पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है. पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद के खिलाफ कड़े कदम उठाते हुए भारत ने सिंधु जल समझौता सस्पेंड कर दिया है. इसके अलावा पाकिस्तान से भारत आए लोगों को भी वापस भेजा जा रहा है. लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत अब पाकिस्तान के खिलाफ आर-पार की लड़ाई की तरफ बढ़ रहा है. क्या पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए और ज्यादा सख्त कदम उठाए जाने बाकी हैं.
जैसलमेर से गांवों में कैसा माहौल
इंडिया टुडे ने भारत के पश्चिमी क्षेत्र जैसलमेर के कुछ हिस्सों का दौरा किया, जिसने 1971 में लोंगेवाला की जंग को देखा था, जिसमें गमनेवाला और मुराद की ढाणी गांव शामिल थे, ताकि वहां के माहौल का अंदाजा लगाया जा सके.
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मुराद की ढाणी में कई ग्रामीणों ने कहा कि पहलगाम हमले के दोषियों को सजा मिलनी चाहिए. हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि अगर युद्ध हुआ तो इससे पूरे इलाके में लोगों को काफी मुश्किलें आएंगी. स्थानीय निवासी मोम्बे खान ने कहा, 'जब युद्ध होता है तो नुकसान होता है, जनता का, सबका. युद्ध न हो तो ठीक है.' उन्होंने कहा कि अगर गलत काम करने वाले को सजा मिले तो ठीक है, जिसने यह आतंकी हमला किया है, उसे सजा मिलनी चाहिए.
जंग के बाद छोड़ना पड़ा गांव
उन्होंने आगे बताया कि हम 1965 के युद्ध में बहुत छोटे थे, 5 साल के थे. 1971 के युद्ध में थोड़े बड़े थे और 1965 की जंग के बाद ही देवीकोट चले गए थे. कुछ लोगों को जाने के लिए कहा गया था तो कुछ खुद ही यहां से भाग गए. जंग के बाद 10 साल तक वहीं रहे, फिर वापस आ गए. युद्ध के बाद जब माहौल ठंडा हुआ तो वापस आ गए थे.
एक अन्य निवासी मोहम्मद खान ने कहा कि अगर युद्ध का माहौल होगा, तो मुश्किलें बढ़ेंगी, जो कुछ (पहलगाम में) हुआ, वह बहुत बुरा है. उन्हें वही सजा मिलनी चाहिए, जैसा उन्होंने पहलगाम में लोगों के साथ किया.
युद्ध की वजह से पिछड़ा इलाका
जैसलमेर में भारत-पाकिस्तान सीमा क्षेत्र के आस-पास के गांव जैसे गमलेवाला, मुराद की ढाणी, सद्देवाला, तनोट पूरी तरह से बर्बाद हो चुके हैं और इन गांवों में रहने वाले भारत के लोग 1971 के युद्ध के कई दशक बीत जाने के बाद भी इसका दंश झेल रहे हैं. कुछ लोगों का मानना है कि 1971 के युद्ध ने इस क्षेत्र की समस्याओं को और बढ़ा दिया है और इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे के विकास की भारी कमी है.
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कई किलोमीटर तक कोई भी अच्छा स्कूल नहीं है, सिवाय एक सरकारी स्कूल के, जिसमें भी पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ाई होती है. करीब 40 किलोमीटर के इलाके में कोई भी निजी या सरकारी अस्पताल नहीं है, जिसकी वजह से कई गांव वालों को अच्छा इलाज नहीं मिल पाता है. अगर कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी से पीड़ित भी है तो उसे रामगढ़ ले जाना पड़ता है. गांव वालों का कहना है कि गंभीर बीमारी से पीड़ित और तत्काल चिकित्सा की जरूरत वाले किसी भी मरीज के लिए कोई उम्मीद नहीं है.
स्कूल और अस्पताल की कमी
मोम्बे खान ने बातायि कि अगर हमारा बच्चा बीमार भी पड़ जाए तो उसे 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ जाना पड़ता है. पढ़ाई के लिए भी यहां 5वीं तक का स्कूल है. मुराद की ढाणी गांव के निवासी नूरे खान का कहना है कि ये जगह है, इसलिए हम इस पर बैठे हैं. अगर ये जगह नहीं होगी तो हम जानवर कहां ले जाएंगे, पैसे कहां से लाएंगे? गमनेवाला गांव के रहने वाले उम्मेद सिंह ने कहा कि अगर अब युद्ध हुआ तो बहुत लोग प्रभावित होंगे. उन्होंने कहा कि दोषियों को सख्त सजा मिलनी चाहिए.
जम्मू कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमलें में 26 लोगों की मौत हो गई थी. आतंकियों ने बैसरन घाटी घूमने आए पर्यटकों को निशाना बनाया और नाम और धर्म पूछकर लोगों को गोली मारी गई थी. इस हमले के बाद लोगों में आक्रोश हैं और सभी पाकिस्तान को करारा जवाब देने की मांग कर रहे हैं.
देव अंकुर