संघ के 100 साल: ऐसे हुई थी 'सेवा भारती' की स्थापना, पीएम मोदी से भी जुड़ता है एक लिंक

दिल्ली का तिमारपुर. एक पिछड़ी बस्ती में अपनी नौकरी छोड़ चुका एक इंजीनियर बच्चों को अंग्रेजी, गणित और विज्ञान पढ़ा रहे थे. इन बच्चों के नतीजे बहुत अच्छे थे. इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ने वाले ये शख्स विष्णुजी थे. सेवा भारती की बुनियाद में विष्णुजी का अहम योगदान है. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है वही कहानी.

Advertisement
सेवा भारती आज 40 देशों में काम कर रहा है. (Photo: AI generated) सेवा भारती आज 40 देशों में काम कर रहा है. (Photo: AI generated)

विष्णु शर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 19 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 11:21 AM IST

जब पूरा देश आपातकाल में लगने वाली पाबंदियों से त्रस्त था, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े कई नेता प्रतिबंध के चलते या तो जेल में थे या फिर भूमिगत रहकर आंदोलन को दिशा दे रहे थे, उसी समय संघ प्रमुख बालासाहब देवरस एक नए संगठन की योजना बना रहे थे. ऐसा संगठन जिसका ना कोई राजनैतिक उद्देश्य हो और ना ही कोई उस पर इस तरह का आरोप ही लगा सके. 21 मार्च 1977 को आपातकाल हटाकर इंदिरा गांधी सरकार ने चुनाव करवाने का ऐलान किया और इधऱ संघ के दिल्ली के स्वयंसेवक दिल्ली गेट के पास फुटबॉल स्टेडियम में एक सभा में जुटे थे.

Advertisement

उस सभा में बालासाहब ने कहा कि, “संघ एक ऐसा समरस समाज विकसित करना चाहता है, जहां किसी के साथ जाति के आधार पर भेदभाव नहीं होगा. समरस एवं समृद्ध समाज भाषणों या नारों से नहीं बनाया जा सकता. ऐसे समाज के निर्माण के लिए एक कठिन तपस्या की आवश्यकता है. जातिगत भेदभाव तथा अस्पृश्यता हमारे समाज के घातक रोग हैं. अब समय आ गया है कि स्वयं कृष्ण को सुदामा के घर जाना होगा. स्वयं जाकर समस्याओं तथा कमियों को समझना होगा, उनका निदान करना पड़ेगा.”

बहुत कम लोगों को पता है कि नागपुर में संघ से जुड़ने के बाद बालासाहब देवरस ने दो साल तक एक अनाथालय में पढ़ाया था. उनके पड़ोसी भी कई पिछड़े परिवार थे, सो शुरुआत से ही उनकी परेशानियां समझते थे. कैसे कोई गरीब आर्थिक या सामाजिक स्थिति बेहतर करे, इसकी उनके मन में योजनाएं चलती रहती थीं. संघ भी तमाम संगठनों के जरिए ऐसे सेवा के कार्यक्रम चला रहा था. कुष्ठ आश्रम, वनवासी कल्याण आश्रम जैसे संगठन खड़ा करना उसी प्रक्रिया का हिस्सा था. युद्ध की परिस्थितियां हों, विभाजन या युद्ध के शरणार्थी हों, संघ की भूमिका की तारीफ उसको ना चाहने वालों ने भी दिल खोलकर की है. लेकिन बालासाहब देवरस को लगता था ये पर्याप्त नहीं है. एक संगठन ही ऐसा होना चाहिए, जिसका काम ही सेवा के प्रकल्प चलाना हो.
सेवा भारती से शुरुआती दिनों से ही जुड़े रहे मायाराम पतंग पांचजन्य में एक लेख में बताते हैं कि, “उन दिनों दिल्ली, हरियाणा प्रांत के प्रांत प्रचारक थे अशोक सिंहल और दिल्ली के प्रचारक थे विश्वनाथ. स्वयंसेवक सेवा क्षेत्र में कैसे जाएं, इस पर इन दोनों ने गहन विचार-विमर्श किया. इस विचार को मूर्त रूप देने के लिए अशोक सिंघल ने कानपुर में प्रचारक का दायित्व निभा रहे विष्णु कुमार को दिल्ली बुलाया. आदेश मिलते ही विष्णु जी अपने काम में लग गए. वे झंडेवाला कार्यालय में कक्ष क्रमांक 13 में रहकर सेवा कार्यों का ताना-बाना बुनने लगे. पहले प्रत्येक जिले के प्रौढ़ प्रमुख की जगह सेवा प्रमुख तय किए गए. फिर सबके साथ विष्णु जी ने बैठक की. विष्णु के सहयोगी के रूप में श्रवण कुमार को रखा गया. उन दिनों मुझे भी नवीन शाहदरा जिले का सेवा प्रमुख बनाया गया था”.
 
