मध्य भारत में ठंडक, हिमालय में बढ़ी गर्मी और बारिश का कहर... मौसम के इस चेंज में क्या है नया?

गौरतलब है कि यह मौसमी बदलाव जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को दर्शाता है. मध्य भारत में ठंडक और बारिश जहां राहत दे रही है, वहीं हिमालय में गर्मी और भारी बारिश चिंता का विषय हैं. ये बदलता मौसम ग्लेशियरों, नदियों और मानसून पर निर्भर भारत के लिए बड़े खतरे का संकेत है. 

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दीपू राय

  • नई दिल्ली ,
  • 10 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 7:08 PM IST

जून 2025 में भारत के मौसम ने चौंकाने वाला बदलाव दिखाया. मध्य भारत के शहर ठंडे रहे जबकि हिमालय के कस्बों में गर्मी और भारी बारिश ने हलचल मचाई. हिमालय, जिसे 'एशिया का वाटर टावर' कहा जाता है, तेजी से गर्म हो रहा है. इससे ग्लेशियर पिघल रहे हैं, भूस्खलन हो रहे हैं और मानसून का पैटर्न बदल रहा है.  जयपुर में तापमान पिछले 30 साल के औसत से 2 डिग्री सेल्सियस कम रहा और 78 मिमी ज्यादा बारिश हुई. 

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दिल्ली में भी 1.3 डिग्री कम तापमान और 36 मिमी अतिरिक्त बारिश दर्ज हुई. ये शुरुआती तेज बारिश और कमजोर गर्मी की लहरों का संकेत है लेकिन हिमालयी राज्यों में हालात उलट थे. शिमला में तापमान 0.6 डिग्री ज्यादा रहा और 186 मिमी अधिक बारिश हुई. श्रीनगर में 2.6 डिग्री अधिक गर्मी और 55 मिमी अतिरिक्त बारिश ने ग्लेशियरों पर दबाव और बाढ़ के खतरे को बढ़ाया.  

क्यों है महत्वपूर्ण?

जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। पर्माफ्रॉस्ट खतरे में है और तापमान बढ़ने से ये समस्या और गंभीर होगी.   

यहां तापमान असामान्यता का नक्शा डालें जिसमें हिमालय और तिब्बती पठार के कुछ हिस्सों, विशेष रूप से हिमाचल और उत्तराखंड के आसपास के क्षेत्रों में जून के दौरान तापमान बदलाव दिखाए जाएं.  

आंकड़े देखें 

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2024 में भारत का औसत वार्षिक तापमान: 20 डिग्री सेल्सियस  
1991-2020 के औसत से बदलाव: +0.77 डिग्री सेल्सियस  
पिछले 10 सबसे गर्म सालों में से 9 साल 2010 के बाद आए  
1983 सबसे ठंडा साल था, जब तापमान -0.7 डिग्री सेल्सियस कम था

विस्तार से समझ‍िए

1979 से 2025 तक भारत के तापमान डेटा से साफ है कि गर्मी बढ़ रही है. साल 1980 और 1990 के दशक में तापमान 1991-2020 के औसत से कम था लेकिन 2000 के बाद यह रुझान बदल गया. साल 2015 से 2025 को छोड़कर हर साल तापमान औसत से ज्यादा रहा. साल 2024 में सबसे ज्यादा औसत तापमान 19.998 डिग्री सेल्सियस दर्ज हुआ जो आधार रेखा से +0.77 डिग्री ज्यादा था.  2020 का दशक भारत का सबसे गर्म दशक बन रहा है, जिसमें 1990 के मुकाबले औसतन +0.8 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है. ये सिर्फ क्षेत्रीय उतार-चढ़ाव नहीं बल्कि दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन का संकेत है.   

ये है बड़ा परिदृश्य

1901 से 2020 तक भारत का औसत तापमान प्रति सदी 0.62 डिग्री सेल्सियस बढ़ा. अधिकतम तापमान 0.99 डिग्री प्रति सदी की दर से बढ़ा जबकि न्यूनतम तापमान 0.24 डिग्री प्रति सदी की धीमी गति से. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार मानसून के बाद का मौसम सबसे ज्यादा गर्म हुआ (0.88 डिग्री/100 साल), इसके बाद सर्दी (0.68 डिग्री/100 साल). उत्तरी, मध्य और पूर्वी भारत में तापमान ज्यादा बढ़ा. उत्तर-पश्चिम के एक छोटे क्षेत्र को छोड़कर, जहां तापमान कम हुआ, ज्यादातर भारत में दिन का अधिकतम तापमान न्यूनतम से ज्यादा बढ़ा. 

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यहां भारत के तापमान वृद्धि के रुझान का नक्शा डालें जिसमें उत्तरी, मध्य और पूर्वी भारत में तापमान बढ़ोतरी और उत्तर-पश्चिम में कमी दिखाई जाए. भारत का बढ़ता तापमान वैश्विक जलवायु परिवर्तन, स्थानीय जंगल कटाई, शहरीकरण और जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन का नतीजा है. 60% कार्यबल जलवायु-संवेदनशील कृषि पर निर्भर भारत के लिए, ये गर्मी फसल नुकसान, गर्मी की लहरें और अनियमित बारिश का खतरा बढ़ा रही है.  

यहां भारत के बढ़ते तापमान और जलवायु प्रभावों का नक्शा डालें जिसमें कृषि, गर्मी की लहरें और बारिश के पैटर्न पर असर दिखाया जाए.  

विशेषज्ञ ने क्या कहा?
पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक और संयुक्त राष्ट्र की जलवायु रिपोर्ट के लेखक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने कहा कि हम साउथ एशिया में मानसून पैटर्न में स्पष्ट जलवायु परिवर्तन देख रहे हैं.

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