इन दिनों नेटफ्लिक्स की 'आईसी 814: द कंधार हाईजैक' सीरीज को लेकर घमासान छिड़ा हुआ. विवाद विमान को हाइजैक करने वाले अपहरणकर्ताओं से जुड़ा हुआ है. इस सीरीज में पांचों पाकिस्तानी आतंकवादियों के असली नाम नहीं बताये गए हैं. आरोप ये भी है कि पाकिस्तानी आईएसआई को क्लीन चिट दी गई है और सरकार की छवि भी खराब तरीके से पेश की गई है.
मामला इतना बढ़ गया है कि सरकार को दखल देना पड़ा. गृह मंत्रालय और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से मुलाकात के बाद नेटफ्लिक्स ने सीरीज के शुरुआती डिस्क्लेमर को अपडेट करने का फैसला किया. यानि डिस्क्लेमर में पाकिस्तानी आतंकवादियों के असली नाम और कोड नाम दोनों दिखाए जाएंगे. इस विवाद के बीच विमान के अपहरण से जुड़ी एक पुरानी स्टोरी यहां साझा कर रहे हैं जो मूल रूप से इंडिया टुडे के 24 जनवरी, 2000 के अंक में प्रकाशित हुई थी-
जब 4 दिन से इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहरण की खबर पर पूरे देश में चर्चा हो रही थी, उसी दौरान 29 दिसंबर, 1999 को मुंबई की सिटी पुलिस की एक टीम अलग तरह की पार्टी की तैयारी में जुटी हुई थी. जोगेश्वरी के बेहरामबाग के मुस्लिम बहुल इलाके में रहने वाले अन्य लोगों की तरह, पुलिसकर्मी भी सहरी खत्म होने का इंतजार कर रहे थे. शहरी सुबह-सुबह का वह समय होता है जब मुसलमान अपना रमजान का उपवास शुरू करने से पहले खाना खाते हैं.
उस सुबह, मलाड के पठानवाड़ी चॉल में, क्राइम ब्रांच की एक अन्य टीम ने एक पाकिस्तानी नागरिक मोहम्मद आसिफ को गिरफ्तार किया और उसके पास से एक भरी हुई पिस्तौल और 1.72 लाख रुपये नकद बरामद किए थे. पूछताछ के दौरान, आसिफ ने खुफिया एजेंसियों और बेहरामबाग टीम के पास पहले से मौजूद जानकारी की पुष्टि की और बताया कि एक व्यवसायी के फ्लैट में आईएसआई एजेंट छिपे हुए थे.
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और वाकई में ये एजेंट वहां छिपे हुए थे. अब्दुल लतीफ एडम मोमिन एक कथित आईएसआई एजेंट था, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने भारतीय इतिहास में सबसे लंबे समय तक अपहरण अभियान की रसद (लॉजिस्टिक्स) तैयार की थी. रफीक मोहम्मद, जिसे "हेल्पर" के रूप में काम सौंपा गया था वह लतीफ के साथ मुस्ताक अहमद आज़मी के बेहरामबाग घर में आराम फरमा रहा था. इसी दौरान पुलिस ने उन्हें अरेस्ट करने की कोशिश की थी.
एक साल से रच रहे थे साजिश!
पुलिस की आशंका थी कि गिरफ्तारी के समय बवाल हो सकता है, हालांकि लतीफ और मोहम्मद ने पुलिस गिरफ्तारी के समय कोई प्रतिरोध नहीं किया. यह सब तब हुआ जब तलाशी के दौरान महत्वपूर्ण दस्तावेजों के अलावा कम से कम दो एके-56 राइफलें, पांच हथगोले, चार एंटी टैंक टीएनटी गोले, विस्फोटक और डेटोनेटर बरामद हुए, जो सभी उस गंदे कमरे में रखे गए थे, जो पिछले साल (1998) जून से षड्यंत्रकारियों अपना अड्डा बनाया हुआ था.
गिरफ्तार किए गए दोनों लोगों से प्रारंभिक पूछताछ के बाद पुलिस जोगेश्वरी के राजनगर में एक अन्य फ्लैट पर पहुंची, जहां छापेमारी के दौरान नेपाली नागरिक गोपाल भीमबहादुर मान उर्फ यूसुफ नेपाली को गिरफ्तार किया गया. यूसुफ नेपाली यहां अपनी पत्नी आयशा यूसुफ खान के साथ मौजूद था और उसके पास चार जिंदा कारतूस और विस्फोटकों से भरी एक स्टार-मार्क वाली पिस्तौल थी. पुलिस का मानना है कि नेपाली ने ही काठमांडू में यह सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्था की थी कि ऑपरेशन सफलतापूर्वक अंजाम दिया जाए.
आईएसआई के नापाक मंसूबों का भी चला था पता
जब पुलिस ने गिरफ्तार लोगों से एकत्रित जानकारी को जोड़ना शुरू किया, तो उन्हें इसकी गंभीरता का एहसास हुआ. इससे न केवल अपहरण में की गई उच्च स्तरीय योजना का पता चला, बल्कि भारत के शहरी इलाकों, विशेष रूप से मुंबई में व्यापक आतंक फैलाने की पाकिस्तानी आईएसआई की बड़ी योजना का भी खुलासा हुआ.
