शाहूजी महाराज से जुड़ा इतिहास, दुनिया है जिसकी दीवानी... कोल्हापुरी चप्पलों से चल रही लाखों लोगों की आजीविका

कोल्हापुरी चप्पलों का इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा है. पहली बार महाराष्ट्र के साहू और चोपड़े परिवारों ने इन चप्पलों को बनाया था. इन परिवारों का संबंध कोल्हापुर क्षेत्र के ऐतिहासिक चर्मशिल्पकार समुदाय से है. छत्रपति शाहू महाराज (1874-1922) ने अपने शासनकाल में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया और उन्हीं के शासनकाल में ये चप्पलें दरबारी वस्त्रों के रूप में इस्तेमाल होने लगीं.

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800 साल पुराना है कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास (फोटो: AI) 800 साल पुराना है कोल्हापुरी चप्पल का इतिहास (फोटो: AI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 30 जून 2025,
  • अपडेटेड 1:51 PM IST

इटली का लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा विवादों में है और हिंदुस्तानियों के निशाने पर भी. दरअसल प्राडा ने मिलान फैशन वीक में अपने Men’s Spring 2026 कलेक्शन में कोल्हापुरी स्टाइल की चप्पलें पेश कीं जिनकी कीमत करीब 1.2 लाख रुपये थी. इस डिजाइन के लिए भारत की मशहूर कोल्हापुरी चप्पलों को क्रेडिट नहीं दिया गया था जिसके चलते बवाल मच गया.

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इस पर महाराष्ट्र के कारीगर समुदाय और महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर (MACCIA) ने विरोध जताया और इसे Artisan Act व GI नियमों का उल्लंघन बताया. विरोध बढ़ा तो प्राडा ने औपचारिक रूप से अपनी गलती स्वीकार की और माना कि उसकी डिजाइन भारत की प्रसिद्ध हस्तनिर्मित कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित है, जिनका इतिहास सदियों पुराना है.

क्या है कोल्हापुरी चप्पलों का इतिहास?

कोल्हापुरी चप्पलों का इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा है. पहली बार महाराष्ट्र के साहू और चोपड़े परिवारों ने इन चप्पलों को बनाया था. इन परिवारों का संबंध कोल्हापुर क्षेत्र के ऐतिहासिक चर्मशिल्पकार समुदाय से है. छत्रपति शाहू महाराज (1874-1922) ने अपने शासनकाल में कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित किया और उन्हीं के शासनकाल में ये चप्पलें दरबारी वस्त्रों के रूप में इस्तेमाल होने लगीं.

2009 में मिला GI टैग

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1920-30 के दशक में इन चप्पलों ने बाजार में अपनी जगह बनानी शुरू की और मुंबई, पुणे जैसे शहरों में ये बिकने लगीं. ब्रिटिश शासन में ये चप्पलें प्रदर्शनियों और हस्तशिल्प मेलों में जाने लगीं. 1960 का दशक आते-आते ये चप्पलें फैशन का हिस्सा बनने लगीं. साल 2009 में इन चप्पलों को GI टैग यानी Geographical Indication Tag मिला, जिससे इन्हें कानूनी और वैश्विक मान्यता मिली.

उद्योग पर निर्भर हजारों परिवारों की आजीविका

वर्तमान में कोल्हापुरी चप्पलें पूरी दुनिया में मशहूर हैं. भारत सरकार के MSME मंत्रालय, महाराष्ट्र राज्य चमड़ा विकास निगम (LIDCOM) और GI रजिस्ट्रार ऑफिस के मुताबिक, आज करीब 1 लाख लोग प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कोल्हापुरी चप्पल उद्योग से जुड़े हुए हैं. यह इंडस्ट्री कोल्हापुर, सांगली, सतारा, बीड़, सोलापुर और नासिक जैसे जिलों में फैली हुई है और हजारों परिवार अपनी आजीविका के लिए इस उद्योग पर निर्भर हैं. 

आज रोजमर्रा के पहनावे की बात हो या फैशन डिजाइनर्स से लेकर बॉलीवुड सेलेब्स पारंपरिक पहनावे के रूप में कोल्हापुरी चप्पल हर जगह छाई हुई है. इस चप्पल की खास बात यह है कि इसे कारीगर मशीन के बजाय पूरी तरह हाथ से बनाते हैं जिसमें सिर्फ प्राकृतिक चमड़े का इस्तेमाल किया जाता है.

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