सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जस्टिस यशवंत वर्मा द्वारा दायर उस याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है, जिसमें उन्होंने इन-हाउस इंक्वायरी कमेटी की रिपोर्ट को चुनौती दी थी. जस्टिस वर्मा ने यह भी सवाल उठाया था कि उनके खिलाफ अपनाई गई प्रक्रिया कानून सम्मत नहीं थी और मुख्य न्यायाधीश (CJI) द्वारा राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को की गई सिफारिश पर भी आपत्ति जताई थी.
सुनवाई के दौरान बेंच ने जस्टिस वर्मा के वकीलों से तीखे सवाल पूछे. कोर्ट ने साफ कहा, "इन-हाउस प्रक्रिया हमारे फैसलों से बनी है, यह देश का कानून है." कोर्ट ने यह भी कहा, "आपको पहले के निर्णयों को स्वीकार करना होगा जब तक आप पुनर्विचार में न आएं."
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CJI की भूमिका पर सवाल उठाने पर कोर्ट ने कहा, "CJI कोई पोस्ट ऑफिस नहीं है. वह न्यायपालिका के मुखिया के तौर पर नागरिकों के प्रति जिम्मेदार हैं." कोर्ट ने यह भी कहा, "अगर कोई अनुशासनहीनता का आधार है तो CJI राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सूचित कर सकते हैं."
कानूनी स्थिति और देरी पर टिप्पणी
इस मुद्दे पर कि क्या कोई कानून केंद्र को किसी जज को हटाने का अधिकार देता है, कोर्ट ने स्पष्ट किया, "अगर कोई ऐसा कानून होता तो केंद्र हटा सकता था, लेकिन ऐसा कोई कानून नहीं है, और अगर कोई कानून बनाया जाता है तो उसकी वैधता की जांच होगी."
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल द्वारा यह कहे जाने पर कि पूरी प्रक्रिया अब राजनीतिक हो चुकी है, कोर्ट ने कहा, "कमेटी की रिपोर्ट केवल प्रिलिमिनरी है. इसका असर आगे की कार्रवाई पर नहीं पड़ेगा. अगर ऐसा होता है, तो आपको उचित समय पर सही पक्षों के खिलाफ आना होगा, सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ नहीं."
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टेप्स रिलीज पर सहमति और प्रक्रिया का सम्मान
टेप्स के सार्वजनिक होने पर कोर्ट ने माना कि यह समय सही नहीं था और कहा, "इस मुद्दे पर हम आपके साथ हैं." हालांकि कोर्ट ने चुनौती की टाइमिंग पर भी सवाल उठाए और कहा, "अगर प्रक्रिया असंवैधानिक थी तो आप पहले क्यों नहीं आए?" कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक चुनौती के बारे में फैसला वो खुद करेगा. सिब्बल ने कहा, "मुझे अब कोर्ट की सोच का अंदाजा हो रहा है." जस्टिस दत्ता ने जवाब दिया, "न्यायपालिका को समाज को साफ संदेश देना होगा कि जो भी प्रक्रिया थी, वह सही तरीके से अपनाई गई थी."
अब सबकी निगाहें कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं कि क्या कोर्ट राहत देगा या मौजूदा प्रक्रिया की वैधता को ही मजबूत करेगा.
सृष्टि ओझा