एक इंजीनियर जो नौकरी छोड़कर सेवा के लिए समर्पित हो गया

Advertisement

सवाल है कि कौन थे विष्णु जी? भले ही आशीर्वाद और विचार बालासाहब देवरस का हो लेकिन प्रचलन में सेवा भारती का संस्थापक इन्हीं विष्णु कुमार को माना जाता है. 5 मई, 1933 को कर्नाटक के बेंगलुरु के पास चिकवल्लापुरम नगर में जन्मे विष्णुजी अपने छह भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. वे बचपन से ही स्वयंसेवक रहे और 1962 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद प्रचारक बन गए. कहा जाता है कि दो भाई संघ में प्रचारक बने तो दो भाई रामकृष्ण मिशन में संन्यासी हो गए थे. उन्होंने अधिकतर अलीगढ़, पीलीभीत, लखीमपुर, काशी, कानपुर, दिल्ली और भोपाल में सेवा की. आपातकाल के दौरान उन्होंने अशोक सिंघल के साथ काम किया. कानपुर में आपातकाल के दौरान वे 'मास्टरजी' के नाम से लोकप्रिय थे. उन्होंने सत्याग्रह में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हिन्दी न जानने से उन्हें प्रारम्भ में कुछ कठिनाई भी हुई. पश्चिम उत्तर प्रदेश में श्रावण मास में बनने वाली मिठाई ‘घेवर’ को ‘गोबर’ कहना जैसे अनेक रोचक संस्मरण उनके बारे में प्रचलित हैं.

समाजसेवी नानाजी देशमुख के साथ नरेंद्र मोदी (Photo: ITG)

 
1978 में वे प्रौढ़ शाखाओं की जिम्मेदारी संभालने के लिए दिल्ली आए. लेकिन बाद में तत्कालीन सरसंघचालक बालासाहेब देवरस के आह्वान पर उन्होंने स्वयं को सेवा भारती के अंतर्गत चलाए जाने वाले सेवा कार्यों के लिए समर्पित कर दिया. 1995 में उनका तबादला भोपाल हो गया, जहां उन्होंने सेवा भारती के कार्यों को क्षेत्र के दूरस्थ क्षेत्रों तक भी विस्तारित किया. आज अकेले मध्य क्षेत्र में छह मातृछाया केंद्र, 21 छात्रावास और हजारों एकल विद्यालय हैं और यह सब विष्णु जी के अथक प्रयासों के कारण ही संभव हो पाया है.

Advertisement

सभी प्रौढ़ शाखाओं को सेवाभावी स्वयंसेवकों का चयन करके सेवा प्रमुखों से संपर्क करने का निर्देश दिया गया. इसके बाद विष्णु जी ने सभी को अपनी पहुंच, अपने विचार तथा अपने साधनों से अपने क्षेत्र में सेवा कार्य स्वयं करने को कहा. सभी सेवा प्रमुखों ने अलग-अलग प्रकार के कार्य किए. किसी ने पिछड़ी बस्तियों में सफाई अभियान चलाया, तो किसी ने लंगर लगाया. किसी ने निर्धन छात्रों को पुस्तक, कॉपियां देकर उनकी सेवा की. कई लोग अस्पतालों में फल, दवा आदि वितरित करने गए तो किसी ने स्कूलों में निर्धन बच्चों को स्वेटर बांटे. इस बीच विष्णु जी सबसे संपर्क करते रहे और आवश्यक परामर्श देते रहे.
 
