संघ के 100 साल: 1965 के युद्ध में जब शास्त्रीजी ने मांगी थी गुरु गोलवलकर से सहायता

एक दोपहर गुरु गोलवलकर भोजन के बाद आराम कर रहे थे. तभी एक संदेशवाहक आया और उनसे कहा कि वे जल्द से जल्द प्रधानमंत्री कार्यालय संपर्क करे. मामले की गंभीरता समझ गोलवलकर ने पीएमओ फोन लगाया. यहां उनकी बात प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से हुई. पाकिस्तान के साथ युद्ध में उलझे पीएम शास्त्री ने कहा कि आप फौरन दिल्ली पहुंचिए. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है उसी घटना का वर्णन.

Advertisement
1965 की लड़ाई में गुरु गोलवलकर ने देश से एकजुटता का आह्वान किया. (Photo: AI generated)) 1965 की लड़ाई में गुरु गोलवलकर ने देश से एकजुटता का आह्वान किया. (Photo: AI generated))

विष्णु शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 03 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:13 AM IST

अगस्त 1965 में भारत-पाक युद्ध शुरू होने से करीब ढाई महीने पहले प्रवास खत्म कर नागपुर में तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन पर गुरु गोलवलकर पहुंचे तो एक हृदय विदारक खबर मिली कि भैयाजी दाणी का निधन इंदौर के वर्ग में हो गया है. गुरु गोलवलकर ने किसी को पता नहीं चलने दिया कि उनको व्यक्तिगत तौर पर इस खबर से कितना बड़ा झटका लगा है, उन्होंने अपना बौद्धिक सत्र सामान्य तौर पर ही लिया. बाद में गीता प्रेस के संस्थापक और अपने गुरु भाई हनुमान पोद्दार को एक पत्र में लिखा कि, “समाचार सुनते ही लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन निकल गई है”.

Advertisement

लम्बा प्रवास और ऐसी खबर, डॉ आबाजी थट्टे को कुछ दिनों के बाद लगा कि गुरु गोलवलकर कमजोर और बीमार लग रहे हैं, उन्होंने बाला साहब देवरस को बताया और फिर तय किया गया कि गुरु गोलवलकर को स्वास्थ्य लाभ के लिए केरल के एक आयुर्वेदिक आश्रम में भेज दिया जाना चाहिए. ये जुलाई का महीना था. पूरे 28 दिन गोलवलकर वहां रहे, आयुर्वेदिक पद्धतियों से उनका इलाज हुआ, वहां भी आसपास के नगरों से स्वयंसेवक उनसे मिलने आते रहे, फिर चेन्नई होते हुए वह अगस्त के पहले सप्ताह में वापस नागपुर लौटे. उसी हफ्ते भारत-पाकिस्तान युद्ध छिड़ गया.

6 सितम्बर का दिन था. गुरु गोलवलकर दोपहर के खाने के बाद राज्य के संघचालक काकाजी लिमए के घर पर आराम कर रहे थे कि उनके पड़ोसी बापूसाहेब पुजारी के नंबर पर 2 से 2.30 बजे के बीच एक संदेश आया कि गुरु गोलवलकर कृपया शीघ्रातिशीघ्र प्रधानमंत्री कार्य़ालय से सम्पर्क करें. उनको एक नंबर भी दिया गया था, जिस पर संपर्क करना था. मामला गंभीर दिखता था, गुरु गोलवलकर बापू साहेब पुजारी के घर पहुंचे और दिए गए नंबर पर फोन किया. वहां प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी से बात हुई. शास्त्री जी ने कहा, “आपको तो पता ही है युद्ध चल रहा है, मैं देश के सभी नेताओं से सहयोग चाहता हूं. मैंने सभी दलों के नेताओं को सुबह 10 बजे बैठक में बुलाया है, आप भी रहिए”.  

Advertisement

 ‘लेकिन मैं तो किसी राजनीतिक दल का नेता नहीं’

