साल 1984, आज से 40 साल पहले इंडियन एयरलाइंस के एक विमान को सात खालिस्तानी आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया था. चालक दल ने प्लेन में सवार 79 यात्रियों को नाश्ता परोसा ही था कि चंडीगढ़ से विमान में चढ़े सात लोग अपनी-अपनी सीटों से उठे और कॉकपिट में घुस आए और बोले- इस प्लेन को हाईजैक कर लिया गया है.
बोइंग 737-2A8 के केबिन में 'खालिस्तान जिंदाबाद', 'भिंडरावाले जिंदाबाद' के नारे गूंज रहे थे. इंडियन एयरलाइंस का प्लेन दिल्ली से उड़ान भरकर चंडीगढ़ और जम्मू में रुकते हुए श्रीनगर जा रहा था. यह घटना 24 अगस्त 1984 की है यानी आज से ठीक 40 साल पहले.
जर्मन पिस्तौल से संभव हुआ हाईजैक
चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर खालिस्तानी आतंकवादी प्लेन में सवार हुए थे. 1984 का यह वो समय था जब पंजाब उथल-पुथल और तनाव के दौर से गुजर रहा था. कुछ महीने पहले ही भारतीय सेना ने स्वर्ण मंदिर में घुसकर हथियारबंद आतंकवादियों को खदेड़ दिया था, जो जरनैल सिंह भिंडरावाले के नेतृत्व में स्वर्ण मंदिर के भीतर घुस गए थे.
1999 में कंधार के IC 184 हाईजैक से 14 साल पहले अगस्त 1984 में IC 421 का हाईजैक भारतीय विमानन इतिहास में सबसे लंबा और तनाव से भरा हुआ विमान अपहरण है. 36 घंटों के इस हाईजैक में बोइंग जेट ने कम से कम चार अलग-अलग हवाई अड्डों के बीच उड़ान भरी. जिस चीज ने इस अपहरण को संभव बनाया, वह थी एक सफेद जर्मन पिस्टल, जो एक कागज में लिपटी हुई थी और लाहौर में विमान के भीतर दाखिल हुई थी.
लाहौर की तरफ मुड़ा विमान
24 अगस्त, 1984 की सुबह बोइंग 737-2A8 ने दिल्ली के पालम एयरपोर्ट से चंडीगढ़ और जम्मू होते हुए श्रीनगर के लिए उड़ान भरी. जैसे ही विमान चंडीगढ़ पहुंचा, प्रतिबंधित ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन से जुड़े सात आतंकी इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट 421 के कॉकपिट में घुसे. सभी की उम्र 18-20 साल के आसपास थी.
इंडिया टुडे मैग्जीन की 1984 की एक रिपोर्ट के अनुसार, अपहरणकर्ताओं ने कृपाण लहराए और विमान को लाहौर ले जाने की मांग की. उन्होंने लाहौर को इसलिए चुना क्योंकि उन्हें पता था कि क्षेत्रीय जेट की रेंज पश्चिम तक उड़ान भरने की नहीं है. सीमा पार लाहौर में उतरने से पहले खालिस्तानी आतंकवादियों ने पायलट को स्वर्ण मंदिर के ऊपर आसमान में दो बार चक्कर लगाने के लिए मजबूर किया.
पाकिस्तान में उतरा प्लेन
जैसे ही विमान पाकिस्तानी वायुक्षेत्र में पहुंचा, लाहौर में वायु नियंत्रकों ने उसे उतरने की अनुमति नहीं दी. पाकिस्तानियों ने रनवे को भी ब्लॉक कर दिया. विमान में ईंधन कम हो रहा था, जिससे पायलट के पास बहुत कम विकल्प बचे थे. लाहौर के ऊपर 80 मिनट तक चक्कर लगाने के बाद, नियंत्रकों ने सुबह 9.50 बजे इसे उतरने की अनुमति दी. लाहौर में उतरना इस हाईजैक का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ. जब विमान लाहौर में खड़ा था, तब भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल जिया-उल-हक से अनुरोध किया कि विमान को लाहौर से बाहर न जाने दिया जाए.
