वैसे तो आम फलों को राजा है लेकिन गर्मी के मौसम में आने वाले फल लीची को भी लोग काफी पसंद करते हैं. जब बात लीची की आती है तो सबसे पहले मुजफ्फरपुर का नाम सामने आता है. मुजफ्फरपुर की लीची दुनियाभर में प्रसिद्ध है. लेकिन, अब लीची जैसी दिखने वाली 'लौंगन' फल को भी लोग जानने लगे हैं. यह फल सबसे ज्यादा वियतनाम में होता है. वैसे देखने में तो लौंगन बिल्कुल लीची जैसा ही दिखता है. लेकिन, इस फल के छिलके लीची से मजबूत होते हैं और इस पर कीट पतंग का भी कोई असर नहीं होता है. इसके साथ ही यह फल जल्दी खराब भी नहीं होता है और यह कई दिनों तक चलता है.
एक पेड़ पर एक क्विंटल से ज्यादा फल
मुजफ्फरपुर में लीची समाप्त होने के बाद जुलाई के दूसरे सप्ताह से लौंगन फल मिलने लगेगा. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में मुजफ्फरपुर की मिट्टी और जलवायु पर सक्सेस मिलने के बाद इसे किसान अपने खेतों में लगाने पर विचार कर रहे हैं. लौंगन के एक पेड़ पर लगभग एक क्विंटल से ज्यादा फल होता है. वहीं, लीची के किसान भी अब लीची के अलावा लौंगन के बाग भी लगा रहे हैं, जिससे लीची के बाद यानी जुलाई-अगस्त तक उनकी आमदनी आसानी से होती रहेगी.
किसानों को आमदनी की नहीं होगी दिक्कत
मुजफ्फरपुर में लगाई जाने वाली लीची 20 फरवरी से लेकर लास्ट जून तक मार्केट में मिलती है और जुलाई के दूसरे सप्ताह से लेकर अगस्त तक होती है. इससे मई से लेकर अगस्त यानी चार महीनों तक किसानों की अच्छी आमदनी होगी. इसको लेकर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र में कई सालों से रिसर्च चल रही थी और बीते दो तीन वर्षो से लगातार अच्छा फल हो रहा है. इस फल को लेकर अब आसपास के किसानों को भी जानकारी दी जा रही है.
लौंगन पर अभी किया जा रहा रिसर्च
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के फार्म में सैकड़ों पेड़ों पर लौंगन का काफी फल हुआ है और एक पेड़ पर सौ किलो से ज्यादा फल लगे हैं, जो जुलाई के दूसरे सप्ताह से टूटने लगेंगे. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर सुनील कुमार (IRS) ने बताया कि ये लौंगन, लीची की फसल खत्म होने के बाद मार्केट में मिलेंगे.
अभी की स्थिति देखते हुए कहा जा सकता है कि जुलाई के अंतिम सप्ताह और अगस्त के पहले सप्ताह में यहां हार्वेस्टिंग होती है. इस पर रिसर्च किया जा रहा है. यहां की मिट्टी और जलवायु के उपयुक्त है. अनुसंधान केंद्र के फार्म में काफी बेहतर परिणाम आया है एक पेड़ पर करीब सौ किलो तक फल आया है. किसानों को भी इसकी जानकारी दी जा रही है कुछ किसानों ने इसे लगाया भी है.
किसानों को मार्केटिंग की चिंता
वहीं, मुसहरी के लीची किसान बनवारी सिंह ने बताया की हम लोग लीची किसान हैं और मुजफ्फरपुर में लीची काफी प्रसिद्ध है. इसलिए लीची के बाग को हमलोग प्राथमिकता देते हैं. अब जानकारी मिलने के बाद कुछ लौंगन का पेड़ भी लगाएंगे. इससे ये फायदा होगा कि लीची के बाद जुलाई अगस्त तक आमदनी बनी रहेगी. हम लोगों ने लीची अनुसंधान केंद्र के फार्म में देखे हैं. अब अपने यहां भी कुछ पेड़ लगाएंगे. हालांकि, यहां के लिए लौंगन नई किस्म का फल है, इसलिए मार्केटिंग की चिंता है. मार्केटिंग की व्यवस्था पर भी सरकार को ध्यान देना चाहिए.
बड़े पैमाने पर करनी होगी खेती
वहीं, लीची किसान अंकित सिंह ने बताया की मुजफ्फरपुर में लीची का मार्केट बना हुआ है. इसलिए यहां आसानी से दूसरे राज्यों से भी व्यापारी आते हैं और किसानों को लीची की मार्केटिंग के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. ऐसे में लौंगन की बात करें तो जब तक बड़े पैमाने पर इसकी खेती नहीं होगी, तब तक व्यापारियों का रुझान कम रहेगा. इसलिए लीची अनुसंधान केंद्र में जिस तरह इसका सफल प्रयोग कर किसानों को डेमो दिखाया गया, उसी तरह सरकारी स्तर पर इसकी मार्केटिंग की भी व्यवस्था भी करनी होगी, तभी किसान इसकी खेती के बारे में विचार करेंगे.
विदेशों में भी है लीची की डिमांड
वहीं, महिला किसान प्रज्ञा कुमारी ने बताया कि लीची के बाग हम लोग आंख बंद कर लगाते हैं क्योंकि मुजफ्फरपुर के लीची की डिमांड पूरे देश ही नहीं विदेशों में भी है. इस बार शाही लीची को हमने सीधे पुणे तक भेजा है. वहां, पिछली बार कुछ संपर्क के लोग थे, जिन्होंने कॉल कर इसे डिमांड पर मंगवाया था. इसके बाद, यहां से विशेष वैन से भेजा गया, जिसका काफी अच्छा रिस्पांस मिला.
इसी तरह राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के फार्म में काफी अच्छी किस्म देखने के बाद हम लोगों ने भी प्रयोग के तौर पर कुछ पेड़ लगाने की योजना बनाई है. लेकिन इस फल की मार्केटिंग की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए. इससे लीची किसान को मई से लेकर अगस्त तक आमदनी के लिए सोचना नहीं पडे़गा क्योंकि दूसरे राज्य में तो लौंगन की खेती होती है, वहां मार्केटिंग की भी अच्छी व्यवस्था है. इसलिए यहां भी व्यवस्था होनी चाहिए, तभी किसान इसे ज्यादा लगा पाएंगे.
मणि भूषण शर्मा