'उद्देश्य अधिकार छीनना नहीं, एकरूपता लाना है...', हाईकोर्ट की नियुक्ति शक्तियों पर बोला सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट की शक्तियों, जिला जजों की वरिष्ठता और नियुक्ति नीति पर अहम बहस हुई. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से "हैंड्स ऑफ" नीति अपनाने की अपील की. सीजेआई गवई की पीठ ने कहा कि उद्देश्य केवल एकरूपता लाना है, अधिकार छीनना नहीं. अगली सुनवाई अगले सप्ताह होगी.

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सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट की शक्तियों पर बहस (Photo: ITG) सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट की शक्तियों पर बहस (Photo: ITG)

संजय शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 30 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:35 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में एक बेहद अहम संवैधानिक बहस हुई. देशभर की निचली अदालतों की वरिष्ठता तय करने के मानक और हाईकोर्ट में जज नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई की.

इस दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बेहद सख्त रुख अपनाया. हाईकोर्ट की ओर से पैरवी करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि इस मसले में सुप्रीम कोर्ट को “हैंड्स ऑफ” यानी दूर रहने की नीति अपनानी चाहिए, क्योंकि यह मामला संविधान के तहत हाईकोर्ट की शक्तियों के दायरे में आता है.

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द्विवेदी ने दलील दी कि संविधान के भाग VI के अध्याय VI में हाईकोर्ट्स को अपने अधीनस्थ न्यायाधीशों और अदालतों पर पूर्ण नियंत्रण का अधिकार दिया गया है. हर राज्य की स्थिति अलग होती है, इसलिए हाईकोर्ट ही अपने मुताबिक निर्णय लेने की बेहतर स्थिति में हैं.

सुप्रीम कोर्ट बोला – उद्देश्य अधिकार छीनना नहीं, एकरूपता लाना है

सीजेआई गवई ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट ऐसा कोई आदेश नहीं देगा जो हाईकोर्ट की नियुक्ति शक्तियों को प्रभावित करे. उन्होंने कहा, “हम हाईकोर्ट की विवेकाधीन शक्ति नहीं छीनेंगे. हमारा उद्देश्य केवल एकरूपता लाना है, न कि किसी के अधिकारों पर अतिक्रमण करना.”

अगले महीने पदभार संभालने वाले जस्टिस सूर्यकांत ने भी कहा कि अदालत केवल सामान्य दिशा-निर्देश तय करेगी, यह किसी की वरिष्ठता का फैसला नहीं है.

द्विवेदी बोले– हाईकोर्ट को कमज़ोर नहीं, मज़बूत करें

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राकेश द्विवेदी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व दिशा-निर्देशों और लंबित याचिकाओं के कारण यह मामला अब बहुत आगे बढ़ चुका है. उन्होंने कहा, “अगर यह प्रयोग और गलती की प्रक्रिया है, तो इसे हाईकोर्ट्स पर छोड़ दें. उन्हें उनके संवैधानिक कर्तव्यों से वंचित न करें.”

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पदोन्नति और भर्ती प्रक्रिया पर चर्चा

द्विवेदी ने यह भी कहा कि जिला जजों के पदों पर पदोन्नति के पर्याप्त अवसर पहले से मौजूद हैं. सिविल जज (जूनियर डिवीजन) भी उच्च न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल हो सकते हैं.

उन्होंने पदोन्नति और प्रत्यक्ष भर्ती की तुलना अमरनाथ यात्रा से करते हुए कहा, “कोई कठिन लेकिन छोटा रास्ता चुनता है, कोई लंबा लेकिन आसान. मंज़िल दोनों की एक ही है - हाईकोर्ट जज की कुर्सी.”

एक समान नीति की ज़रूरत पर संकेत

पीठ ने भी संकेत दिया कि जिला न्यायपालिका में पदोन्नति, प्रत्यक्ष भर्ती और लैटरल एंट्री के लिए एक समान नीति की ज़रूरत हो सकती है.

पंजाब-हरियाणा और पश्चिम बंगाल हाईकोर्ट के वकीलों ने भी डेटा प्रस्तुत किया, जिससे पता चला कि अब निचली न्यायपालिका और वकीलों के बीच योग्यता का अंतर कम हो रहा है.

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आगे की सुनवाई

इस अहम मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अगले सप्ताह भी सुनवाई जारी रखेगी. यह मामला तय करेगा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों की सीमाएँ कहाँ तक जाती हैं और भविष्य में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और समान होगी.

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