सुप्रीम कोर्ट ने शिवसेना के नाम और चुनाव चिह्न (धनुष-बाण) को लेकर उद्धव ठाकरे बनाम एकनाथ शिंदे गुटे के मामले पर सुनवाई को अगस्त 2025 तक के लिए टाल दी है. इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन पहले तो मुख्य मामले पर सुनवाई होनी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उद्धव ठाकरे गुट की उस याचिका पर सुनवाई की, जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग के उस फैसले को चुनौती दी थी. जिसमें उन्होंने शिंदे गुट को शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न दे दिया था.
ठाकरे गुट के वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में तर्क किया कि अंतरिम राहत पहले संविधान की पीठ के फैसले से दी गई थी, लेकिन अब मुख्य मामले की सुनवाई होनी चाहिए.
'अंतरिम आदेश का लाभ उठा रहे हैं वो'
उन्होंने ये भी कहा कि शिंदे गुट गलत आधार पर दिए गए अंतरिम आदेश का लाभ उठा रहा है और आगामी नगर निगम चुनाव की अधिसूचना कभी भी जारी हो सकती है.
उद्धव के वकील ने कहा कि मुख्य मामले की सुनवाई होनी चाहिए, लेकिन ये अंतरिम आदेश संविधान पीठ के फैसले के विपरीत है. ये सदन में बहुमत फैसले के आधार पर नहीं हो सकता.
'हो चुके हैं दो चुनाव'
इस पर शिंदे गुट के वरिष्ठ वकील एनके कौल ने कहा कि इस बीच दो चुनाव हो चुके हैं. वह कैसे कह सकते हैं कि आदेश पारित किया जाना चाहिए?
आते-जाते रहेंगे चुनाव: SC
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चुनाव तो आते-जाते रहेंगे और आप चुनाव लड़ते रहेंगे, लेकिन हमें पहले मुख्य मामले की सुनवाई करनी होगी, जिसके लिए कम से कम पूरा दिन की आवश्यकता है.
अदालत ने कहा कि हम इसके लिए अगस्त की तारीख तय करेंगे, क्योंकि इसमें कम से कम एक पूरा दिन तो चाहिए.
क्या है मामला
दरअसल, शिवसेना ने जून 2025 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में 39 विधायकों के साथ मिलकर विद्रोह कर दिया था और महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. इसके बाद शिवसेना दो गुटों में बंट गई थी.
वहीं, फरवरी 2023 में चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को शिवसेना नाम और चुनाव चिह्न आवंटित कर दिया था, जबकि उद्धव ठाकरे गुट को ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ नाम और चुनाव चिह्न मशाल दिया गया था. उद्धव गुट ने इस फैसले को असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.
उद्धव ठाकरे गुट ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग ने 1999 के पार्टी संविधान को आधार बनाया है, लेकिन 2018 में संशोधित संविधान में पार्टी अध्यक्ष को सबसे ज्यादा अधिकार दिए गए हैं तो वहीं, शिंदे गुट का दावा है कि उनके पास विधायी बहुमत है. इसीलिए वही शिवसेना हैं.
अनीषा माथुर