लाहौर से उड़ते ही हाईजैकर ने निकाली पिस्तौल
ऐसा नजर आ रहा था कि हाईजैकर्स के पास कोई स्पष्ट रणनीति नहीं थी. वे पाकिस्तानी अधिकारियों के साथ विचार-विमर्श कर रहे थे और अपने अगले ठिकाने के लिए नक्शों को उलट-पलट रहे थे. घंटों की मशक्कत के बाद जैसे ही विमान ने उड़ान भरी, अपहरणकर्ताओं में से एक ने पायलट के सामने पिस्तौल तान दी.
कैप्टन वीके मेहता ने इंडिया टुडे को बताया, 'लाहौर से निकलने के बाद अचानक प्लेन में हथियार को देखना बेहद हैरानी की बात थी. हैरानी इसलिए क्योंकि लाहौर में उतरने से पहले हाईजैक में अब तक किसी ने कोई हथियार बाहर नहीं निकाला था. वो जिन 'ग्रेनेड' और 'टाइम बम' से लोगों को डरा रहे थे वो नकली थे.
नकली हथियारों के साथ आए थे हाईजैकर्स
दो ब्रिटिश नागरिकों, डोमिनिक बार्कले और उनकी पत्नी ने बाद में दावा किया कि उन्होंने पाकिस्तानी अधिकारियों को अपहरणकर्ताओं को एक पार्सल देते हुए देखा था. इससे पता चलता है कि खालिस्तानी आतंकियों के पास पिस्तौल कहां से आई. यह एकमात्र असली हथियार था जो इस पूरे हाईजैक के दौरान उनके पास था.
डोमिनिक बार्कले ने 1984 में इंडिया टुडे को बताया, 'मैंने लाहौर में विमान से एक अपहरणकर्ता को उतरते और कागज में लिपटा एक पैकेट लेते हुए देखा. वह भागते हुए विमान में आया और पैकेट से पिस्तौल निकाली.'
फ्लाइट अटेंडेंट अनीता सिंह ने द क्विंट से बातचीत में बताया, 'शुरुआत में अपहरणकर्ताओं के पास हथियार नहीं थे. उन्होंने एक डिजिटल घड़ी को कैमरे पर लगाया, उसे कपड़े में लपेटा और उसे टाइम बम बता रहे थे. मेरी ट्रेनिंग की वजह से मुझे पता था कि यह नकली है. उनके पास पगड़ी के पिन भी थे, जिनके बारे में उनका दावा था कि ये जहरीले हैं.'
दुबई में नहीं मिली लैंडिंग की अनुमति
जो हाईजैक लाहौर में कुछ घंटों में ही खत्म हो सकता था, वो इस तरह 36 घंटे तक खिंच गया और विमान ने दो और लैंडिंग की. विमान ने कराची में फिर से ईंधन भरा. इंडिया टुडे के पत्रकार राजू संथानम और दिलीप बॉब ने बताया, 'लाहौर में रुकने और रिवॉल्वर मिलने से अपहरणकर्ताओं का कॉन्फिडेंस काफी बढ़ गया था.'
दुबई में, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के अधिकारियों ने शुरू में विमान को उतरने की अनुमति देने से इनकार कर दिया, जिससे तनाव की स्थिति पैदा हो गई. विमान में ईंधन भी कम था. बोइंग 737-2A8, जो बाद में बोइंग 737 MAX में बदल गया, उन दिनों लंबी दूरी तक उड़ान नहीं भर सकता था.
यूएई के अधिकारियों ने एक घंटे से अधिक समय तक इंडियन एयरलाइंस के विमान को उतरने की अनुमति नहीं दी. उन्होंने एयरपोर्ट की लाइटें और रेडियो बीकन बंद कर दिए ताकि पायलट अंधेरे में विजुअल लैंडिंग का प्रयास न कर सकें.
जैसे-जैसे समय बीतता गया, केबिन क्रू मेंबर रीता सिंह ने यात्रियों को बताया कि अगर विमान को जल्द ही एयरपोर्ट पर उतरने की अनुमति नहीं दी गई तो पायलटों को दुबई के समुद्र में पानी में उतरने की कोशिश करनी पड़ेगी.
