हारकर भी पलानीस्वामी ने साबित किया, भले ही 'एक्सीडेंटल CM' हों, पर जयललिता के वारिस वहीं है

एक पार्टी जिसकी जड़ें फिल्मी दुनिया से आती है. जहां 'लार्जर दैन लाइफ' छवि का बोलबाला है. जिसकी स्थापना एमजी रामचंद्रन ने की है और जिसकी उत्तराधिकारी अभिनेत्री से नेत्री बनीं जयललिता थीं, उस पार्टी का जयललिता से पलानीस्वामी तक का ट्रांजिशन आसान नहीं था.

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तमिलनाडु के पूर्व स्वामी पलानीस्वामी (फोटो-पीटीआई) तमिलनाडु के पूर्व स्वामी पलानीस्वामी (फोटो-पीटीआई)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 03 मई 2021,
  • अपडेटेड 9:36 PM IST
  • जयललिता की विरासत के वारिस बनकर उभरे
  • 10 साल का एंटी इंकम्बेंसी झेलकर अच्छा परफॉर्मेंस
  • बगैर जयललिता पहला विधानसभा चुनाव

तमिलनाडु से AIADMK की विदाई देखकर किसी को हैरानी नहीं हुई, अलबत्ता पलानीस्वामी का परफॉर्मेंस देखकर लोग जरूर चौंके. एग्जिट पोल में उन्हें खारिज कर दिया गया था. लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी की अगुवाई में AIADMK ने केवल सम्मानजनक नतीजे दिए, बल्कि इन धारणाओं को भी खारिज कर दिया कि इस चुनाव के बाद AIADMK के राजनीतिक अस्तित्व पर ही संकट आ सकता है. 

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इस विधानसभा चुनाव में  AIADMK ने अकेले 66 सीटें जीतीं, जबकि बीजेपी ने 4 सीटों पर जीत हासिल की, इसके अलावा पीएमके ने 5 सीटों पर जीत पाई है. कुल मिलाकर 234 सदस्यों वाली विधानसभा में AIADMK नेतृत्व 75 सीटें जीतने में कामयाब रही है. एक बार तो रुझानों के वक्त ये गठबंधन 100 का आंकड़ा पार कर गई थी. हालांकि अंतिम नतीजों में पार्टी में पीछे चल गई. राज्य में डीएमके गठबंधन 150 से ज्यादा सीटें जीतकर 10 साल बाद राज्य की सत्ता में वापसी कर रहा है.

हालांकि तमाम शंकाओं और दवाओं को दरकिनार करते हुए पलानीस्वामी ने अच्छा प्रदर्शन दिया और साबित कर दिया कि वे भलें ही एक एक्सीडेंटल सीएम रहे हों लेकिन पिछले 4 सालों में अपने काम के दम पर उन्होंने राज्य में अपनी और पार्टी की जड़ें गहरी की है और तमिलनाडु में एक मजबूत विपक्ष का रोल अदा करने को तैयार हैं.

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दक्षिण की राजनीति में चेहरे का महत्व

जब 2016 में जयललिता का आकस्मिक निधन हुआ तो तब से ही कयास लगाने जाने लगे थे कि एक कद्दावर चेहरे के अभाव में AIADMK का ज्यादा दिनों तक सर्वाइव करना मुश्किल है. बता दें कि तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है जहां राजनीति में सिद्धांत का तो महत्व है लेकिन यहां व्यक्ति ज्यादा प्रधान है. 

इन्हीं चर्चाओं के बीच पलानीस्वामी फरवरी 2017 में राज्य के मुख्यमंत्री रहे. खास बात ये रही कि उनकी प्रतिद्वंदिता अपनी ही पार्टी के पनीरसेल्वम से रही जो कि जयललिता के करीबी माने जाते थे, बता दें कि जयललिता के निधन के बाद पनीरसेल्वम ही राज्य के सीएम बने थे. लेकिन राजनीतिक उठापटक की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था तब पलानीस्वामी सीएम बने. जबकि पनीरसेल्वम डिप्टी सीएम बने. अभी भी पनीरसेल्वम पार्टी के कॉर्डिनेटर हैं जबकि पलानीस्वामी को कॉर्डिनेटर. 

10 साल का एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर

बता दें कि तमिलनाडु में  AIADMK 10 साल से सत्ता में थी. निश्चित रूप से पार्टी के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर काम कर रही थी. इस एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर के खिलाफ पलानीस्वामी को चुनाव लड़ना था. पलानीस्वामी ने लहर का लगभग सफलतापूर्वक मुकाबला किया और पार्टी कैडर और वोट बरकरार रखा. हालांकि इसके लिए उन्हें अपने घोषणा पत्र में कई लोकलुभावन नारे करने पड़े. इसमें हर राशनकार्ड धारी को सालभर 6 मुफ्त सिलेंडर, वाशिंग मशीन शामिल है. 

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जयललिता की गैरमौजूदगी में पहला विधानसभा चुनाव

एक पार्टी जिसकी जड़ें फिल्मी दुनिया से आती है. जहां 'लार्जर दैन लाइफ' छवि का बोलबाला है. जिसकी स्थापना एमजी रामचंद्रन ने की है और जिसकी उत्तराधिकारी अभिनेत्री से नेत्री बनीं जयललिता थीं, उस पार्टी का जयललिता से पलानीस्वामी तक का ट्रांजिशन आसान नहीं था. लेकिन पलानीस्वामी ने मेहनत से काम किया. 

उन्होंने जनता के बीच अपनी किसान की छवि रखी. कई बार उन्हें खेतों में देखा गया. किसानों का कर्ज माफ किया. सरकारी स्कूल के बच्चों को मेडिकल की पढ़ाई में 7.5 फीसदी का आरक्षण दिया. ऐसे कदम बढ़ाकर उन्होंने पार्टी का चाल चरित्र बदला. अब पार्टी एक छवि के भरोसे न रहकर संस्थागत हो गई जो कि कैडर के दाम पर काम कर रही थी. इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिला.  

2019 में मिली थी करारी हार 

AIADMK का ये प्रदर्शन इसलिए भी अहम है क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव में डीएमके ने AIADMK को करारी शिकस्त थी, तब डीएमके ने 39 में से 38 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी. इस लिहाज से पिछले डेढ़ साल में पार्टी ने एक बार फिर से लोगों के बीच खुद को स्थापित किया है.

तमिल अस्मिता से समझौता करने का आरोप

इस चुनाव में डीएमके के नेतृत्व में विपक्ष उनपर लगातार हमलावर रहा. विपक्ष ने उनपर आरोप लगाए थे कि वे बीजेपी के साथ मिलकर तमिल अस्मिता से समझौता कर रहे हैं और राज्य में हिन्दी थोप रहे हैं. लेकिन पलानीस्वामी ने इन आरोपों को टिकने नहीं दिया. इसके साथ ही उन्होंने तमिलनाडु की द्रविड राजनीति की इस धारणा को खारिज किया कि तमिलनाडु का जो दल बीजेपी के साथ है वो राज्य में पनप नहीं सकता है.  

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