और विष्णुजी बन गए कोचिंग गुरु

एक दिन विष्णु जी ने सेवा कार्य करने वाले सभी कार्यकर्ताओं को बुलाया. सभी ने उन्हें अपने-अपने सेवा कार्यों की जानकारी दी. सबकी बातें सुनने के बाद विष्णु जी ने कहा कि आप लोगों ने अब तक क्षणिक और अस्थायी सेवा कार्य किया है. सेवित जन और सेवा करने वाले में कोई स्थायी संपर्क नहीं बना है. अत: ऐसे सेवा कार्य करें जिससे कि उनके साथ हमारा स्थायी संपर्क बना रहे. सबसे अंत में विष्णु जी ने अपने द्वारा संपन्न सेवा कार्य का विवरण दिया.
 
पहली बालवाड़ी के जरिए पड़ी सेवा भारती की नींव

Advertisement

विष्णु कुमार दिल्ली में तिमारपुर के पास एक पिछड़ी बस्ती में आठवीं और नौवीं कक्षा के छात्रों को अंग्रेजी, गणित और विज्ञान पढ़ा रहे थे. जिन बच्चों को उन्होंने पढ़ाया, वार्षिक परीक्षा में उनका परिणाम बहुत ही अच्छा था. उन बच्चों में इतना सुधार देखकर उनके विद्यालयीन शिक्षकों ने विष्णु जी से भेंट की थी. विष्णु जी के इस कार्य से सभी प्रभावित हुए. इसके बाद सभी सेवा प्रमुखों ने अपने-अपने क्षेत्रों में मंदिर आदि स्थान खोजकर ऐसे ही कोचिंग केंद्र खोलने आरंभ किए. एक बस्ती के अभिभावक ने विष्णु जी से एक बार कहा कि जो बच्चे बड़े हो गए, उन्हें आपने पढ़ाना शुरू कर दिया है, पर ऐसे भी बहुत सारे बच्चे हैं, जिनके माता-पिता छोटे-मोटे काम पर चले जाते हैं और उनके पीछे उनके बच्चों को देखने वाला कोई नहीं होता है. आप उन बच्चों के लिए भी कुछ करें. तब बालवाड़ी शुरू करने का निर्णय लिया गया.

RSS के सौ साल से जुड़ी इस विशेष सीरीज की हर कहानी 
 
पहली बालवाड़ी वरिष्ठ कार्यकर्ता ब्रजमोहन के प्रयासों से जहांगीरपुरी में शुरू हुई. इसका उद्घाटन 2 अक्टूबर, 1979 को स्वयं बालासाहब देवरस ने किया था. बालासाहब ने सेवा की जो कल्पना की थी, वह साकार होने लगी थी. काम बढ़ता जा रहा था और एक ऐसी नियामक संस्था की जरूरत महसूस होने लगी थी, जो इन कार्यों के संचालन में सहयोग कर सकती थी. 14 अक्टूबर, 1979 को सभी कार्यकर्ताओं को झंडेवालान बुलाया गया. सबसे विचार करने के बाद उसी दिन सेवा भारती की स्थापना की गई. इसके बावजूद 2 अक्तूबर को ही सेवा भारती का स्थापना दिवस माना जाता है, क्योंकि उसी दिन सेवा भारती की आवश्यकता सबसे अधिक महसूस हुई थी.