गुरु गोलवलकर का जवाब था, “धन्यवाद शास्त्रीजी, लेकिन मैं तो किसी राजनीतिक दल का नेता नहीं हूं, एक संस्था का बस कार्यकर्ता हूं”. तब शास्त्रीजी को ध्यान आया, फिर बोले, “देखिए देश अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा है और मुझे आपकी सहायता चाहिए”. इस बात पर गुरूजी राजी थे. कहा, ये स्वीकार है, लेकिन मैं इतनी दूर से एकदम सुबह में कैसे पहुंच सकता हूं? शास्त्रीजी सब कुछ पहले ही इंतजाम कर चुके थे. बोले- आप फौरन बम्बई निकलिए, वहां व्यवस्थाएं की जा रही हैं. मैंने निर्देश दे दिए हैं. और वाकई में सब अच्छे से हो भी गया, गुरु गोलवलकर भी ऑल पार्टी मीटिंग में प्रधानमंत्री के साथ उपस्थित रहे. शास्त्री ने इस बैठक में पूरे युद्ध की जानकारी दी कि कैसे पाकिस्तान के साथ हम कच्छ में समझौते के लिए तैयार हैं, लेकिन अब उसने कश्मीर में घुसपैठ शुरू कर दी है, वो अखनूर से हमारा कनेक्शन काटना चाहता है. ऐसे में गुरु गोलवलकर ने ना केवल मुश्किल के वक्त देश को एकजुट रखने का आव्हान किया बल्कि सभी से ये भी कहा कि इस दौरान कोई भी आंदोलन ना हो, अभी लोगों को समझा लें.

7 सितम्बर की इस बैठक के बाद 8 सितम्बर को गुरु गोलवलकर का आम जनता के लिए एक अपील रूपी संदेश प्रसारित हुआ, “मैं अपने देशवासियों, विशेष तौर पर संघ के स्वयंसेवकों से अपील करता हूं कि इस मुसीबत की घड़ी में उठने वाली समस्याओं के समाधान के लिए सरकार के साथ मिलकर काम करें. विस्थापितों, बीमारों और घायलों की सेवा करने, कानून-व्यवस्था बनाए रखने और सामान्य तौर पर मनोबल बनाए रखने, तीव्र राष्ट्रीय चेतना जगाने और पूरे देश में जीत के लिए लड़ने की इच्छाशक्ति पूरे देश की जनसंख्या में जगानी है”.
 
जब गुरु गोलवलकर ने कहा- ‘आपकी सेना’ नहीं ‘हमारी सेना’ कहिए

Advertisement

इस बैठक में क्या हुआ था, इसके बारे में गुरु गोलवलकर ने चार साल बाद मार्च 1970 में नागपुर की एक बैठक के दौरान बताया था. जिसे रंगा हरि ने उनकी आत्मकथा में संकलित किया है. गुरु गोलवलकर ने एक वाकया भी सुनाया कि कैसे एक नेता बार-बार शास्त्रीजी को आपकी सेना, आपकी सेना बोल रहे थे. गुरु गोलवलकर ने उन्हें तब तक टोकना जारी रखा, जब तक वो ‘हमारी सेना’ नहीं बोलने लगे. वो हैरान थे कि कोई ऐसा कैसे बोल सकता है?

तत्कालीन पीएम शास्त्री ने 1965 की लड़ाई पर गोलवलकर से चर्चा की. (Photo: AI generated)

पहली बार शायद गुरु गोलवलकर इतने राजनैतिक दलों के प्रतिनिधियों के साथ एक साथ बैठ रहे थे. तभी तो उनको ये देखकर बड़ी हैरानी हुई कि लोग ऐसे एक दूसरे के साथ व्यवहार कर रहे थे, मानो सभी अलग अलग देशों से आए हों. ऐसे संकट के समय भी वो एकजुटता नहीं दिखा पा रहे थे.

RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी 

इस बैठक के बाद गुरु गोलवलकर तीन या चार दिन दिल्ली में रुके और इस दौरान वहां दिल्ली के संघचालक, प्रांत कार्यवाह और बाक़ी वरिष्ठ स्वयंसेवकों के साथ बैठक की और योजना बनाई कि संघ के स्वयंसेवकों को देश भर में करना क्या है. उसके बाद वो गुजरात निकल गए. 19 सितम्बर को आकाशवाणी के वड़ोदरा केंद्र से उनका सम्बोधन भी हुआ और इस संबोधन में भी उन्होंने बोला कि कैसे युद्ध में भारत अच्छा कर रहा है और हमें क्या करना है. उन्होंने देशवासियों से अपील की कि ऐसे समय में सरकार का साथ दें. विजय के लिए कामनाएं करें, देश के लिए जो भी कर सकते हों, करें, गुजरात बॉर्डर स्टेट है, वहां से वो दूसरे बॉर्डर स्टेट पंजाब चले गए.
 
