चुनावों के बीच राजनीतिक पार्टियां चुनावी बॉन्ड खरीद सकती हैं या नहीं? 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

केरल, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड के नए सेट को जारी करने पर रोक लगाने की याचिका दाखिल की गई थी. वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने जल्द सुनवाई करने की मांग की थी।

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो-PTI) सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो-PTI)

aajtak.in

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  • 18 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 3:55 PM IST
  • 5 राज्यों के चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक की मांग
  • याचिका में दलील कि इससे राजनीतिक पार्टियों को अवैध और गैरकानूनी फंडिंग होगी

सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई करने को तैयार हो गया है, जिसमें चुनाव के बीच चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग की गई थी. दरअसल, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, तमिलनाडु और पुडुचेरी के विधानसभा चुनावों से पहले चुनावी बॉन्ड के नए सेट को जारी करने पर रोक लगाने की याचिका दाखिल की गई थी. इस याचिका पर 24 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी.

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ये याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR की तरफ से दाखिल की गई है. इसकी तरफ से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में जल्द से जल्द सुनवाई की अर्जी लगाई थी. याचिका में दावा किया गया है कि पांच राज्यों के चुनाव से पहले चुनावी बॉन्ड की बिक्री से राजनीतिक पार्टियों को अवैध और गैर कानूनी फंडिंग होगी.

1 अप्रैल को जारी होने हैं बॉन्ड
1 अप्रैल को चुनावी बॉन्ड के नए सेट जारी होने हैं. पहले सुप्रीम कोर्ट याचिका की सुनवाई 26 मार्च को करने वाला था. लेकिन प्रशांत भूषण ने दलील दी कि केंद्र सरकार भी इस पर जवाब देने में वक्त लेगी, इसलिए मामले की सुनवाई जल्दी हो. इसके बाद कोर्च 24 मार्च को इस पर सुनवाई करने के लिए तैयार हुआ. 

चुनावी बॉन्ड पर अक्सर उठते रहे हैं सवाल
चुनावी फंडिंग में सुधार के लिए मोदी सरकार ने जनवरी 2018 से चुनावी बॉन्ड की शुरुआत की थी. ये बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं. सरकार का कहना था कि चुनावी बॉन्ड से राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे में पारदर्शिता आएगी. हालांकि, इस पर अक्सर सवाल भी उठते रहे हैं.

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दरअसल, कोई भी व्यक्ति या संस्था 1 करोड़ रुपए तक के चुनावी बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक पार्टी को दे सकते हैं और इसके लिए पहचान भी बताने की जरूरत नहीं है. यही वजह है कि राजनीतिक पार्टियों को चंदा कहां से और कौन दे रहा है, इसका पता नहीं लग पाता. विवाद की एक वजह ये भी है कि चुनावी बॉन्ड की जांच चुनाव आयोग के दायरे से बाहर है. चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में कह चुका है कि वो चुनावी बॉन्ड के खिलाफ नहीं है, पर चंदा देने वाले की पहचान जाहिर होनी चाहिए.
 

 

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