Advertisement

मायाराम पतंग लिखते हैं कि, सारी दिल्ली के सभी विभागों में सेवा कार्य इससे पूर्व शुरू हो चुके थे. ये सेवा कार्य तब संघ के सेवा कार्य कहे जाते थे. इस बीच में अश्विनी कुमार खन्ना ने ‘सेवा भारती’ नाम तय करवाया तथा एक संविधान बनाकर पंजीकृत संस्था का रूप दिया. विष्णु कुमार को संगठन मंत्री तथा पं. विश्वामित्र पुष्करणा को सह संगठन मंत्री का दायित्व दिया गया. कर्मचंद मेहरा अध्यक्ष तथा सरदारी लाल गुप्ता मंत्री बने. रामावतार गुप्ता को प्रचार मंत्री बनाया गया, जो ‘सेवा समर्पण’ मासिक के प्रथम संपादक बने. सेवा भारती की धुरी के रूप में विष्णु जी ने जीवन लगा दिया. वे कभी मंच पर नहीं जाते थे. न भाषण, न माला, न सम्मान, केवल काम. अशोक सिंहल जब तक जीवित रहे तब तक उनका सहयोग भी सेवा भारती को लगातार मिलता रहा. 1989 में संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार की जन्म शताब्दी के बाद सेवा भारती के काम को पूरे देश में विधिवत प्रारम्भ किया गया. इसके लिए दिल्ली का काम ही नमूना बनाया गया.
 
विष्णु जी की इच्छा थी कि दिल्ली में एक ऐसा स्थान बने, जहां देश भर के निर्धन छात्र पढ़ सकें. सौभाग्य से उन्हें मंडोली गांव में पांच एकड़ भूमि दान में मिल गई. इस पर भवन बनाने के लिए धन चाहिए था. वे धनवानों से आग्रहपूर्वक धन लेते थे. यदि कोई नहीं देता, तो कहते थे कि शायद मैं अपनी बात ठीक से समझा नहीं पाया, मैं फिर आऊंगा. इस प्रकार उन्होंने करोड़ों रुपये एकत्र कर ‘सेवा धाम’ बना दिया. आज वहां के सैकड़ों बच्चे उच्च शिक्षा पाकर देश-विदेश में बहुत अच्छे स्थानों पर काम कर रहे हैं. विष्णु जी के प्रयास से देखते ही देखते दिल्ली की सैकड़ों बस्तियों में संस्कार केन्द्र, चिकित्सा केन्द्र, सिलाई प्रशिक्षण आदि शुरू हो गए. यहां उन्हें बाबा, काका, भैया आदि नामों से आदर मिलता था. ‘सेवा भारती’ का काम देखकर कांग्रेस शासन ने उसे 50,000 रुपये का पुरस्कार दिया. जब कुछ कांग्रेसियों ने इन प्रकल्पों का विरोध किया, तो बस्ती वाले उनके ही पीछे पड़ गए.

Advertisement

विष्णु जी अनाथ बच्चों के केन्द्र ‘मातृछाया’ तथा ‘वनवासी कन्या छात्रावासों पर बहुत जोर देते थे. 1995 में उन्हें मध्य प्रदेश भेजा गया. यहां भी उन्होंने सैकड़ों प्रकल्प प्रारम्भ किए. इस भागदौड़ के कारण 2005 में उन्हें बड़ा हर्ट अटैक हुआ. पर प्रबल इच्छाशक्ति के बल पर वे फिर काम में लग गये. इसके बाद हैपिटाइटस बी जैसे भीषण रोग ने उन्हें जर्जर कर दिया. इलाज के लिए उन्हें दिल्ली लाया गया, जहां 25 मई, 2009 को संघ के दिल्ली मुख्यालय केशवकुंज में उन्होंने अंतिम सांस ली. उनकी स्मृति में मध्यप्रदेश सरकार ने सेवा कार्य के लिए एक लाख रुपये के तीन तथा भोपाल नगर निगम ने 51,000 रुपये के एक पुरस्कार की घोषणा की है.
 
मुफ्त मोबाइल मेडिकल वैन, विष्णुजी का उपहार

गरीबों को दवा नहीं मिलती, यदि मिलती है तो बदले में एक दिन की दिहाड़ी जाती है, विष्णुजी के मन की इसी वेदना ने दिल्ली में पहली मोबाइल मेडिकल वैन को जन्म दिया व आज देशभर में सेवा भारती के माध्यम से सैकड़ों मोबाइल मेडिकल वैन मलिन बस्तियों में जाकर फ्री दवाइयां व फर्स्ट ऐड ट्रीटमेंट दे रही हैं. सड़क पर फेंक दिए जाने वाले अवांछित निर्दोष शिशुओं को सम्मानजनक जीवन देने के लिए उनकी प्रेरणा से पहले दिल्ली में फिर भोपाल में ‘मातृछाया’ की शुरुआत हुई. आज देश भर में कई मातृछाया प्रकल्प के माध्यम से सैकड़ों अनाथ बच्चों को माता-पिता की गोद मिली व नि:संतान दंपतियों को बच्चों का सुख.

Advertisement

जब विष्णु जी कानपुर से दिल्ली पहुंचे, तब संघ की तरफ से निर्देश था कि वंचित वर्गों के लिए काम शुरू करना है, जब तक इसके लिए कोई योजना बनती, वे स्वयं फुटपाथ पर पेड़ के नीचे टाट की बोरी बिछाकर एक बच्चे को पढ़ाने लगे. विष्णुजी को पढ़ाते देखकर जो सज्जन उनके लिए कुर्सी लेकर आए, बाद में उन्हीं लाला सिंह राम गुप्ता के आर्थिक सहयोग से आज दिल्ली में सावन पार्क इलाके में निर्धन मेधावी बच्चों के लिए तिमंजिला छात्रावास बना हुआ है जिसमें आजकल दिल्ली सेवा भारती के माध्यम से कई प्रकल्प चल रहे हैं. विश्व हिंदू परिषद के अंतरराष्ट्रीय महामंत्री श्याम गुप्त, स्वांत रंजन जैसे कई युवा विष्णु जी के प्रेरणा से संघ प्रचारक बने. कभी संघ के सरकार्यवाह भैया जी जोशी ने उनके बारे में कहा था कि–“विष्णु जी  साधनों के लिए रुके नहीं, सहयोग के अभाव में थके नहीं, परिस्थितियों के समक्ष झुके नहीं”. और ना सेवा भारती थकी, झुकी या रुकी है, एक अनुमान के मुताबिक देश भर में वर्तमान में सेवा भारती के 2 लाख से अधिक सेवा प्रोजेक्ट चल रहे हैं.
 
40 देशों में काम कर रहा ‘सेवा इंटरनेशनल’

बाद में ‘सेवा भारती’ का एक इंटरनेशनल स्वरूप भी सामने आय़ा. आज ये संगठन 40 से भी ज्यादा ऐसे देशों में काम कर रहा है जहां भारतीयों की संख्या ज्यादा है. इस संगठन के पास 11 हजार से ज्यादा समर्पित कार्यकर्ता हैं. अब तक इनके द्वारा की गई सहायता करीब 9 लाख लोगों तक पहुंच चुकी है. शिक्षा, आपदा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रों में ये काम करते हैं. ना केवल विदेश में बल्कि भारत के लगभग हर जिले में ये संगठन दुनिया भर के भारतीयों के सहयोग से और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है. कई देशों में अलग-अलग नामों से भी काम कर रहा है जैसे सेवा कनाडा, सेवा यूएसए, सेवा मॉरीशस आदि.

सेवा इंटरनेशनल की शुरुआत 1993 में लातूर भूकंप की तबाही के बीच हुई थी. यह संकट का वह क्षण था जिसने उन लोगों को एकजुट किया जो पीड़ा कम करने और जरूरतमंदों की मदद करने के लिए एक साथ आए थे. यहीं से सेवा इंटरनेशनल की नींव पड़ी, जो संकट के समय मानवता की सेवा करने की साझा प्रतिबद्धता से जन्मी थी. यह छोटी सी लौ जल्द ही एक प्रचंड आग में बदल गई, जिसने दुनिया भर में फैले भारतीय प्रवासियों को अपनी जड़ों से फिर से जुड़ने और अपने वतन की सेवा करने के लिए प्रेरित किया. वसुधैव कुटुंबकम के भारतीय आदर्शों से प्रेरित होकर स्वयंसेवकों के एक छोटे समूह ने जल्द ही एक वैश्विक आंदोलन का रूप ले लिया, जिसने भारतीय प्रवासियों को अपनी जड़ों से फिर से जुड़ने और अपने देश के कल्याण में योगदान देने के लिए प्रेरित किया. 16 मई, 1997 को, सेवा इंटरनेशनल की औपचारिक स्थापना भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के तहत की गई.

