मणिपुर हिंसाः उन्मादी भीड़ में शामिल होना कितना बड़ा गुनाह, क्या हो सकता है एक्शन?

मणिपुर में हिंसा का दौर थमा नहीं है. इस बीच, एक वायरल वीडियो ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है. इस घटना के बाद लॉ एंड ऑर्डर से लेकर सरकार तक कठघरे में आ गई है. वैसे तो बलवा या हिंसा सामाजिक शांति के लिए गंभीर अपराध हैं. इन अपराधों के लिए IPC में कानूनी प्रावधान हैं. लेकिन, भीड़ की शक्ल दिए जाने से अपराधी कानून के लिए चुनौती बन जाते हैं.

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मणिपुर में हिंसा के बाद हालात खराब हैं. 30 जून को इम्फाल में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के समर्थक एकत्रित हुए थे और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से रोक लिया था. (फोटो-पीटीआई) मणिपुर में हिंसा के बाद हालात खराब हैं. 30 जून को इम्फाल में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के समर्थक एकत्रित हुए थे और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने से रोक लिया था. (फोटो-पीटीआई)

उदित नारायण

  • नई दिल्ली,
  • 20 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 5:56 PM IST

पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में हिंसा का ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जिसका अंत ढाई महीने बाद भी नहीं हो सका है. छुट-पुट घटनाएं हों या बवाल, आगजनी, मारपीट और तोड़फोड़... यहां तक कि महिलाओं से ज्यादती, गैंगेरप और निर्वस्त्र सड़कों पर घुमाए जाने से कानून-व्यवस्था और सरकार खुद सवालों के घेरे में खड़ी हो गई है. इन सभी घटनाओं को भीड़ की शक्ल में अंजाम दिया जा रहा है. भीड़ हमला कर रही है. भीड़ बवाल और हिंसा कर रही है. भीड़ ही गैंगरेप में वांछित है. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या भीड़ कोई खास होती है. क्या उसे कानून में कोई छूट दी गई है. आखिर भीड़ के अपराध में भारतीय दंड संहिता (IPC) में क्या प्रावधान किए गए हैं. जानिए...

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दिल्ली की हिंसा हो या बिहार-पश्चिम बंगाल... या फिर मणिपुर में हिंसा का अनवरत सिलसिला. हिंसा को भीड़ की शक्ल में ही क्यों अंजाम दिया जाता है. मणिपुर की घटना ने तो पूरे देश को झकझोर दिया है. वहां कुकी समुदाय की दो महिलाओं से गैंगरेप किया गया और फिर निर्वस्त्र कर सड़कों पर घुमाया गया है. ये घटना 4 मई यानी हिंसा शुरू होने के एक दिन बाद होना बताई गई है. दो पुरुषों की हत्या भी की गई है. इस पूरे घटनाक्रम पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दुख जताया है. 

भीड़ में शामिल होकर हिंसा और आगजनी या बवाल करने पर भारतीय दंड संहिता में सजा का प्रावधान तो है, लेकिन भीड़ के खिलाफ साक्ष्य जुटाना या कोर्ट में दाखिल करना चुनौती हो जाता है. सीनियर एडवोकेट विनोद तिवारी बताते हैं कि कानून को कोई हाथ में नहीं ले सकता है. ये किसी को अधिकार भी नहीं है. हालांकि, बवाल, तोड़फोड़, आगजनी समेत हिंसा से जुड़ी घटनाओं में अलग-अलग धाराओं में एक्शन तो लिया जा सकता है. लेकिन, भीड़ के चेहरे अज्ञात ही रहते हैं. उनकी पहचान के लिए सबूत और गवाह महत्वपूर्ण होते हैं. जांच एजेंसियों के लिए ये सबूत और गवाह जुटाना बड़ी चुनौती और मुश्किलों से भरा काम होता है.

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भीड़ पर कंट्रोल के लिए क्या कर सकती है पुलिस?

- गैर-कानूनी जमावड़े से निपटने के लिए कई प्रावधान हैं. माहौल खराब का अंदेशा होने की स्थिति में सीआरपीसी की धारा 129 के तहत पुलिस की तरफ से बल प्रयोग किया जा सकता है. भीड़ का तितर-बितर किया जा सकता है. जरूरी होने पर भीड़ में इकट्ठा लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता है या उन्हें हवालात में भेज सकते हैं.
-  CrPC धारा 130: हथियारों के जरिए बल प्रयोग करने का प्रावधान है. हालांकि, इसकी उप-धारा 3 कहती है कि पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने और गिरफ्तार करने या रोकने के मकसद से न्यूनतम बल प्रयोग करेगी. यानी लोगों को कम से कम चोट पहुंचाने की कोशिश करेगी और संपत्ति का भी कम से कम नुकसान होना चाहिए.

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- धारा 131: सख्ती से बल प्रयोग का प्रावधान है. यदि लगता है कि भीड़ उग्र है या जन-सुरक्षा के लिए खतरा है तो सशस्त्र बल का उपयोग करने की शक्ति है. सशस्त्र बल को भीड़ को तितर-बितर करने या गिरफ्तार करने, उन्हें हवालात में रखने या उन्हें कानून के तहत सजा देने का प्रावधान है.
- पुलिस को कानून का पालन सुनिश्चित करने और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं. इसके तहत पुलिस से कहा जाता है कि लोगों को व्यावहारिक तरीके से समझाने-मनाने या आगाह करने पर जोर देना चाहिए और यही तरीका अपनाना चाहिए. जब तक अनिवार्य ना हो, तब तक बल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. जरूरी होने पर सिर्फ न्यूनतम बल का ही प्रयोग करना चाहिए.

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भीड़ को लेकर क्या कहते हैं एक्सपर्ट

एडवोकेट विनोद तिवारी आगे बताते हैं कि भीड़ का कोई रूप नहीं होता है. अपराधी को हमेशा भीड़ का लाभ मिल जाता है. भले किसी केस में शुरुआत में हमलावर अज्ञात हों और बाद में ज्ञात भी हो जाते हैं. लेकिन, सजा दिला पाना मुश्किल होता है. क्योंकि भीड़ में शामिल होने से बचने की पूरी संभावना होती है. चूंकि, भीड़ में किसने क्या किया, ये पता कर पाना टफ होता है. किसने रोका, किसने हमला किया, ये डिफाइन नहीं हो पाता है. एविडेंस जुटाना मुश्किल हो जाता है. निश्चित नहीं हो पाता है कि संबंधित आरोपी था या नहीं. उसका भीड़ में क्या रोल था. ये तय नहीं पाता. भीड़ में किसने किस हथियार से हमला किया? कौन-कौन लाठी-डंडा या रॉड लिए थे और किसने किसे मारा? भले मेडिकल रिपोर्ट में किसी पीड़ित को चोट आई हो, लेकिन यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि हमला किसने किया और किसका क्या रोल था. हालांकि, ऐसा भी नहीं है कि सबूत और साक्ष्य नहीं जुटा पाते हैं. अब डिजिटल जमाना है. सीसीटीवी फुटेज और गवाह सजा दिलाने में अहम भूमिका निभाने लगे हैं.

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बताते चलें कि हिंसा में शामिल पाए जाने पर आरोपी पर आईपीसी की धारा 34, 159, 160, 146, 147, 148 और 149 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इसके अलावा, अपराध को ध्यान में रखकर धाराएं घटाई और बढ़ाई जा सकती हैं. दोषी पाए जाने पर दो साल से लेकर मृत्युदंड तक की सजा का प्रावधान है. बलवा किए जाने में दो से तीन साल की सजा और जुर्माने हो सकता है. आगजनी में दोषी पाए जाने पर धारा 436 के तहत 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है.

मणिपुर में हिंसा की पहली घटना 3 मई को हुई थी. उसके बाद से लगातार आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाएं सामने आई हैं. 

क्या हैं दंगे-हिंसा और बवाल...

- आईपीसी की धारा 159: इसमें दंगा को परिभाषित किया गया है. किसी सार्वजनिक स्थान पर जब दो या उससे ज्यादा व्यक्ति लड़कर/ विवाद करते हैं और शांति व्यवस्था में बाधा डालते हैं या खतरा बनते हैं, उसे दंगा कहते हैं.
- आईपीसी की धारा 160: दंगा किए जाने पर सजा का प्रावधान है. अगर कोई व्यक्ति दंगा करने का दोषी पाया जाता है तो उसे एक महीने की जेल या 100 रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है.
- आईपीसी की धारा 146: बलवा के बारे में बताया गया है. अगर किसी जगह या सार्वजनिक स्थान पर कोई अनाधिकृत जमावड़ा लगता है और उसका मकसद बल या हिंसा करना है तो ऐसे जमावड़े में शामिल हर व्यक्ति बलवा करने के अपराध का दोषी माना जाता है. जो भी व्यक्ति बलवा करने का दोषी पाया जाएगा. 
-  आईपीसी की धारा 147: बलवा के दोषी को दो साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं. अगर घातक हथियारों से बलवा किया जाता है या जिस हथियार से किसी की मौत होने की आशंका हो तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है. 
- आईपीसी की धारा 149: बलवे में जो लोग शामिल होंगे, वो सभी समान अपराध के दोषी होंगे. यानी बलवा के वक्त जो भी अपराध होगा, उसका दोष उन सभी लोगों पर समान रूप से लगाया जाएगा. फिर चाहे वो उन्होंने अपराध किया हो या नहीं. यही वजह है कि कभी-कभी हम अनजाने में किसी ऐसी भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं, जिसमें अपराध कोई और कर देता है और सजा हमें भी मिल जाती है.

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- आईपीसी में दंगा या बलवा एक ही तरह का अपराध माना गया है. लेकिन, कुछ फैक्ट ऐसे हैं जो दंगा और बलवा को अलग-अलग बनाते हैं. जैसे- दंगा सिर्फ सार्वजनिक स्थान पर होता है, जबकि बलवा सार्वजनिक या निजी किसी भी जगह पर हो सकता है. दंगे में दो या उससे ज्यादा लोग शामिल होते हैं, जबकि बलवा में पांच या उससे ज्यादा लोग शामिल होते हैं.
- आईपीसी की धारा 34: यदि दो या दो से ज्यादा, लेकिन 5 से कम व्यक्ति किसी अपराध को सामान्य इरादे से करते हैं तो उस अपराध में शामिल सभी लोगों पर धारा 34 के तहत एक्शन लिया जाता है. प्रत्येक व्यक्ति उस अपराध को करने का जिम्मेदार होता है. सामान्य इरादे के साथ अपराध यानी दो या दो से ज्यादा लोगों का किसी अपराध को करने के लिए एक जैसा इरादा होना. सभी द्वारा पहले से ही प्लान बनाकर उस अपराध को करना शामिल है. सभी को अपराध के सजा के प्रावधान अनुसार समान सजा मिलेगी.

 

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