बगावती लाचार, कांग्रेस में और मजबूत हुआ गांधी परिवार? 

विरोध और समर्थन के बीच खड़ा गांधी परिवार और मजबूत होता दिखाई दिया जबकि बगावत का झंडा उठाने वाले पार्टी नेता लाचार नजर आए. सोनिया गांधी और राहुल गांधी की लीडरशिप पर उठाए गए सवाल के बाद जिस तरह से कांग्रेस के भीतर से व्यापक तौर पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी का समर्थन दिखा. शायद ऐसे समर्थन की उम्मीद कांग्रेस के पत्र भेजनेवाले नेताओं को भी नहीं रही होगी. 

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राहुल गांधी और सोनिया गांधी राहुल गांधी और सोनिया गांधी

कुबूल अहमद

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  • 25 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 8:59 AM IST
  • सोनिया गांधी ही रहेंगी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष
  • सोनिया को पत्र लिखने वाले नेता अलग-थलग पड़े
  • राहुल गांधी ने पत्र की टाइमिंग पर उठाए सवाल

कांग्रेस नेतृत्व में बदलाव को लेकर पार्टी के दिग्गज नेताओं का दांव उलटा पड़ गया है. विरोध और समर्थन के बीच खड़ा गांधी परिवार और मजबूत होता दिखाई दिया जबकि बगावत का झंडा उठाने वाले पार्टी नेता लाचार नजर आए. सोनिया गांधी और राहुल गांधी की लीडरशिप पर उठाए गए सवाल के बाद जिस तरह से कांग्रेस के भीतर से व्यापक तौर पर सोनिया गांधी और राहुल गांधी का समर्थन दिखा. शायद ऐसे समर्थन की उम्मीद कांग्रेस के पत्र भेजने वाले नेताओं को भी नहीं रही होगी. 

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कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखे असंतुष्ट नेताओं के पत्र को लेकर हुई पार्टी कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में लगभग हर सदस्य ने राहुल गांधी से अध्यक्ष बनने का आग्रह किया है. सीडब्ल्यूसी ने सर्वसम्मति से जो बयान जारी किया है, उसमें भी सोनिया गांधी के साथ राहुल गांधी के नेतृत्व की तारीफ की गई है. वहीं, दूसरी ओर इस पूरी कवायद में बागी नेताओं के हाथ कुछ नहीं आया बल्कि उलटा बीजेपी के साथ साठगांठ कर कांग्रेस को कमजोर करने का आरोप जरूर माथे पर लग गया. साथ ही गांधी परिवार के प्रति उनकी वफादारी पर भी सवालिया निशान लग गए. 

बता दें कि कांग्रेस में विरोध और बगावत पहले भी होती रही है. सोनिया गांधी के कमान संभालने के बाद भी नेतृत्व को लेकर सवाल उठते रहे हैं. हालांकि वो सारी कोशिशें एक-दो नेताओं द्वारा उठती रही हैं, लेकिन इस तरह से सामूहिक बगावत और विरोध पहली बार दिखाई दिया. राहुल गांधी को लेकर पहले भी सवाल उठे हैं, लेकिन सोनिया की नेतृत्व क्षमता पर इस तरह से उंगली उठाने का साहस कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने पहली बार दिखाया है. कांग्रेस के एक दो नहीं बल्कि 23 वरिष्ठ नेताओं की ओर से पत्र लिखा गया था, जिन पर 300 के करीब नेताओं ने हस्ताक्षर किए थे. CWC से पहले पत्र के सार्वजनिक होने के बाद सोनिया गांधी ने अध्यक्ष पद छोड़ने की मंशा जाहिर कर दी थी. 

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सोमवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई तो गई थी पार्टी का नया अध्यक्ष चुनने के लिए, लेकिन इस मूल मुद्दे पर चर्चा को छोड़कर बैठक में बाकी सब कुछ हुआ. एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप और वार-पलटवार भी देखने को मिला. पूर्व पीएम मनमोहन सिंह से लेकर राहुल गांधी ने इस पर तीखी प्रतिक्रया जताते हुए चिट्ठी लिखने वाले वरिष्ठ नेताओं को जमकर आड़े हाथों लिया. राहुल गांधी के तेवर काफी तीखे थे और लहजा काफी तल्ख था, जिससे पार्टी में तूफान खड़ा हो गया. 

राहुल गांधी ने बेटे के तौर पर पत्र लिखने के समय पर सवाल उठाते हुए कहा, इलाज करवा रहीं कांग्रेस अध्यक्ष की क्षमताओं और फैसलों पर सवाल उठाकर उन्हें आहत किया गया. अध्यक्ष को पत्र लिखना ठीक था लेकिन बैठक में चर्चा से पहले मीडिया में लीक किया गया. एक बेटे के तौर पर मुझे पीड़ा हुई क्योंकि उनकी सेहत ठीक नहीं है. मैंने अभी भी मना किया लेकिन वह पार्टी हितों की रक्षा चाहती हैं. इसके बाद तो पार्टी अध्यक्ष के चुनाव का मुद्दा गौण हो गया और राहुल बनाम वरिष्ठ नेताओं के बीच जंग ही मुख्य मुद्दा बन गई.

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कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद

कार्यसमिति की बैठक में शामिल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाब नबी आजाद ने सफाई दी और बताया, कोई कह रहा है कि मैं बीजेपी से मिला हूं और पत्र बीजेपी के कहने पर लिखा है. उन्होंने चुनौती देते हुए कहा कि अगर ऐसा साबित हो जाए तो मैं सभी पदों से इस्तीफा दे दूंगा. वहीं, कपिल सिब्बल ने ट्वीट करके राहुल पर सीधा तंज कसा. 

मामला तूल पकड़ता, इससे पहले ही पार्टी की तरफ से मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने सफाई दी कि राहुल ने बीजेपी से सांठगांठ का आरोप नहीं लगाया है. राहुल ने भी कपिल सिब्बल को फोन करके सफाई दी. इस पर कपिल सिब्बल ने अपना तंज कसने वाला ट्वीट हटा लिया. गुलाम नबी आजाद ने भी दावा किया कि राहुल ने बीजेपी से सांठगांठ वाली बात नहीं कही. इसे पार्टी में 'डैमेज़ कंट्रोल' और बागी नेताओं के सेल्फ गोल के तौर पर देखा गया. 

वहीं, पूर्व पीएम मनोहमन सिंह से लेकर पूर्व मंत्रियों, सभी राज्य के प्रभारियों, तीनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों, प्रदेश अध्यक्षों से लेकर आम कांग्रेसी नेता तक ने गांधी परिवार के प्रति अपनी भरोसा दिखाया. इस पूरी कवायद में एक बार फिर यह साबित होता दिखाई दिया कि कांग्रेस कितनी भी कोशिश कर ले, वह गांधी परिवार से अलग नहीं जा सकती. यही वजह रही कि सोनिया गांधी को फिर से अध्यक्ष की कमान सौंप दी गई है. 

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कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला कहा कि सरकार की विफलता और विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ सबसे ताकतवर आवाज सोनिया गांधी और राहुल गांधी की है. राहुल गांधी ने भाजपा सरकार के खिलाफ जनता की लड़ाई का दृढ़ता से नेतृत्व किया है. बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला ने एक बार फिर दोहराया कि सभी कांग्रेसजनों की इच्छा है कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभालें. 

इसका सीधा संकेत है कि कांग्रेस अधिवेशन होने तक पार्टी अध्यक्ष के तौर सोनिया गांधी संगठन में जरुरी बदलावों को अंजाम दे सकती हैं. इस तरह से संगठन में राहुल गांधी की पसंद के नेताओं को जगह मिल सकती है. इसके लिए सीडब्ल्यूसी ने बकायदा सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर सोनिया गांधी को अधिकृत कर दिया है. हालांकि लंबी मीटिंग के बीतते वक्त के साथ यह हंगामा व गुबार शांत होता गया और अंत में 'ऑल इज वेल' के नोट पर मीटिंग खत्म हुई और गांधी परिवार फिर एक बार मजबूती के साथ खड़ा दिखाई दे रहा है. 

बता दें कि 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद यह दूसरा मौका है जब सोनिया के सामने ऐसी चुनौती आई है. इससे पहले 1999 में तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के दिग्गज शरद पवार ने विदेशी मूल का मुद्दा उठाया हुए उन्हें पीएम पद का चेहरा बनाए जाने का विरोध किया था. इसके बाद सोनिया ने इस्तीफा दे दिया था जिसे कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से खारिज कर दिया था. इसके बाद पवार ने कुछ बागी नेताओं के साथ पार्टी छोडकर अपनी अलग पार्टी बना ली थी जबकि सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर 18 साल रही और अब फिर एक बार कांग्रेस की कमान उनके हाथ में है. 

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