वर्तमान में मृगांक परांजपे इसके अध्यक्ष, श्याम परांडे इसके सचिव व राकेश मित्तल इसके कोषाध्यक्ष हैं. कोषाध्यक्ष राकेश मित्तल कहते हैं, “सेवा इंटरनेशनल की सबसे बड़ी यूएसपी है आपदा के समय बड़ी तेजी से प्रभावशाली भूमिका निभाना. भारतीय समुदाय को आपस में जोड़कर उनको सेवा कार्यों के जरिए एक सूत्र में बांधे रखना और बड़ी तेजी से हम दुनिया भर में बढ़ रहे हैं. विदेशों में बसे भारतीयों को इस संगठन के जरिए देश की सेवा का मौका भी मिलता है.”
 
क्या ट्रिगर का काम मोदी के मच्छु डैम त्रासदी अभियान ने किया?

चूंकि सेवा भारती के गठन का ऐलान 1979 में तब हुआ था, जब कुछ महीने पहले ही गुजरात के मच्छू डैम हादसे में संघ ने नरेंद्र मोदी को उस त्रासदी के राहत अभियान में लगाया था और उन्होंने अभूतपूर्व काम भी करके दिया था. सो कई लोग ये दावा करते हैं कि संघ उस अभियान की कामयाबी देखकर लगा कि सही वक्त है कि इस तरह के आपदा राहत अभियानों और बाद में पीड़ितों की सहायता के लिए अलग से एक संगठन ही खड़ा कर दिया जाना चाहिए. हालांकि कभी संघ की तरफ से इस तरह का कोई दावा नहीं किया गया है.

11 अगस्त 1979 को राजकोट के मोरबी में मच्छू बांध के टूटने से तबाही मच गई थी. करीब 20 हजार लोग मरे थे. आपदा की खबर के बाद से ही संघ के कार्यकर्ता पीड़ितों, आम लोगों और बेसहारों की मदद के लिए खड़े थे. हजारों कार्यकर्ता संघ के वरिष्ठ नेतृत्व लक्ष्मण राव इनामदार (वकील साहब), केशवराव देशमुख, प्रवीनभाई मनियार, केशुभाई पटेल के साथ काम कर रहे थे. इन हजारों कार्यकर्ताओं में एक नाम 29 साल के नरेंद्र मोदी का भी था, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक के युवा कार्यकर्ता थे.

मोरबी में जिस दिन ये भयानक हादसा हुआ वो उस वक्त केरल में मौजूद थे. मोदी वहां संगठन का काम संभाल रहे थे. पहले आज के दौर की तरह सूचनाएं तुरंत नहीं पहुंचती थीं लेकिन जैसे ही नरेंद्र मोदी को मोरबी हादसे की जानकारी मिली, तुरंत वो संघ के आदेश पर मोरबी के लिए रवाना हो गए. 30 सितंबर 1979 में छपी टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक नरेंद्र मोदी की लीडरशिप में बाढ़ आपदा राहत कमेटी का गठन किया गया.

रिपोर्ट के मुताबिक इस कमेटी ने बाढ़ पीड़ितों के घरों को बनाने के लिए 14 लाख रुपये इकट्ठा किए. इस कमेटी का काम पीड़ितों को मुफ्त मेडिकल मदद मुहैया कराना, फ्री अनाज और कपड़े मुहैया कराना था. स्वयंसेवक संघ, महाराष्ट्र इकाई ने भी मोदी के नेतृत्व में काम करने वाली इस कमेटी को 5 लाख रुपये की मदद की थी. हालांकि बाद में सेवा भारती के जरिए और पहले भी संघ ने आपदा राहत के इतने बड़े-बड़े अभियान किए हैं कि ये कहावत बन गई है कि आपदा राहत टीमों, स्थानीय प्रशासन या पुलिस के पहुंचने से पहले देश भर में हुई किसी भी आपदा स्थल पर राहत के लिए सबसे पहले RSS के स्वयंसेवक पहुंचते हैं.

पिछली कहानी: देवरस को मिली थी रोज राम नाम लिखने की सलाह, कहा जाता था ‘संघ का कम्युनिस्ट’ 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement