'अमेरिकी नीतियों से बचने के लिए भारत को अपनी राह खुद बनानी होगी', बोले संघ प्रमुख मोहन भागवत

मोहन भागवत ने कहा, 'हमारे दृष्टिकोण ने अर्थ और काम को समाप्त नहीं किया है. इसके विपरीत, यह जीवन में अनिवार्य है. जीवन के चार लक्ष्यों में धन और काम शामिल हैं. लेकिन यह धर्म से बंधा है.'

Advertisement
मोहन भागवत ने कहा कि विदेशी हितों के टकराव से बचने के लिए आत्मनिर्भर भारत जरूरी (Photo- PTI) मोहन भागवत ने कहा कि विदेशी हितों के टकराव से बचने के लिए आत्मनिर्भर भारत जरूरी (Photo- PTI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 22 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:46 AM IST

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि भारत को भविष्य की चुनौतियों से बचाने के लिए अपनी राह खुद तय करनी होगी. उन्होंने कहा कि अमेरिका की ओर से हालिया टैरिफ और इमिग्रेशन से जुड़े फैसलों के बीच यह और भी जरूरी हो जाता है कि भारत विकास का ऐसा रास्ता चुने, जो सनातन दृष्टिकोण पर आधारित हो और जिसमें किसी को पीछे न छोड़ा जाए.

Advertisement

दिल्ली में एक पुस्तक के विमोचन समारोह में बोलते हुए भागवत ने कहा कि दुनिया पिछले 2000 सालों से जिस टुकड़ों में बंटी विकास की सोच पर चल रही है, आज की समस्याएं उसी का नतीजा हैं. उन्होंने कहा, “हालात से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता. उससे निकलने के लिए जो जरूरी है वो करना ही होगा, लेकिन आंखें बंद करके नहीं. हमें अपनी राह खुद बनानी होगी.”

भागवत ने भारत की परंपरागत चार पुरुषार्थ- अर्थ, काम, मोक्ष और धर्म का उल्लेख करते हुए कहा कि इन्हीं मूल्यों के आधार पर समाज का संतुलित विकास संभव है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि भारत ही एक ऐसा देश है जिसने पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं को पूरी तरह निभाया है.

यह भी पढ़ें: 'चर्चिल की भविष्यवाणी गलत साबित हुई, भारत आज भी एकजुट खड़ा', मोहन भागवत ने ब्रिटेन को दिखाया आईना

Advertisement

अपने दृष्टिकोण से चले भारत

उन्होंने अमेरिका के साथ अपने पुराने अनुभव साझा करते हुए कहा कि वहां साझेदारी की बातें तो होती हैं, लेकिन हर मुद्दे पर एक ही शर्त रहती है- “प्रोवाइडेड अमेरिकन इंटरेस्ट्स आर प्रोटेक्टेड”. भागवत ने कहा कि अलग-अलग हितों की वजह से टकराव हमेशा बना रहेगा, इसलिए भारत को अपने दृष्टिकोण से चलना होगा.

आरएसएस प्रमुख ने कहा कि सिर्फ़ भारत ने ही पर्यावरणीय मुद्दों पर अपनी सभी प्रतिबद्धताएं पूरी की हैं. उन्होंने कहा-"अगर हमें हर टकराव में लड़ना होता, तो हम 1947 से आज तक लगातार लड़ते रहते. लेकिन हमने यह सब सहा. हमने युद्ध नहीं होने दिया...हमने कई बार उन लोगों की भी मदद की है जिन्होंने हमारी नीतियों का विरोध किया."

यह भी पढ़ें: 75 साल के हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, 16 साल से संभाल रहे संगठन की बागडोर

भागवत ने कहा कि अगर भारत 'विश्वगुरु और विश्वामित्र' बनना चाहता है, तो उसे अपने दृष्टिकोण के आधार पर अपना रास्ता खुद बनाना होगा.

उन्होंने कहा, "यह दृष्टिकोण पुराना नहीं है, यह 'सनातन' है. यह हमारे पूर्वजों के हजारों वर्षों के अनुभवों से बना है." उन्होंने यह भी कहा कि भारत ने पर्यावरण के मुद्दों पर अपनी सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है, जो इसकी प्रामाणिकता को दर्शाता है.

Advertisement

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement