पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा अत्याचार, मुसीबत बना ईश न‍िंदा कानून, UN ने दी चेतावनी

पाकिस्तान में धार्मिक उत्सवों के दौरान हिंसक हमले हुए और ब्लासफेमी (ईशनिंदा) के आरोप में हिरासत में ली गई महिलाओं को लैंगिक हिंसा का शिकार होना पड़ा. हिरासत में मौतें और मनमानी गिरफ्तारियां भी आम हो गई हैं. 

Advertisement
Ahmadi Muslims in Pakistan were offering Eid prayers Ahmadi Muslims in Pakistan were offering Eid prayers

कुमार कुणाल

  • नई दिल्ली/इस्लामाबाद,
  • 24 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 7:28 PM IST

पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर अहमदी समुदाय पर बढ़ते अत्याचारों ने संयुक्त राष्ट्र (UN) के मानवाधिकार विशेषज्ञों को चिंता में डाल दिया है. UN ने पाकिस्तान सरकार से सख्त अपील की है कि वह अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हत्याओं, मनमानी गिरफ्तारियों और पूजा स्थलों व कब्रिस्तानों पर हमलों को रोकने के लिए तुरंत कदम उठाए लेकिन क्या पाकिस्तान सरकार इस चेतावनी पर अमल करेगी, या अल्पसंख्यकों की चीखें अनसुनी रह जाएंगी?

Advertisement

अहमदी समुदाय पर कहर: हत्याएं, तोड़फोड़ और उत्पीड़न

UN के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में धार्मिक असहिष्णुता और नफरत से प्रेरित हिंसा में खतरनाक वृद्धि की ओर ध्यान खींचा है. विशेषज्ञों ने कहा कि अहमदी समुदाय को महीनों से लगातार हमलों, हत्याओं और अंतहीन उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है. ये हिंसा धार्मिक नफरत और घृणा के प्रचार से बढ़ रही है. पिछले एक साल में अहमदी समुदाय पर अत्याचारों की बाढ़ आ गई है. डास्का में एक ऐतिहासिक मस्जिद को ढहाया गया, आजाद कश्मीर में कब्रों को तोड़ा गया, कराची और लाहौर जैसे शहरों में अहमदी मस्जिदों को सील कर दिया गया. 

यहां धार्मिक उत्सवों के दौरान हिंसक हमले हुए और ब्लासफेमी (ईशनिंदा) के आरोप में हिरासत में ली गई महिलाओं को लैंगिक हिंसा का शिकार होना पड़ा. हिरासत में मौतें और मनमानी गिरफ्तारियां भी आम हो गई हैं. 

Advertisement

'हत्यारों को मिल रही खुली छूट'

UN विशेषज्ञों ने पाकिस्तान में अपराधियों को मिल रही खुली छूट की कड़ी निंदा की है. उनका कहना है कि अपराधी सरकारी मिलीभगत के साथ काम कर रहे हैं जिससे अल्पसंख्यकों में डर का माहौल है और उनके अधिकारों की रक्षा नहीं हो पा रही. कुछ गिरफ्तारियां और अदालती कार्रवाइयां हुई हैं लेकिन विशेषज्ञों ने सजा को नाकाफी बताया. ज्यादातर अपराधी जवाबदेही से बच निकलते हैं, जिससे हिंसा का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा. 

क्या है ब्लासफेमी कानून का रोल?

पाकिस्तान के कठोर ब्लासफेमी कानून इस हिंसा की जड़ में हैं. UN विशेषज्ञों ने इन कानूनों को खत्म करने की मांग की है, ताकि धार्मिक अल्पसंख्यकों पर अत्याचार रुक सकें. विशेषज्ञों ने कहा कि जब तक सरकार नफरत भरे भाषणों और हिंसा को रोकने के लिए ठोस कदम नहीं उठाएगी, तब तक कमजोर धार्मिक समुदाय गंभीर मानवाधिकार उल्लंघनों का शिकार होते रहेंगे. 

राष्ट्रीय सभा का प्रस्ताव बेअसर

जून 2024 में पाकिस्तान की राष्ट्रीय सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर सभी नागरिकों की सुरक्षा का आह्वान किया था लेकिन इसके बावजूद अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं. UN विशेषज्ञों ने पाकिस्तान से अपील की है कि वे अपने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों को पूरा करे और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करे. विशेषज्ञों ने ये भी कहा कि वे पाकिस्तान को इस दिशा में सहायता देने को तैयार हैं. 

Advertisement

इंसाफ मांग रहा अहमदी समुदाय 

पाकिस्तान में अहमदी समुदाय लंबे समय से भेदभाव और हिंसा का शिकार रहा है. मस्जिदों पर हमले, कब्रिस्तानों की बर्बादी, और धार्मिक स्वतंत्रता पर पाबंदियां उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन चुकी हैं. अहमदी समुदाय के एक सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि हमारा क्या कसूर है? हम सिर्फ अपने धर्म का पालन करना चाहते हैं लेकिन हमें जीने नहीं दिया जा रहा. बता दें कि UN विशेषज्ञों की ये चेतावनी ऐसे समय में आई है, जब पाकिस्तान पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. क्या सरकार इस चेतावनी पर अमल करेगी? 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement