जानिए कैसे नीतीश की सोशल इंजीनियरिंग और 'मोदी मैजिक' के सामने फेल हुआ तेजस्वी का 'MY-BAAP'

इस बार के चुनावी नतीजों से साफ है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल नहीं रही. दूसरी तरफ इस बार आरजेडी ने भी अपने परंपरागत मुस्लिम और यादव वोट बैंक को एक साथ रखते हुए कुशवाहा समाज को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश की थी.

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नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग के सामने फेल हुआ तेजस्वी का 'MY-BAAP' नीतीश कुमार की सोशल इंजीनियरिंग के सामने फेल हुआ तेजस्वी का 'MY-BAAP'

रोहित कुमार सिंह

  • पटना,
  • 06 जून 2024,
  • अपडेटेड 10:11 PM IST

बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर से यह बात स्पष्ट हो गई कि जब भी बीजेपी के साथ नीतीश कुमार आते हैं तो एनडीए वोट बैंक के लिहाज से बहुत ज्यादा मजबूत हो जाता है और उसका फायदा सीटों की संख्या के रूप में देखने को मिलता है. इसी साल जनवरी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल हुए थे तो माना गया कि यह बीजेपी का बिहार में लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए उठाया गया बेहद महत्वपूर्ण कदम था. 

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नीतीश कुमार का वापस एनडीए में आने का नतीजा लोकसभा चुनाव में देखने को मिला जब एनडीए ने बिहार में 40 में से 30 सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि, 2019 की तुलना में एनडीए को 9 सीटों का नुकसान भी उठाना पड़ा जब उसने 40 में से 39 सीट पर जीत हासिल की थी. माना जा रहा है कि बीजेपी और नीतीश कुमार वोट के लिहाज से एक दूसरे के पूरक हैं. एक तरफ जहां जेडीयू को नरेंद्र मोदी मैजिक का फायदा मिलता दिखता है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी को भी नीतीश कुमार के पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट बैंक का सोशल इंजीनियरिंग का फायदा साफ तौर पर मिलता दिखता है. 

चुनाव से पहले बदला पाला

शायद यही वजह है कि इस बार लोकसभा चुनाव से पहले जनता दल यूनाइटेड के 16 सांसदों की तरफ से नीतीश कुमार को बताया गया कि महागठबंधन में रहकर चुनाव लड़ना उनके लिए सही नहीं रहेगा. इसी कारण से नीतीश कुमार भी एनडीए में आए और इसका फायदा यह हुआ कि 16 में से 12 सीट पर जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार जीत गए. माना जा रहा है कि नरेंद्र मोदी मैजिक के कारण ही बिहार में जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवारों की जीत हुई है. 

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बीजेपी को मिला नीतीश के EBC वोट बैंक का फायदा

वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार ने जो पिछले कुछ वर्षों में अलग से EBC वोट बैंक बनाया है, जो आबादी का तकरीबन 36 प्रतिशत है और उसके साथ गैर-यादव OBC वोट बेस तैयार किया है उसका फायदा भी बीजेपी को मिला. दिलचस्प बात यह है कि नीतीश का 36 प्रतिशत EBC और गैर-यादव OBC वोट बैंक, 6 प्रतिशत दलित वोट बैंक और साथ में बीजेपी का सवर्ण वोट बैंक जब साथ मिल जाता है तो यह एक जबरदस्त सोशल इंजीनियरिंग की तस्वीर पेश करता है जिसका फायदा एनडीए को चुनाव में साफ दिखता है. 

नीतीश कुमार के वोटबैंक में सेंधमारी नहीं कर पाए तेजस्वी

इस बार के चुनावी नतीजों से साफ है कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन नीतीश कुमार के कोर वोट बैंक में सेंधमारी करने में सफल नहीं रही. दूसरी तरफ इस बार आरजेडी ने भी अपने परंपरागत मुस्लिम और यादव वोट बैंक को एक साथ रखते हुए कुशवाहा समाज को भी अपने साथ जोड़ने की कोशिश की थी. 

चुनावी समीकरण साधने के लिए तेजस्वी यादव ने मुस्लिम-यादव MY के साथ-साथ कुशवाहा समाज को भी जोड़ने की कोशिश की. आरजेडी कोटा से तीन कुशवाहा उम्मीदवार खड़े किए और उसके साथ-साथ BAAP ( B बहुजन, Aअगड़ा, A आधी आबादी, P Poor) भी बनाया मगर इसके बावजूद भी एनडीए के वोट बैंक को नहीं हिला पाए.

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बीजेपी और आरजेडी के निशाने पर था कुशवाहा समाज

गौरतलब है, इस बार के चुनाव में कुशवाहा समाज जिनकी संख्या तकरीबन 4 फीसदी है बीजेपी और आरजेडी के निशाने पर था. कुशवाहा वोटरों को साधने के उद्देश्य से इसी साल भाजपा ने कुशवाहा समाज से आने वाले सम्राट चौधरी को डिप्टी सीएम बनाया था. मगर लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने एक भी कुशवाहा उम्मीदवार नहीं उतारा. वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन में आरजेडी में तीन, कांग्रेस, वीआईपी, CPI (ML) और सीपीएम ने 1-1 कुशवाहा उम्मीदवार उतारे थे. आरजेडी कोटा से केवल एक कुशवाहा उम्मीदवार, औरंगाबाद से अभय कुशवाहा ने चुनाव जीता.

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