एचडी कुमारस्वामी को SC से झटका, भ्रष्टाचार मामले में कार्रवाई रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एच डी कुमारस्वामी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने दो भूखंडों की अधिसूचना रद्द करने से संबंधित भ्रष्टाचार के मामले में कार्यवाही रद्द करने की मांग की थी.

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HD Kumaraswamy. (फाइल फोटो) HD Kumaraswamy. (फाइल फोटो)

संजय शर्मा / सगाय राज

  • नई दिल्ली,
  • 25 फरवरी 2025,
  • अपडेटेड 11:11 PM IST

केंद्रीय भारी उद्योग और इस्पात मंत्री एवं कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने उनकी एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामले को रद्द करने की मांग की थी.

दरअसल, 2007 में मुख्यमंत्री रहते हुए कुमार स्वामी पर बैंगलौर डेवलपमेंट अथॉरिटी की दो एकड़ जमीन के नोटिफिकेशन को रद्द करने का आदेश दिया था. जिसको लेकर कुमारस्वामी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई थी. कुमारस्वामी की दलील थी कि मुकदमा चलाने के लिए उचित अथॉरिटी से इजाजत नहीं ली गई है. इसलिए उनके खिलाफ चल रहे इस मामले को रद्द किया जाना चाहिए.

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कुमारस्वामी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस राजेश बिंदल की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 9 अक्टूबर 2020 के आदेश के खिलाफ अब केंद्रीय मंत्री कुमारस्वामी की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. इससे पहले शीर्ष अदालत ने 18 जनवरी 2021 को कुमारस्वामी की याचिका पर शिकायतकर्ता और कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी किया था.

मुदकमा चलाने का रास्ता हुआ साफ

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में जमीन के नोटिफिकेशन को रद्द करने के मामले में आपराधिक कार्यवाही रद्द करने से इनकार कर दिया. कोर्ट ने माना कि एंटी करप्शन एक्ट मे 2018 में किए गए संशोधन के तहत संरक्षण का अधिकार नहीं मिलता. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब कुमारस्वामी के खिलाफ निचली अदालत में चल रहे मुकदमे को आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है.

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वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश रावल और अतिरिक्त महाधिवक्ता अमन पंवार कर्नाटक राज्य की ओर से पेश हुए और सर्वोच्च न्यायालय में कुमारस्वामी की याचिका का विरोध किया.

SC ने खारिज की दलीलें

सुप्रीम कोर्ट ने कुमारस्वामी के वकील की इस दलील को खारिज कर दिया कि अभियोजन के लिए सेंक्शन की जरूरत है. कोर्ट ने कहा कि एंटी करप्शन एक्ट में किए गए संशोधन पिछली तारीख से लागू नहीं होंगे.

यह मामला एम एस महादेव स्वामी द्वारा बेंगलुरू में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विशेष न्यायाधीश के समक्ष दायर एक निजी शिकायत से संबंधित है, जिसमें कुमारस्वामी और अन्य के खिलाफ मुकदमा चलाने की मांग की गई है. शिकायत में आरोप लगाया गया है कि जून 2006 से अक्टूबर 2007 के बीच कुमारस्वामी के मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान बेंगलुरु दक्षिण तालुक के उत्तरहल्ली होबी के हलगेवदेरहल्ली गांव में दो भूखंडों की अधिसूचना रद्द कर दी गई थी, ताकि आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सके.

क्या है मामला

ये मामला बेंगलुरु के बनशंकरी इलाके में 2 एकड़ और 24 गुंटा जमीन को डी नोटिफाई करने के आदेश के बाद शुरू हुआ था. जमीन के इस टुकड़े को 1997 में बैंगलोर विकास प्राधिकरण (बीडीए) द्वारा अधिग्रहित किया गया था. बीडीए की आपत्तियों के बावजूद, तत्कालीन मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने 2007 में इसके नोटिफिकेशन को रद्द करने का आदेश दिया था. जिसके बाद 2010 में इसे निजी पार्टियों को 4.14 करोड़ रुपये में बेच दिया गया.

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2019 में दायर की क्लोजर रिपोर्ट

वहीं, साल 2019 में जब कुमारस्वामी दोबारा मुख्यमंत्री बने तो इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई. हालांकि, इस क्लोजर रिपोर्ट को एमपी/ एमएलए कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट ने कुमारस्वामी को समन भी जारी कर दिया. 

HC ने बरकरार रखा समन का आदेश

MP/MLA कोर्ट के फैसले को कुमारस्वामी में हाईकोर्ट मे चुनौती दी, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने समन आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि आरोपों की गंभीरता को देखते हुए इसमें दखल देने का कोई आधार नहीं बनता है. कुमारस्वामी ने हाईकोर्ट के फैसले को 2020 में सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. कर्नाटक सरकार ने भी कुमारस्वामी की मांग का विरोध करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार अधिनियम में किया गया 2018 का संशोधन पिछले अपराधों पर लागू नहीं किया जा सकता है.

वहीं, हाईकोर्ट ने कहा था कि कथित अपराधों के लिए कुमारस्वामी के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त सामग्री मौजूद है और यह दिखाने के लिए कोई सामग्री न होने के कारण कि उनके खिलाफ शुरू की गई कार्रवाई अदालत की प्रक्रिया का दुरुपयोग थी और इसके परिणामस्वरूप न्याय में विफलता हुई है, आरोपित कार्रवाई को रद्द करने का कोई आधार नहीं है.

पूर्व मंजूरी के मुद्दे पर हाईकोर्ट ने कहा कि उसने 2012 में आदेश पारित किया था कि मामले की परिस्थितियों और याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति को देखते हुए सीआरपीसी की धारा 197 और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 के तहत मंजूरी आवश्यक नहीं है.

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