. वर्ष 2011 में इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई.

एनआईए ने 26 जून 2011 को 5 लोगों के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाख़िल की थी. जिसमें नाबा कुमार उर्फ़ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी, रामचंद्र कालसंग्रा, संदीप डांगे और लोकेश शर्मा का नाम शामिल था. सरकार बदल जाने का असर इस मामले पर भी दिखाई दिया. वर्ष 2014 में ही समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस के आरोपी स्वामी असीमानंद को ज़मानत मिल गई. कोर्ट में एनआईए असीमानंद के ख़िलाफ पर्याप्त सबूत नहीं दे पाई. इसलिए वो रिहा हो गया.

अजमेर शरीफ दरगाह ब्लास्ट 2007

11 अक्टूबर, 2007 की शाम करीब सवा 6 बजे विश्व प्रसिद्ध अजमेर शरीफ दरगाह में जोरदार धमाका हुआ था. इस ब्लास्ट में 3 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 15 लोग घायल हुए थे. इस मामले की जांच के दौरान एजेंसियों ने कुल 184 गवाहों के बयान दर्ज किए, जिनमें 26 गवाह बाद में अपने बयानों से मुकर गए. मुकरने वाले गवाहों में झारखंड के मंत्री रणधीर सिंह भी शामिल थे. प्रारंभिक जांच के बाद कुछ लोगों को गिरफ्तार किया गया था, जिनमें कुछ आरोपियों ने मजिस्ट्रेट के सामने बम ब्लास्ट के आरोप कबूल भी किए थे.

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पहले मामले की जांच सीबीआई के पास थी. बाद में एटीएस से होते हुए जांच एनआईए को सौंपी गई थी. इस मामले में गिरफ्तार एक शख्स ने पूछताछ में स्वामी असीमानंद का जिक्र किया था. उसी के बाद 19 नवंबर 2010 को उसे हरिद्वार के आश्रम से गिरफ्तार किया गया था. आरएसएस के प्रचारक इंद्रेश कुमार और साध्वी प्रज्ञा भी इस केस में संदिग्ध माने गए थे, लेकिन एनआईए ने चार्जशीट में उनका नाम नहीं लिखा, क्योंकि एजेंसी के पास उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे.

मालेगांव ब्लास्ट 2008

29 सितंबर, 2008 में महाराष्ट्र के मालेगांव में जबरदस्त ब्लास्ट हुआ था, जिसमें 6 लोग मारे गए थे. जबकि 79 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. इस मामले में दायर की गई चार्जशीट में 14 आरोपियों के नाम थे. ब्लास्ट के लिए आरडीएक्‍स देने और साजिश रचने के आरोप में साध्वी प्रज्ञा और कर्नल प्रसाद पुरोहित को गिरफ्तार कर किया गया था. इस मामले की जांच पहले एटीएस के पास थी, मगर बाद में जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंपी गई.

जांच एनआईए कर रही थी. लेकिन केंद्र में सरकार बदल जाने के बाद जांच का रुख भी बदल गया. नतीजा ये हुआ कि मालेगांव ब्लास्ट केस के आरोपी लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित को कुछ माह पहले सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई. एनआईए ने साध्वी प्रज्ञा को भी क्लीन चिट दे दी.

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