'ऐसे तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा...', टाउन हॉल केस में राजघराने के दावे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राजघराने के दावों को खारिज कर दिया था. इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश को राजपरिवार की सदस्य पद्मिनी देवी, दीया कुमारी और पद्मनाभ सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

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अब दो महीने बाद केस की सुनवाई करेगी कोर्ट अब दो महीने बाद केस की सुनवाई करेगी कोर्ट

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 02 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:38 PM IST

जयपुर राजघराने की रानी पद्मिनी देवी, राजकुमारी दीया कुमारी और राजा पद्मनाभ सिंह समेत जयपुर राजपरिवार के सदस्यों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने राजस्थान सरकार से कहा कि जबतक ये मामला लंबित है तब तक कोई कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाएगा. इस मामले पर अब दो महीने बाद सुनवाई होगी.  

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हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती

राजस्थान हाईकोर्ट ने इसे सरकारी संपत्ति मानते हुए राजघराने के दावों को खारिज कर दिया था. इसके बाद हाईकोर्ट के आदेश को राजपरिवार की सदस्य पद्मिनी देवी, दीया कुमारी और पद्मनाभ सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. इस याचिका में राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी गई है जिसमें टाउन हॉल यानी पुराने विधानसभा भवन सहित चार मुख्य इमारतों को सरकारी संपत्ति घोषित किया गया था.

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याचिकाकर्ताओं के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने दलील दी कि यह मामला कानूनी पेचीदगियों से भरा हुआ है. उन्होंने कहा कि इसमें तीन महत्वपूर्ण मुद्दे संविधान के अनुच्छेद 362 और 363 में पूर्व शासकों और रजवाड़ों के विशेषाधिकार से जुड़े हैं. ये विभिन्न प्रकार के कॉन्ट्रैक्ट हैं और आप इन राज्यों का इतिहास जानते हैं. यह एक संधि है जिसमें संघ (Union) तो पक्ष भी नहीं था, यह तो जयपुर और बीकानेर आदि के शासकों के बीच हुई थी.

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'ऐसे तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा'

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा तो आप आपस में ऐसा करते हैं, बिना भारत संघ को पक्ष बनाए? आप कैसे विलय करते हैं? फिर तो पूरा जयपुर आपका हो जाएगा. ऐसे तो राजस्थान का हर शासक सभी सरकारी संपत्तियों पर अपना दावा करेगा! तो फिर ये रियासतें कहेंगी कि सारी संपत्तियां उनकी ही हैं. कोर्ट ने कहा कि अगर आप कहते हैं कि भारत संघ इस कॉन्ट्रैक्ट का पक्षकार नहीं था तो अनुच्छेद 363 लागू नहीं होगा.

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वरिष्ठ वकील साल्वे ने कहा कि यह मेरा तर्क नहीं है, अनुच्छेद 363 के तहत बार लागू नहीं होगा. कोर्ट ने कहा कि अगर रोक नहीं लगी तो हर कोई मुकदमा दायर करेगा. वैसे भी हम मुकदमे की वैधता यानी मेरिट पर चर्चा नहीं कर रहे हैं. हम सिर्फ इस मुद्दे से चिंतित हैं जो आपने उठाया है. इन 4 मुकदमों में भी शायद आधा जयपुर आपका ही होगा. खैर, हम नोटिस जारी करेंगे और हमें दूसरा पक्ष भी सुनना होगा.

राज्य सरकार ने मांगी मोहलत

राजघराने के पक्षकार साल्वे ने कहा कि हम यथास्थिति चाहते हैं. राज्य के वकील ने जवाब देने के लिए 6 सप्ताह की मोहलत मांगी है और दलील दी कि कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया जाए. कोर्ट ने नोटिस जारी किया जिसे राज्य के वकील ने स्वीकार कर लिया है. फिर कोर्ट ने कहा कि इस मामले में राज्य एसएलपी के लंबित रहने का सम्मान करेगा और इस मुद्दे में शामिल नहीं होगा.

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