बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया का जन्म 15 अगस्त 1945 को पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी ज़िले के नयाबस्ती इलाके में हुआ था. उनके पिता इस्कंदर मजूमदार और मां तैयबा मजूमदार ने अपनी इस बेटी का नाम रखा था खालिदा खानम. गोरी-सुंदर और गुड़िया जैसी दिखने वाली इस बच्ची को घर-परिवार और पड़ोस में प्यार से 'पुतुल' कहा जाता था, जबकि कई लोग उन्हें 'ब्यूटी' के नाम से भी बुलाते थे.
1947 में देश के बंटवारे के बाद मजूमदार परिवार ने अपनी जमीन-जायदाद बेच दी और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) चले गए. लेकिन जलपाईगुड़ी में खालिदा जिया से जुड़ी यादें आज भी लोगों के दिलों में ज़िंदा हैं.
खालिदा जिया के पिता इस्कंदर मजूमदार की जलपाईगुड़ी नगर पालिका में काम करने वाले फजल उर रहमान से गहरी दोस्ती थी. इस्कंदर मजूमदार ज़िला कलेक्टर कार्यालय में कार्यरत थे. फजल उर रहमान के बेटे टुटू रहमान बताते हैं कि दोनों परिवारों के बीच गहरा पारिवारिक रिश्ता था और एक-दूसरे के घर आना-जाना लगा रहता था. खालिदा जिया के दो भाई और तीन बहनें थीं, लेकिन उनकी खूबसूरती की वजह से सभी उन्हें खास तौर पर 'पुतुल' कहकर बुलाते थे.
बंटवारे के बाद भले ही मजूमदार परिवार बांग्लादेश चला गया, लेकिन रहमान परिवार भारत में ही रहा. टुटू रहमान बताते हैं कि जब-जब बांग्लादेश से खालिदा जिया के रिश्तेदार भारत आते थे, वे उनके परिवार से ज़रूर संपर्क करते थे. करीब चार साल पहले भी खालिदा जिया का एक रिश्तेदार आया था, जिसे टुटू रहमान ने उनका पुश्तैनी घर दिखाया. टुटू रहमान खुद भी एक बार खालिदा जिया के क़रीबी बीएनपी नेता के बुलावे पर बांग्लादेश गए थे, लेकिन उस दौरान उनकी मुलाक़ात खालिदा जिया से नहीं हो सकी.
खालिदा जिया के बचपन की एक और याद जुड़ी है उनके पड़ोसी भोला मंडल के परिवार से. बताया जाता है कि खालिदा जिया ने भोला मंडल की मां की गोद में भी काफी समय बिताया था, जो उन्हें प्यार से 'ब्यूटी' कहा करती थीं. दोनों परिवारों के रिश्ते बेहद आत्मीय थे. बाद में भोला मंडल की भतीजी ने भी खालिदा जिया से जुड़ी अपनी यादें साझा कीं और बताया कि घर में अक्सर खालिदा जिया को लेकर बातचीत होती रहती थी.
फिलहाल जलपाईगुड़ी में स्थित खालिदा जिया का पुराना पैतृक घर चक्रवर्ती परिवार के स्वामित्व में है, लेकिन उस घर और इलाके में आज भी बंटवारे से पहले की वो यादें सांस लेती महसूस होती हैं, जो एक छोटी-सी “पुतुल” से लेकर बांग्लादेश की राजनीति की बड़ी शख्सियत तक के सफर की गवाही देती हैं.
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