शास्त्रीजी को दिए सुझाव कि समझौते में क्या क्या होना चाहिए

Advertisement

अम्बाला में उन्होंने आर्मी जवानों को संबोधित किया. लगभग सभी बड़े अधिकारी उस वक़्त उनका संबोधन सुनने के लिए आए थे, 12 नवम्बर को वो प्रधानमंत्री शास्त्री से दोबारा मिले. साथ में रक्षा मंत्री यशवंत राव चाह्वाण भी थे. उसके बाद 14 नवम्बर को उन्होंने लाल किले के मैदान से एक सभा को सम्बोधित किया. उसके बाद जब ये ख़बर आई कि रूस में एक द्विपक्षीय वार्ता होनी है जहां शास्त्रीजी भी जा रहे हैं तो गोलवलकर ने उन्हें अपने विचार लिखकर भेजे कि वार्ता के दौरान अगर कोई समझौता होता है तो समझौते में उनके हिसाब से क्या-क्या होना चाहिए. उसके बाद गुरु गोलवलकर असम के दौरे पर निकल गए. वहीं उन्हें ख़बर मिली कि ताशकंद में शास्त्रीजी का निधन हो गया है. गोवाहाटी से वो उसी दिन दिल्ली के लिए निकल गए और शास्त्रीजी को श्रद्धांजलि दी. 13 जनवरी को राष्ट्रपति से भी मुलाक़ात की और उन्हें संघ की तरफ से शोक संदेश भी दिया.
 
आडवाणी और कोमी कपूर ने क्या लिखा इस मुलाकात पर

लाल बहादुर शास्त्री और गुरु गोलवलकर की इस मुलाकात को लेकर अपनी जीवनी ‘माई कंट्री माई लाइफ’ में लाल कृष्ण आडवाणी ने लिखा है कि, "Unlike Nehru, Shastri did not harbour any ideological hostility towards the Jana Sangh and the RSS. He used to often invite Shri Guruji [Golwalkar] for consultation on national issues... I had met Shastri as the weekly’s representative several times, each time carrying a positive impression of this remarkably short-statured but large-hearted Prime Minister." तो वहीं कोमी कपूर ने अपनी किताब ‘द इमरजेंसी ए पर्सनल हिस्ट्री’ में लिखा है कि "Shastri broke from Nehru's playbook by treating the RSS not as an adversary but a resource. In 1965, he personally invited Golwalkar to the all-party war council—a first—and tasked RSS volunteers with relieving Delhi Police for frontline duties. This wasn't tokenism; thousands of swayamsevaks delivered supplies to troops, echoing Shastri's 'Jai Jawan' ethos.”
 
दिल्ली के ट्रैफिक से कश्मीर की हवाई पट्टियों तक जुटे स्वयंसेवक

Advertisement

कोमी कपूर ने साफ लिखा है कि हजारों स्वयंसेवक युद्ध लड़ रहे जवानों के लिए रसद पहुंचाने में जुट गए. इस रसद में ना केवल भोजन पैकेट थे, बल्कि दवाइयां व जरूरत का अन्य सामान भी था. टाइम्स ऑफ इंडिया ने उस वक्त की रिपोर्ट में लिखा था कि स्वयंसेवकों ने फौरन राजधानी दिल्ली की ट्रैफिक व्यवस्था को संभाल लिया. देश भर में स्वयंसेवकों ने रक्तदान शिविर भी लगाए. खून की घायल सैनिकों को आवश्यकता भी थी, जो आसानी से अब पूरी हो गई थी. युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाई पट्टियों से बर्फ़ हटाने का काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था. ये काम स्वयंसेवकों ने 1947 के युद्ध में भी किया था. राष्ट्रीय एकता और मनोबल बढ़ाने वाले कार्यक्रम भी संघ ने आयोजित किए, स्वयंसेवकों ने देशभर में जागरूकता रैलियां, शाखा सभाएं और सामुदायिक कार्यों के माध्यम से जनता का मनोबल ऊंचा रखा, साथ ही युद्ध प्रयासों के लिए स्वयंसेवा की अपील की. आप सोचिए ये सब कार्यक्रम लगभग हर शहर, कस्बे में हो रहे थे. दूसरी स्वयंसेवक सेना के तौर पर काम रहे थे संघ के स्वयंसेवक. शास्त्री जी 1962 के युद्ध में देख ही चुके थे कि संघ के कार्यकर्ता मुसीबत के समय कैसे कई मोर्चों पर एक साथ काम करते हैं और संघ ने उन्हें निराश भी नहीं किया.

Advertisement

पिछली कहानी: जब स्वयंसेवकों की मदद से ब्रिगेडियर प्रीतम सिंह ने रातोरात एयरस्ट्रिप बना पुंछ को बचाया था 

अगली कहानी: दो पत्रकारों की मुहिम, ब्रायन लारा के देश के एक सांसद का दौरा... और रखी गई VHP की नींव 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement