'अरावली की नई परिभाषा समय की जरूरत, 90% क्षेत्र होगा संरक्षित', बोले केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव

अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर उठे विवाद पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने आजतक से बातचीत में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला अवैध खनन रोकने और चार राज्यों में एकरूपता लाने के लिए जरूरी है.

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केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव. (File Photo: PTI) केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव. (File Photo: PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 3:24 AM IST

अरावली पर्वतमाला की नई परिभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठ रहे सवालों के बीच केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंगलवार को कहा कि अरावली में अवैध खनन की समस्या मुख्य रूप से राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के कार्यकाल के दौरान रही है. उन्होंने दावा किया कि सोशल मीडिया पर जो खदानों की तस्वीरें वायरल की जा रही हैं, वे सभी कांग्रेस शासन के दौर की हैं. 

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आजतक से बातचीत में भूपेंद्र यादव ने कहा, 'ऑनलाइन जिन तस्वीरों को इंफ्लुएंसर दिखा रहे हैं, वे उन खदानों की हैं जो कांग्रेस सरकार के समय संचालित थीं. आठ-दस साल तक खनन हुआ और फिर उन्हें ऐसे ही छोड़ दिया गया.' पर्यावरण मंत्री ने अरावली की नई परिभाषा को स्पष्ट करते हुए बताया कि अब दो या उससे अधिक पहाड़ियों का समूह, जिनकी ऊंचाई कम से कम 100 मीटर हो और जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हों, उन्हें अरावली का हिस्सा माना जाएगा. इसके अलावा, इन पहाड़ियों के बीच की घाटियां, ढलानें और अन्य सभी भू-आकृतियां, उनकी ऊंचाई चाहे जो भी हो, संरक्षित क्षेत्र में आएंगी.

अरावली की नई परिभाषा समय की जरूरत थी

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली पर्वत श्रृंखला की यह नई परिभाषा समय की जरूरत थी, क्योंकि राजस्थान में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा था. उन्होंने दावा किया कि अरावली में संचालित अधिकांश खदानें राजस्थान में ही हैं. केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'आज राजस्थान में कुल 1,008 खदानें चल रही हैं, जिनमें से करीब 700 खदानें अशोक गहलोत के कार्यकाल में शुरू की गईं. जब खनन पट्टे बिना पर्याप्त नियंत्रण के दिए गए, तब सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए इस पर रोक लगाई और कहा कि इससे अरावली की मूल संरचना नष्ट हो जाएगी. इसी कारण सुप्रीम कोर्ट ने चारों राज्यों के लिए अरावली की एक समान परिभाषा तय करना जरूरी समझा.'

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यह भी पढ़ें: अरावली की नई परिभाषा पर विवाद... समझें- इन पहाड़ों का सीना छलनी हुआ तो क्या कुछ होगा दांव पर

भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि दिल्ली, गुरुग्राम और फरीदाबाद समेत अरावली के कई हिस्सों में खनन पहले से ही प्रतिबंधित है. इसके अलावा चार टाइगर रिजर्व, 20 वन्यजीव अभयारण्य और इको-सेंसिटिव जोन से एक किलोमीटर के दायरे में भी खनन की अनुमति नहीं है. जब उनसे पूछा गया कि क्या खनन को पर्यावरण संरक्षण से ऊपर रखा जा रहा है और पूरे अरावली क्षेत्र को ‘नो-गो जोन’ घोषित करने की मांग क्यों नहीं मानी गई? तो भूपेंद्र यादव ने कहा कि अरावली सदियों से सभ्यता का केंद्र रही है. यहां किले हैं, नदियां हैं और लोग रहते आए हैं. अरावली के सिर्फ 0.19 प्रतिशत क्षेत्र में ही खनन हो रहा है, जैसे मार्बल निकालना. और वह भी जहां सबसे ज्यादा है, वहां सिर्फ 0.1 प्रतिशत क्षेत्र में खनन हो रहा है.

नई परिभाषा से अरावली का 90% क्षेत्र संरक्षित

भूपेंद्र यादव ने कहा कि पारिस्थितिकी को प्राथमिकता दी जा रही है, लेकिन संतुलन जरूरी है. सरकार का दावा है कि अरावली की नई परिभाषा से 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र संरक्षित रहेगा और कोई नई खनन लीज नहीं दी जाएगी, जब तक सस्टेनेबल माइनिंग प्लान तैयार नहीं हो जाता. यह विवाद सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2025 के फैसले से शुरू हुआ, जिसमें केंद्र की सिफारिश पर अरावली की ऊंचाई-आधारित परिभाषा स्वीकार की गई. विपक्षी दल और एक्टिविस्ट इसे पर्यावरण के लिए खतरा बता रहे हैं, जबकि सरकार इसे अवैध खनन रोकने का कदम मान रही है.

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