पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता स्मृति ईरानी ने आजतक को दिए खास इंटरव्यू में देश के कई मुद्दों को लेकर बात की. इंटरव्यू के दौरान उन्होंने सदन में अपने आक्रमक होने के लेकर भी बात की है. उन्होंने कहा कि इंसान को गुस्सा तब आता है, जब उसके विश्वास को चुनौती दी जाए.
इंटरव्यू के दौरान जब स्मृति से पूछा गया कि अक्रमक होने, गुस्सा आना ये फायदेमंद हुआ या नहीं?. इसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि इंसान आक्रमक तब होता है, जब उसके विश्वास को चुनौती दी जाए. संसद में मुझे आक्रमक होते हुए कब-कब देखा, जब सदन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू पर बहुत दकियानूसी और उनको अपमानित करने वाले जो शब्द कहे गए, उसके विरोध में मैंने अपना गुस्सा व्यक्त किया. मैं देश के राष्ट्रपति के बचाव में लोगों को गुस्से में दिखाई दी.
'मैं बैठकर तमाशा नहीं देखूंगी'
उन्होंने आगे कहा कि जब आपने टुकड़े-टुकड़े हो के नारों के खिलाफ मेरा वक्तव्य संसद में सुना, मेरा आक्रोशित होना स्वाभाविक था. आप मेरे देश को गाली देंगे तो, मैं बैठकर तमाशा नहीं देखूंगी. गुस्सा होने लाभ या नुकसान देता है एक औरत के लिए मैं नहीं जानती. लेकिन मेरे लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक ये है कि जिस चीज में मैं सबसे ज्यादा विश्वास रखती हूं, उसके खिलाफ आवाज ना उठाऊं.
मेरे पास नहीं है दायित्व: स्मृति ईरानी
वहीं, जब उसने पूछा गया कि आज कल आप राहुल गांधी पर कम आक्रमक हो गई हैं तो उन्होंने कहा कि मेरे पास वो दायित्व नहीं है. पहले मेरे पास जिम्मेदारी थी. मैं उनके पीछे-पीछे नहीं भाग सकती. अमेठी कभी जीतने वाली सीट थी ही, नहीं. अमेठी से कई राजनीतिक दिग्गज लड़े, लेकिन वो हार गए.
क्यों हारीं अमेठी में चुनाव?
अमेठी के लोगों ने स्मृति को क्यों नहीं जिताया? इस सवाल के जवाब में स्मृति ईरानी ने कहा कि काम और राजनीतिक समीकरण में फर्क होता है जो लोग राजनीति में हैं वो इसको समझते हैं, राजनीति का राष्ट्रनीति से कोई लेना-देना नहीं है. मैं राष्ट्रनीति में सम्मिलित हूं. मैं कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को हरा चुकी हूं तो थोड़े तंज तो सहने पड़ेंगे.
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