भारत हरित ऊर्जा की दौड़ में तेजी से आगे बढ़ रहा है और इसका सबसे बड़ा सबूत है प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना (PMSGY) है. इस योजना ने देश के रेजिडेंशियल रूफटॉप सोलर सेक्टर में नई जान फूंकी दी है. महज एक साल में 4,946 मेगावॉट (लगभग 4.9 गीगावॉट) की सौर क्षमता स्थापित हो चुकी है और इसके लिए ₹9,280 करोड़ (लगभग 1.05 बिलियन डॉलर) की सब्सिडी वितरित की गई है, लेकिन इस शानदार शुरुआत के बावजूद एक करोड़ घरों में सोलर इंस्टॉलेशन का लक्ष्य अभी दूर की कौड़ी नजर आता है. IEEFA और JMK रिसर्च की ताजा रिपोर्ट इस सौर क्रांति की हकीकत और चुनौतियों को सामने लाती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2025 तक 57.9 लाख घरों ने रूफटॉप सोलर के लिए आवेदन किया है जो मार्च 2024 की तुलना में चार गुना ज्यादा है. फिर भी एक करोड़ इंस्टॉलेशन के टारगेट का सिर्फ 13.1% ही पूरा हो सका है. यानी लोग सौर ऊर्जा की ओर तो आकर्षित हो रहे हैं, लेकिन जमीन पर रफ्तार अभी धीमी है.
गुजरात और केरल सबसे आगे
वहीं, जहां तक सोल एनर्जी की रफ्तार की बात है. इसमें गुजरात और केरल इस दौड़ में सबसे आगे हैं, जहां 65% से ज्यादा कंवर्जन रेशियो (आवेदन से इंस्टॉलेशन तक) देखा गया है. इसका कारण है इन राज्यों का मजबूत सोलर इकोसिस्टम, सक्रिय वेंडर नेटवर्क और उपभोक्ताओं में जागरूकता, लेकिन देश का औसत कंवर्जन रेशियो सिर्फ 22.7% है, यानी चार में से तीन आवेदक अभी भी सोलर पैनल लगवाने में कामयाब नहीं हो पा रहे.
पैसा-तकनीक नहीं, बल्कि जागरूकता की कमी
रिपोर्ट बताती है कि सौर ऊर्जा अपनाने की सबसे बड़ी रुकावट अब धन या तकनीक नहीं, बल्कि जागरूकता की कमी और गलत धारणाएं हैं. कई उपभोक्ता, खासकर ग्रामीण इलाकों में सोलर को महंगा और रखरखाव में जटिल मानते हैं.
JMK रिसर्च के सीनियर कंसल्टेंट प्रभाकर शर्मा कहते हैं, 'कम जागरूकता और आसान फाइनेंसिंग की कमी अभी भी बड़ी बाधाएं हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग सोलर को ‘महंगी तकनीक’ समझते हैं.'
इसके अलावा कठिन लोन प्रक्रिया, शिकायत निवारण पोर्टल की तकनीकी खामियां और बिखरी हुई सप्लाई चेन ने भी रास्ते में रोड़े अटकाए हैं. कई उपभोक्ताओं को सब्सिडी वितरण में देरी, पोर्टल पर डेटा एंट्री की गलतियां या तकनीकी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
राज्यों का योगदान
केंद्र की सब्सिडी के साथ-साथ कई राज्य सरकारें भी सौर क्रांति को गति देने में जुट गई हैं. असम, दिल्ली, गोवा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों ने अतिरिक्त पूंजी सब्सिडी शुरू की है, ताकि शुरुआती इंस्टॉलेशन लागत कम हो सके. PMSGY के तहत Domestic Content Requirement लागू किया गया है, जिससे हर इंस्टॉलेशन में प्रमाणित भारतीय सोलर मॉड्यूल का उपयोग सुनिश्चित होता है.
इसी गैप को भरने के लिए योजना में capacity-building programmes के जरिए 2024 से अब तक तीन लाख से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है. ये प्रशिक्षण स्थानीय वेंडरों, फाइनेंसरों और यूटिलिटी कर्मियों को सोलर इकोसिस्टम का हिस्सा बनाने के लिए हैं.
सरकार ने इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स के तहत 60% तक की ग्रांट देकर नए बिजनेस मॉडल्स और पायलट प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देना शुरू किया है. राज्यों को सोलर सिटी और मॉडल सोलर विलेज विकसित करने का भी निर्देश दिया गया है, लेकिन रिपोर्ट ये भी मानती है कि बिना सुसंगत और समयबद्ध लक्ष्यों के, ये प्रयास छिटपुट रह सकते हैं.
IEEFA की डायरेक्टर विभूति गर्ग का कहना है, 'हर राज्य को अपने स्तर पर स्पष्ट और समयबद्ध रूफटॉप सोलर लक्ष्य तय करने होंगे, तभी नीति का असर जमीन पर दिखेगा.'
रिपोर्ट ये भी बताती है कि ग्रिवांस रेड्रेसल सिस्टम तो बनाया गया है, लेकिन उसकी प्रभावशीलता सीमित है. कई उपभोक्ताओं को सब्सिडी डिस्बर्समेंट, पोर्टल एरर या डेटा एंट्री गलती जैसी समस्याएं झेलनी पड़ रही हैं.
इस पर JMK रिसर्च के अमन गुप्ता सुझाव देते हैं, 'जिले स्तर पर एस्केलेशन मैट्रिक्स बनाना चाहिए ताकि शिकायतें सिर्फ डिस्कॉम या पोर्टल तक सीमित न रहें.'
प्लग-एंड-प्ले सोलर
रिपोर्ट कहती है कि सोलर मार्केट में अभी तक एकरूप गुणवत्ता की कमी है, अगर मानकीकृत प्लग-एंड-प्ले सोलर किट्स (जिसमें मॉड्यूल, इन्वर्टर, स्ट्रक्चर, और केबल एक पैक में हों) तैयार की जाएं तो इंस्टॉलेशन आसान और तेज हो सकता है. यह दृष्टिकोण भविष्य के सोलर विस्तार की कुंजी बन सकता है.
प्रधानमंत्री सूर्या घर योजना ने साबित किया है कि भारत की छतें अब सिर्फ धूप नहीं, बल्कि उम्मीद की किरणें भी बटोर रही हैं. एक साल में 4.9GW की क्षमता जोड़ना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। लेकिन 2027 तक 30 गीगावॉट का लक्ष्य हासिल करने के लिए सब्सिडी से ज्यादा जरूरत है जागरूकता, सुचारु प्रक्रिया और मजबूत इकोसिस्टम की है.
आशुतोष मिश्रा