शाहजहांपुर से आई कल की घटना ने सबको हिला दिया. यहां सचिन ग्रोवर नाम के युवक ने पहले अपनी पत्नी और मासूम बेटे को जहर दिया, फिर खुद फांसी लगाकर जान दे दी. पुलिस के मुताबिक, सचिन लंबे वक्त से कर्ज और मानसिक तनाव से जूझ रहा था. उसके सुसाइड नोट से साफ है कि डिप्रेशन और आर्थिक दबाव ने उसे इस हद तक धकेल दिया कि उसने पूरे परिवार की जिंदगी खत्म करने का कदम उठा लिया.
ऐसे केस सिर्फ सुर्खियां नहीं हैं बल्कि ये केस बड़ा सवाल खड़ा करता है. ये सवाल है खराब मेंटल हेल्थ खासकर डिप्रेशन और सुसाइडल टेंडेंसी से दूसरे पार्टनर और खासकर तो बच्चों को हिंसा और ट्रॉमा से कैसे बचाया जाए? जैसा कि इस घटना या दूसरी घटनाओं में भी नजर आता है. जब परिवार में किसी एक की मेंटल हेल्थ खराब होती है तो उसका सबसे बड़ा खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ता है.
क्यों बच्चों पर पड़ता है सबसे ज्यादा असर?
बच्चे घर के सबसे संवेदनशील सदस्य होते हैं. वे किसी भी माहौल को जल्दी पकड़ लेते हैं और खासकर माता-पिता के व्यवहार से गहराई तक प्रभावित होते हैं. अगर पेरेंट्स लगातार झगड़ रहे हों, तो बच्चा असुरक्षित महसूस करता है. वहीं अगर किसी एक पेरेंट को डिप्रेशन या एंग्जायटी हो, तो बच्चा उसे 'नॉर्मल' मानने लगता है. घरेलू हिंसा की स्थिति में बच्चे या तो चुपचाप सब सहते हैं या खुद गुस्सैल बन जाते हैं. कई बार बच्चे माता या पिता द्वारा लिए जा रहे किसी आत्मघाती फैसले का भी आसानी से शिकार बन जाते हैं.
अमेरिका की एक रिसर्च (Journal of Child Psychology, NCBI) बताती है कि जो बच्चे घरेलू हिंसा देखते हैं, उनमें एक्सटर्नल (आक्रामकता) और इंटरनल (डिप्रेशन और फियर) दोनों तरह की समस्याएं अधिक पाई जाती हैं. बता दें कि कई देशों में आज PCIT नाम की थेरैपी अपनाई जा रही है, जिसमें पेरेंट्स और बच्चों को एक साथ काउंसलिंग दी जाती है. इससे बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और पेरेंट भी हेल्दी पेरेंटिंग सीखते हैं.
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. विधि एम पिलनिया कहती हैं कि बच्चों पर पेरेंट्स की मानसिक स्थिति का सीधा असर पड़ता है. अगर पिता या मां लगातार तनाव, डिप्रेशन या आक्रामक व्यवहार दिखाते हैं तो बच्चा असुरक्षा, डर और कभी-कभी अपराधबोध का शिकार हो जाता है. अगर बच्चे सात साल से बड़ी उम्र के होते हैं तो ये तक सोचने लगते हैं कि शायद उनकी वजह से घर में समस्या है. ये उन्हें अंदर से तोड़ देता है.
डॉ पिलनिया आगे कहती हैं कि अगर घर में किसी पार्टनर की मानसिक स्थिति खराब है तो बच्चे सबसे ज्यादा रिस्क में होते हैं. वो हिंसा के गवाह बन सकते हैं या आत्महत्या जैसे कदम के शिकार हो सकते हैं. ऐसे में एक पार्टनर को सबसे पहले बच्चे को ‘सेफ एंवायरमेंट’ देना जरूरी है. मतलब, अगर लगता है कि पेरेंट में से एक खुद पर कंट्रोल नहीं कर पा रहा है, तो तुरंत दूसरे भरोसेमंद रिश्तेदार या चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विस से मदद लेनी चाहिए.
दिल्ली यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ चंद्र प्रकाश कहते हैं कि आज समाज में जिस तरह माइग्रेशन हुआ और परिवार एकल हो गए हैं, उसके बाद लोगों का अपने बच्चों पर एकाधिकार बढ़ गया है. सुसाइड के मामलों में भी अगर आप देखें कि अगर कोई दंपति अपने संयुक्त परिवार के साथ रहता है तो वो ऐसा कोई कठिन फैसला लेते वक्त अपने बच्चे के साथ इतना हिंसक नहीं होगा. अक्सर एकल परिवारों में बच्चों के अकेले हो जाने का भय, उनके भविष्य की चिंता के कारण डिप्रेशन पीड़ित व्यक्ति बच्चे के लिए भी सख्त डिसीजन ले लेता है.
सागर यूनिवर्सिटी की मनोविज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ दिव्या भनोट कहती हैं कि हमें समाज के तौर पर सचिन ग्रोवर केस से सबक लेना चाहिए. कैसे वो व्यक्ति अपनी परिस्थितियों में घिरकर मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गया होगा. डिप्रेशन की स्थिति में न सिर्फ उन्होंने अपना और पत्नी का जीवन खत्म किया बल्कि साथ में अपने चार साल के बेटे को भी जहर दे दिया. अगर उन्हें सही काउंसिलिंग और मदद मिल जाती तो कम से कम वो अपने बच्चे के लिए इतना अहित नहीं करते.
ऐसे हालात पर क्या करें, जानें डॉक्टर के टिप्स
aajtak.in