सुप्रीम कोर्ट 2007 के गोरखपुर दंगों में सीएम योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ कथित भड़काऊ भाषण के आरोप में मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार करने वाली यूपी सरकार को चुनौती देने वाली याचिका पर आज अपना फैसला सुनाएगा. इस मामले में चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने 24 अगस्त को अपना आदेश सुरक्षित रख लिया था.
शीर्ष अदालत में इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें एक स्वतंत्र एजेंसी द्वारा कथित भड़काऊ भाषण की जांच की मांग करने वाली याचिका को खारिज कर दिया गया था. इस मामले में राज्य सरकार ने पिछले साल आदित्यनाथ योगी को अभियुक्त बनाने से ये कहकर मना कर दिया था और कहा था कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं हैं.
इस मामले में सुनवाई के अंत में याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने बहस करने में असमर्थता जताई. पीठ भी सिब्बल के मामले से हटने पर सहमत हो गई. उसने याचिकाकर्ता के मामले को स्थगित करने के अनुरोध को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. कपिल सिब्बल के बाद इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट फुजैल अहमद अय्यूबी ने तर्क दिए.
सुनवाई के दौरान वकील ने कहा कि योगी आदित्यनाथ ने भाषण देना स्वीकार किया. यह तर्क दिया गया था कि मंजूरी को पूरी तरह से गृह विभाग और कानून विभाग के बीच निपटाया गया है. मप्र पुलिस प्रतिष्ठान के मामले में 5 जजों की बेंच के फैसले के अनुसार, राज्यपाल को उनके स्वतंत्र निर्णय के लिए नहीं भेजा गया था. वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने याचिकाकर्ता के वकील द्वारा की गई प्रस्तुतियों पर आपत्ति जताई और अदालत से याचिका को खारिज करने का आग्रह किया.
कई धाराओं में दर्ज हुआ था मामला
याचिकाकर्ता ने साल 2007 में सीएम योगी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग करने की अपील की थी, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में सीजेएम को नए सिरे से फैसला करने का निर्देश दिया था. उसके बाद तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ और अन्य नेताओं के खिलाफ धारा 153, 153ए, 153बी, 295, 295बी, 147, 143, 395, 436, 435, 302, 427, 452 आईपीसी के तहत मामला दर्ज किया गया.
2012 तक रही जांच पर रोक
एफआईआर दर्ज होने के बाद राज्य सरकार ने एक आदेश पारित किया, जिसमें यूपी की अपराध शाखा, आपराधिक जांच विभाग (CBCID) को ट्रांसफर करने का निर्देश दिया गया. इस बीच एक आरोपी की ओर से इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. इसके बाद हाई कोर्ट ने मामले की जांच पर रोक लगा दी थी और ये रोक 2008 से 2012 तक रही.
क्या था पूरा मामला?
बता दें कि 11 साल पहले 27 जनवरी 2007 को गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था. इस दंगे में दो लोगों की मौत और कई लोग घायल हुए थे. इस दंगे के लिए तत्कालीन सांसद व मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ, विधायक राधा मोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की तत्कालीन मेयर अंजू चौधरी पर भड़काऊ भाषण देने और दंगा भड़काने का आरोप लगा था. कहा गया था कि इनके भड़काऊ भाषण के बाद ही दंगा भड़का था.
सृष्टि ओझा