संदेह की आंच में काठ की मटकी पकने से पहले सुलग गई. प्रशांत किशोर कांग्रेस के दरवाजे से आते-आते लौट गए. घंटों बातें कीं. कितने ही कागज बनाए दिखाए. कितने सपने अपनी प्रस्तुतियों में उकेरे. कांग्रेस बहुत ध्यान से उनकी बातों को सुनती-बुनती रही. ऐसा लगा कि शायद कांग्रेस अब अच्छे दिन की आस को पीके के पास संजोकर आगे बढ़ेगी. लेकिन फिर बाना बनने से पहले ताना टूट गया. पीके कांग्रेस ज्वाइन करने से पलट गए. और जाते जाते उन्होंने अपनी टीस की कील कांग्रेस के कलेजे में ठोक दी. उन्होंने कहा कि कांग्रेस को मेरी नहीं, नेतृत्व की जरूरत है. बिना नेतृत्व की पार्टी अपने कुनबे को कैसे संभालेगी और टूटी-दरकती दीवारों की मरम्मत कैसे करेगी, ये सवाल अपनी विदाई की घोषणा करते हुए पीके ने अपने ट्वीट में व्यक्त कर दिए. प्रशांत किशोर और कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के बीच पिछले कुछ दिनों से लगातार बैठकों का दौर चल रहा था. ये चर्चा भी आम हो गई थी कि प्रशांत किशोर कांग्रेस में शामिल होंगे.