बचा था सिर्फ 5 मिनट का ईंधन
कैप्टन मेहता ने दुबई के अधिकारियों से लैंडिंग का अनुरोध किया लेकिन अधिकारी अड़े रहे. इंडिया टुडे की 1984 की रिपोर्ट में कहा गया, 'स्थानीय समयानुसार सुबह 4.50 बजे, मेहता ने वह नजारा देखा जो उनके जीवन का सबसे सुखद नजारा रहा होगा- दुबई एयरपोर्ट की लाइटें चमक उठीं क्योंकि आखिरकार उन्हें उतरने की अनुमति मिल गई थी.' जब विमान दुबई में उतरा तो उसमें सिर्फ पांच मिनट का ईंधन बचा था. तब तक इस हाईजैक को 22 घंटे बीत चुके थे.
भारत और यूएई ने शुरू की बातचीत
इधर अपहरणकर्ता प्लेन को अमेरिका ले जाने की जिद कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ भारतीय अधिकारियों ने यूएई के अपने समकक्षों के साथ बातचीत शुरू कर दी थी. यूएई के रक्षा मंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम सक्रिय रूप से अगले 14 घंटों तक बातचीत करने के लिए आगे आए. यूएई के वर्तमान प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूम स्थिति को व्यक्तिगत रूप से संभालने के लिए अपने निजी विमान से यूरोप से दुबई वापस आ गए थे. कतर जाने के लिए दुबई में मौजूद भारतीय विदेश राज्य मंत्री एए रहीम भी बातचीत में शामिल हुए. यूएई में भारतीय राजदूत इशरत अजीज भी हवाई अड्डे पर पहुंचे.
36 घंटे बाद खुली हवा में ली सांस
दुबई की भीषण गर्मी में विमान जब टर्मिनल पर खड़ा था, तब दो एम्बुलेंस प्लेन के पास पहुंचीं. दिल्ली के रक्षा अध्ययन और विश्लेषण संस्थान (आईडीएसए) के तत्कालीन निदेशक के. सुब्रह्मण्यम को डायबिटीज थी और उन्हें तत्काल इंसुलिन इंजेक्शन की जरूरत थी. कुछ घंटों बाद, विमान में खाना और पानी चढ़ाया गया.
शाम 6.50 बजे, यात्रियों को महसूस हुआ कि कुछ सफलता मिली है क्योंकि उन्होंने दुबई नेशनल एयरलाइंस ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के दो कोच विमान के पास आते देखे. 10 मिनट बाद सभी यात्रियों और चालक दल ने 36 घंटों के तनाव और थकान के बाद खुली हवा में सांस ली और हाईजैकर्स को एक वैन में ले जाया गया.
भारत प्रत्यर्पित किए गए अपहरणकर्ता
अपहरणकर्ताओं की अमेरिका या लंदन भेजे जाने की मांग के विपरीत, यूएई सरकार ने उन्हें दो विकल्प दिए. वे या तो यूएई कानून के तहत मुकदमे का सामना कर सकते थे या फिर मुकदमे के लिए भारत वापस भेजे जा सकते थे.
यूएई की मौत की सजा की तुलना में भारत की जेल में जिंदगी गुजारना एक आसान विकल्प था. बाद में, अपहरणकर्ताओं को यूएई अधिकारियों द्वारा भारत प्रत्यर्पित कर दिया गया. बचाए गए यात्रियों और चालक दल को यूएई द्वारा वापस भारत भेज दिया गया.
ISI ने दी थी हाईजैकर्स को पिस्तौल
कई वर्षों बाद, पाकिस्तान में एक दशक से अधिक समय बिताने वाले शिक्षाविद हेन जी कीसलिंग की एक किताब में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई की भूमिका का खुलासा हुआ, जिसने 24 अगस्त 1984 को लाहौर हवाई अड्डे पर अपहरणकर्ताओं को पिस्तौल दी थी. बाद में पता चला कि पिस्तौल पश्चिमी जर्मनी द्वारा पाकिस्तान सरकार को प्रदान की गई थी.
सुशीम मुकुल