'वंदे मातरम्' गुलामी के दौरान भारत की आजादी के संकल्प का उद्घोष बना: 150 साल के उत्सव पर PM मोदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रगीत के डेढ़ सौ साल के उत्सव की शुरुआत के मौके पर कहा कि 'वंदे मातरम' सिर्फ एक गीत नहीं है, बल्कि देश के संकल्पों को पूरा करने की भावना का प्रतीक है.

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पीएम मोदी ने वंदे मातरम के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर बताई इसकी अहमियत (Photo: X/@BJP4India) पीएम मोदी ने वंदे मातरम के डेढ़ सौ साल पूरे होने पर बताई इसकी अहमियत (Photo: X/@BJP4India)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 4:14 PM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने पर साल भर चलने वाले उत्सव का उद्घाटन किया है. इस मौके पर पीएम मोदी ने 'वंदे मातरम' के अर्थ पर बात की. उन्होंने कहा कि वंदे मातरम का मतलब 'संकल्पों की सिद्धि' है. नरेंद्र मोदी ने कहा कि 'वंदे मातरम' गुलामी के दौरान भारत की आजादी के संकल्प का उद्घोष बन गया था. गुरुदेव रवींद्र नाथ ठाकुर ने एक बार कहा था कि बंकिम चंद्र की आनंद मठ केवल उपन्यास नहीं है बल्कि एक ग्रंथ है. आनंद मठ में वंदे मातरम की एक-एक पंक्ति और बंकिम बाबू के एक-एक शब्द और उसके हर भाव के अपने गहरे निहितार्थ थी और है.

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उन्होंने आगे कहा कि गुलामी के कालखंड में इसके शब्द कभी भी कैद नहीं रहे, वो गुलामी से आजाद रहे. इसलिए वंदे मातरम हर दौर और कालखंड में प्रासंगिक है. इसने अमरता को प्राप्त किया है. यही तो भारत की हजारों साल पुरानी पहचान रही है. यहां की नदियां, पहाड़, वन, वृक्ष और उपजाऊ मिट्टी हमेशा सोना उगलने की ताकत रखती है.

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "सदियों तक दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियां सुनती रही है. कुछ ही शताब्दी पहले तक ग्लोबल जीडीपी का करीब एक चौथाई हिस्सा भारत के पास था. जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम की रचना की थी, तो भारत अपने उस स्वर्णिम दौर से बहुत दूर जा चुका था. विदेशी आक्रमणकारियों के हमले, अंग्रेजों की शोषणकारी नीतियां और हमारा देश जब गरीबी के चंगुल में कराह रहा था, तब भी बंकिम बाबू ने समृद्ध भारत का आह्वान किया. क्योंकि उन्हें विश्वास था कि मुश्किलें कितनी भी क्यों न हों, भारत अपने स्वर्णित दौर को फिर से जिंदा कर सकता है, और उन्होंने आह्वान किया- वंदे मातरम."

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'स्वतंत्रता संग्राम का स्वर...'

पीएम मोदी ने कहा, "आज के दिन हमे वंदे मातरम की असाधारण यात्रा और उसके प्रभाव को जानने का मौका देता है. जब 1875 में बंकिम बाबू ने बंगदर्शन में वंदे मातरम प्रकाशित किया था, तो कुछ लोगों को लगता था कि यह तो सिर्फ एक गीत है लेकिन देखते ही देखते यह स्वतंत्रता संग्राम का कोटि-कोटि स्वर बन गया. एक ऐसा स्वर जो हर क्रांतिकारी और भारतीय की जबान पर था."

यह भी पढ़ें: अगले साल भारत आएंगे ट्रंप! व्यापार वार्ता के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने की पीएम मोदी की तारीफ

उन्होंने आगे कहा कि आजादी की लड़ाई का शायद ही कोई अध्याय होगा, जिससे वंदे मातरम किसी न किसी रूप से जुड़ा नहीं था. 1896 में गुरुदेव रवीद्र नाथ ठाकुर ने कोलकाता अधिवेशन में वंदे मातरम गाया. 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ. इस दौरान वंदे मातरम अंग्रेजों के मंसूबों के आगे चट्टान बनकर खड़ा हुआ. क्रांतिकारियों ने फांसी के तख्त पर खड़े होकर वंदे मातरम बोला.

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