जानिए वो कौन सी 200 लोकसभा सीटें हैं, जिन पर कांग्रेस को सीमित कर देना चाहते हैं ममता से अखिलेश तक विपक्षी नेता

कर्नाटक चुनाव नतीजे के साथ ही विपक्षी एकता का तानाबाना फिर से बुना जाने लगा है. कांग्रेस से अभी तक दूरी बनाकर चलने वाले दलों के सुर फिर से बदलने लगे हैं. ममता बनर्जी से लेकर अखिलेश यादव तक कह रहे हैं कि कांग्रेस को उन 200 लोकसभा सीटों पर फोकस करना चाहिए, जहां उसकी लड़ाई बीजेपी से है.

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राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 18 मई 2023,
  • अपडेटेड 2:02 PM IST

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद अब 2024 की सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. बीजेपी को केंद्र की सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी एकता का भी तानाबाना बुना जाने लगा है. कांग्रेस से अभी तक दूरी बनाकर चलने वाले विपक्षी दलों के सुर भी बदलने लगे हैं, लेकिन वो चाहते हैं कि कांग्रेस को उन्हीं 200 संसदीय सीटों पर फोकस करना चाहिए, जहां बीजेपी से उसका सीधा मुकाबला है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो 200 सीटें कौन सी हैं और उनके समीकरण क्या हैं? 

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ममता से लेकर अखिलेश तक का फॉर्मूला

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव समेत तमाम विपक्षी दल के नेता कांग्रेस के साथ मिलकर 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए एक शर्त रख रहे हैं. कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद विपक्षी एकता के सवाल पर ममता बनर्जी ने कहा कि मजबूत पार्टी को प्राथमिकता देनी चाहिए. जहां कांग्रेस मजबूत है वहां उसे लड़ने दीजिए. इसमें किसी अन्य पार्टी को परेशानी नहीं होनी चाहिए.

ममता बनर्जी ने कहा कि हमने अनुमान लगाया है कि कांग्रेस 200 सीटों पर मजबूत है. अगर आप कुछ अच्छा चाहते हैं तो कुछ जगहों पर त्याग भी करना पड़ता है. यूपी को ही मान लीजिए, वहां हमें अखिलेश (सपा) को प्राथमिकता देनी होगी. मैं ये नहीं कह रही हूं कि कांग्रेस को वहां नहीं लड़ना चाहिए. हम मिलकर फैसला करेंगे. 'ममता बनर्जी ने दूसरे राज्यों का भी उदाहरण दिया. उन्होंने कहा कि बंगाल, दिल्ली, तमिलनाडु, झारखंड, पंजाब, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा  में जनता के बीच मजबूत पकड़ रखने वाली पार्टियों को प्राथमिकता देनी चाहिए. बिहार में नीतीश, तेजस्वी और कांग्रेस साथ हैं तो वे फैसला ले सकते हैं.

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कांग्रेस-बीजेपी मुकाबले वाली 200 सीटें कहां हैं?
कांग्रेस और बीजेपी के बीच ज्यादातर सीधा मुकाबला उत्तर भारत के राज्यों में है. मध्य प्रदेश (29), कर्नाटक (28), राजस्थान (25), छत्तीसगढ़ (11), असम (14), हरियाणा (11) हिमाचल (4), गुजरात (26), उत्तराखंड (5), गोवा (2), अरुणाचंल प्रदेश (2), मणिपुर (2), चंडीगढ़ (1), अंडमान और निकोबार (1) और लद्दाख (1) में लोकसभा सीट है. इस तरह ये 162 लोकसभा सीटें होती है, जहां पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही मुकाबला होना है.

वहीं, 38 लोकसभा सीटें उन राज्यों की हैं, जहां क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हैं, लेकिन इन सीटों पर मुकाबला कांग्रेस से होता है. इस फेहरिस्त में पंजाब की कुल 13 सीटों में से 4, महाराष्ट्र की 48 सीटों में से 14, यूपी की 80 में 5, बिहार की 40 में से 4, तेलंगाना की 17 में से 6 और 5 सीटें आंध्र प्रदेश और केरल की हैं. 

2014-2019 में क्या रहे इन 200 सीटों के नतीजे 

2014 के लोकसभा चुनाव में इन 200 सीटों में से बीजेपी 168 सीटें जीतने में कामयाब रही थी और कांग्रेस को सिर्फ 25 सीटें मिली थीं. इसके अलावा 7 सीटें दूसरे दलों ने जीती थीं. 

वहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव में 200 सीटों के नतीजों को देखें तो बीजेपी 178 सीटें जीतने में सफल रही थी. कांग्रेस को महज 16 सीटें मिली थीं. 6 सीटें अन्य के खाते में गई थीं. 

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विपक्ष की शर्तों पर कांग्रेस राजी नहीं
2024 के लोकसभा चुनाव के लिए हो रही विपक्षी एकता के मसले पर जो बात ममता कह रही हैं वही अखिलेश और केसीआर भी कह रहे हैं कि जहां पर जो दल मजबूत है, वो चुनाव लड़े और विपक्ष के बाकी दल उसे समर्थन करें. लेकिन कांग्रेस इस पर रजामंद नहीं है. हालांकि कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता बनाना चाहती है और उसकी अगुवाई भी करना चाहती है. 

वहीं, कांग्रेस उन 200 लोकसभा सीटों पर तो चुनाव लड़ना चाहती है, जिस पर उसे सीधे बीजेपी से लड़ना है. इसके साथ-साथ कांग्रेस की नजर उन राज्यों की सीटों पर भी है, जहां बीजेपी के मुकाबले क्षेत्रीय दल मजबूत हैं. लेकिन छत्रप अपने राज्यों में कांग्रेस को स्पेस नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि उनका सियासी आधार कांग्रेस की जमीन पर खड़ा है. 

कांग्रेस-विपक्षी दल के अपने-अपने मकसद

यूपी में सपा और बसपा का सियासी आधार आज वही है जो कभी कांग्रेस का हुआ करता था. इसी तरह बंगाल में ममता बनर्जी भी कांग्रेस की जमीन पर ही खड़ी हैं. ऐसे में विपक्षी दलों को लगता है कि कांग्रेस उनके प्रदेश में अगर मजबूत होती है, तो भविष्य में उनके लिए ही चिंता बढ़ा सकती है. इसीलिए विपक्षी दल कांग्रेस को उन्हीं सीटों के इर्द-गिर्द रखना चाहतें हैं जिससे उन्हें नुकसान न हो. 

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वहीं, कांग्रेस भी इस बात को समझती है कि केंद्र की सत्ता को दोबारा से हासिल करना है तो उसे पहले राज्यों में मजबूत होना होगा. इसीलिए कांग्रेस विपक्षी एकता से ज्यादा फोकस राज्यों के चुनाव पर कर रही है ताकि पहले खुद मजबूत हो ले. हिमाचल और कर्नाटक की सत्ता पर काबिज होने के बाद कांग्रेस की नजर इस साल होने वाले बाकी राज्यों के चुनाव पर है. 

2023 के चुनाव से बदली है तस्वीर

कर्नाटक के बाद अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं. इन राज्यों के चुनाव नतीजों को 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़कर देखा जाएगा. कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव हैं. कर्नाटक विधानसभा चुनाव नतीजों के वोटिंग ट्रेंड का आंकलन करते हैं तो राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से सिर्फ बीजेपी को 4 सीटों पर बढ़त मिली है जबकि 21 सीटों पर कांग्रेस आगे रही है. इसी तरह के ट्रेंड इस साल होने वाले बाकी राज्यों के चुनाव में हुए तो बीजेपी के लिए 2024 की चुनावी राह काफी मुश्किलों भरी हो सकती है. 


200 सीटों पर कांग्रेस दिखा सकती दम
कांग्रेस गुजरात, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, असम, दिल्ली समेत कई केंद्र शासित प्रदेशों सहित 20 राज्यों में अकेले चुनाव लड़ सकती है. इन राज्यों में 200 लोकसभा सीटें हैं. वहीं, यूपी, बिहार, बंगाल, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, महाराष्ट्र में गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतर सकती है. इस तरह से 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे से जो तस्वीर उभरेगी, उसके बाद 2024 के चुनाव का परिदृश्य साफ होगा और उससे पहले तक विपक्षी दलों के बीच शह-मात का खेल जारी रह सकता है.

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