इंडिगो एयरलाइंस की सेवाओं में लगातार आ रही दिक्कतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक नई पत्र याचिका दाखिल की गई है. वकील अमन बंका ने चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) को संबोधित इस चिट्ठी में अदालत से स्वत: संज्ञान लेते हुए इस जन समस्या में सीधा हस्तक्षेप करने की अपील की है. याची ने कहा कि ये सार्वजनिक महत्व का मामला है जो लाखों आम नागरिकों को प्रभावित कर रहा है.
याचिका में कहा गया है कि घरेलू उड़ानों के रद्द होने की घटनाएं पूरे भारत में तेजी से बढ़ रही हैं, जिनमें सबसे अधिक इंडिगो एयरलाइंस प्रभावित है. बाजार के लगभग 60% हिस्से पर कब्जा रखने वाली इस एयरलाइन कथित तौर पर परिचालन संबंधी व्यवधानों के कारण अचानक रद्द होने वाली इन उड़ानों ने आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं में व्यापक संकट और व्यवस्थागत विफलता को जन्म दिया है.
उन्होंने तर्क दिया कि हवाई यात्रा अब केवल एक व्यावसायिक सेवा नहीं रह गई है. ये अब राष्ट्रीय रफ्तार आपातकालीन रसद, शासन, स्वास्थ्य सेवा, वाणिज्य और पारिवारिक जीवन को सहारा देने वाला एक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा है. भारत जैसे भौगोलिक रूप से विशाल देश में, जहां दूरियां बहुत अधिक हैं और समय के प्रति संवेदनशील गतिशीलता अत्यंत आवश्यक है, विमानन सार्वजनिक परिवहन के एक अनिवार्य स्तंभ के रूप में कार्य करता है.
मेडिकल क्षेत्र पर गंभीर असर
उन्होंने ये भी कहा कि कई यात्री जीवन रक्षक चिकित्सा उद्देश्यों के लिए हवाई संपर्क पर निर्भर हैं. अंग प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे मरीज, गंभीर शल्य चिकित्सा की आवश्यकता वाले व्यक्ति, विशेष उपचार के लिए यात्रा कर रहे लाइलाज बीमारियों से ग्रस्त लोग और आपातकालीन डॉक्टर परामर्श की आवश्यकता वाले लोग, जब पर्याप्त योजना या विकल्पों के बिना उड़ानें रद्द कर दी जाती हैं तो उन्हें अपूरणीय परिणाम भुगतने पड़ते हैं. अस्पतालों और डॉक्टरों ने बताया है कि कई बार अचानक रद्द हुई उड़ानों के कारण ऑपरेशन्स छूट जाते हैं, परीक्षाएं मिस हो जाती हैं और कई यात्रियों को आर्थिक तथा भावनात्मक नुकसान सहना पड़ता है.
शैक्षणिक क्षेत्रों पर भी पड़ा असर
याचिकाकर्ता ने बताया कि इसका असर शैक्षणिक क्षेत्र में भी प्रभाव पड़ा है. प्रतियोगी परीक्षाएं, विश्वविद्यालय प्रवेश, कैंपस इंटरव्यू और छात्रवृत्ति मूल्यांकन में शामिल छात्रों को अवसर गंवाने पड़ रहे हैं. कई छात्र दूर-दराज क्षेत्रों से आते हैं और पहले ही आर्थिक निवेश कर चुके होते हैं. और अचानक फ्लाइट रद्द होने से उनकी शिक्षा या आजीविका सुरक्षित करने की क्षमता खतरे में पड़ जाती है.
इसके अलावा व्यवसायी, सरकारी अधिकारी, रक्षाकर्मी और पेशेवरों को वित्तीय नुकसान हो रहा है. सुनवाई, बैठकें, निविदाएं और न्यायिक कार्यवाहियां, चिकित्सा शिविर और औद्योगिक निरीक्षण में देरी हो रही है. नियोक्ताओं को भी नुकसान उठाना पड़ता है जब कर्मचारी समय पर नहीं पहुंच पाते.
याचिका में कहा गया है कि इंडिगो की प्रतिक्रिया में जवाबदेही नहीं दिखाई देती, जिससे उपभोक्ता संरक्षण कानून पर सवाल उठते हैं. नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए (DGCA) की 'चुप्पी' और आकस्मिक प्रोटोकॉल का अभाव 'प्रशासनिक निष्क्रियता' को दर्शाता है. ये संकट अनुच्छेद 21 के तहत जीवन, सम्मान और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रभावित करता है, जिसमें स्वास्थ्य सेवा और अवसरों तक समय पर पहुंच शामिल है.
इन मुद्दों पर हो सुनवाई
याचिकाकर्ता ने कोर्ट से नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए से कारणों और उपायों पर स्थिति रिपोर्ट मांगने का आग्रह किया. मांगों में आपातकालीन विमानन आकस्मिकता प्रोटोकॉल (Emergency Aviation Contingency Protocol) के निर्माण का निर्देश देना शामिल है, जो मुआवजा और प्राथमिकता मार्ग (Priority Routing) सुनिश्चित करे.
इसके अलावा पारदर्शिता, समयबद्ध रिफंड और शिकायत निवारण में तेजी सुनिश्चित करने के लिए यात्री संरक्षण ढांचे को संस्थागत बनाने की मांग की गई.
संजय शर्मा