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एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, "उनकी योजना 1993 की शुरुआत में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के बाद शहर में जो दहशत फैली थी, उसे फिर से पैदा करने की थी." पुलिस ने माना कि आईएसआई की योजना में गणतंत्र दिवस के साथ चार महानगरों और अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर बम धमाके करने की थी. उन्होंने बताया था कि उसी दौरान श्रीनगर के एक बाजार में धमाके हुए थे जिसमें 12 लोग मारे गए, जिसमें आतंकियों का ही हाथ था. उसी दौरान दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुआ धमाका आतंकवादियों के दिमाग में चल रही तबाही की एक पूर्व नियोजित योजना का हिस्सा था.
मोबाइल फोन पर की गई कॉल से पता चली साजिश
इस योजना का एक हिस्सा 25 दिसंबर शुरू हुआ यानी आईसी 814 के अपहरण के एक दिन बाद, जब खुफिया एजेंसियों ने कंधार में अपहरणकर्ताओं से मुंबई में अपने सूत्र को भेजे गए संदेश को इंटरसेप्ट किया था. अपहरणकर्ता भारत में अपने दोस्तों से अपहरण के नतीजों के बारे में जानना चाहते थे. कॉल एक मोबाइल फोन पर की गई थी और बाद में पता चला कि पिछले दो दिनों में उसी नंबर से काठमांडू और कराची में कई कॉल किए गए थे.
इन कॉल्स से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस लतीफ तक पहुंची, जो बदले में कराची में एक सूत्र को हर पहलू पर अपडेट कर रहा था, जिसमें सरकार की प्रतिक्रिया से लेकर बंधकों के प्रति जनता की सहानुभूति तक शामिल थी.
लतीफ ने बनवा लिए थे भारतीय पासपोर्ट
लतीफ के ठिकाने पर छापेमारी के दौरान जो कई दस्तावेज बरामद हुए, उनमें से दो पासपोर्ट ऐसे थे जो दरअसल इंडियन एयरलाइंस के विमान में सवार दो अपहरणकर्ताओं के लिए बनाए गए थे. इनमें से एक पासपोर्ट अपहरण दल के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर के भाई इब्राहिम अजहर का था, जबकि दूसरा पासपोर्ट कराची के हरकत-उल-अंसार के सदस्य सनी अहमद काजी का था. ये पासपोर्ट अहमद अली मोहम्मद अली शेख और फारूक अब्दुल अजीज सिद्दीकी के नाम से बनाए गए थे. हैरानी की बात यह है कि ये पासपोर्ट असली थे और इन्हें मुंबई पासपोर्ट कार्यालय ने जारी किया था.
उन्हें हासिल करने के लिए जो दस्तावेज जमा किए गए थे, वे जाली थे. मुंबई स्थित सेवन ट्रैवल्स एजेंसी ने कथित तौर पर उन्हें 5,000 रुपये में मुहैया कराया था. साक्ष्यों से पता चलता है कि सितंबर में जोगेश्वरी में वैशाली मोटर ड्राइविंग एंड ट्रेनिंग स्कूल से इन नामों से ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त किए गए थे।.बाद में इन लाइसेंसों का इस्तेमाल अपहरणकर्ताओं के लिए पासपोर्ट हासिल करने में किया गया.
भारत में ISI का एजेंट था लतीफ
लतीफ की गिरफ्तारी पुलिस के लिए एक बड़ी सफलता थी. गुजरात के पालनपुर जिले के एक छोटे हार्डवेयर व्यापारी का बेटा, 27 वर्षीय लतीफ 1995 में नौकरी की तलाश में दुबई गया था. कुछ समय बाद, वह भारत लौट आया और संयोग से उसे एक ऑडियो कैसेट मिला, जिसमें मौलाना अजहर ने कश्मीर में जेहाद का आह्वान करते हुए भारत के खिलाफ जहरीले हमले किए थे. वह तुरंत इस मकसद से जुड़ गया और 1996 की शुरुआत में उसने खुद को हरकत-उल-अंसार में शामिल कर लिया.
1997-98 के दौरान पाकिस्तान में हरकत के एक शिविर में प्रशिक्षित लतीफ़ दिसंबर 1998 में आईएसआई के "रेजीडेंट एजेंट" के रूप में मुंबई वापस आया. उसका एजेंडा: भारतीय शहरों में आतंक फैलाना था. लतीफ़ के एक भाई, जो दक्षिण मुंबई में एक रेस्तरां चलाते थे, वो याद करते हुए बताते हैं कि लतीफ़ लंबे समय तक गायब रहा था और जब परिवार ने उसे 1998 में देखा, तो वह एक बदला हुआ इंसान था. एक बार जब उसका कोई रिश्तेदार पाकिस्तान के खिलाफ़ बोलता था, तो वह हिंसक भी हो जाता था.
आराम से दो बार भारत पहुंचे थे दो पाक आतंकी
अगस्त 1999 में ही भारतीय विमान को हाईजैक करने की साजिश रची गई थी. हालांकि उसका काम मुंबई के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से एक विमान को हाईजैक करना था, लेकिन लतीफ़ ने अपने आकाओं को बताया कि यह लगभग असंभव है. फिर साजिशकर्ताओं ने काठमांडू पर निशाना साधा. यही वह समय था जब पाकिस्तान से दो अन्य आईएसआई एजेंट मिस्त्री ज़हूर इब्राहिम और शाकिर को मुंबई भेजा गया. उन्हें लतीफ़ और नेपाली को उनकी रणनीति को बेहतर बनाने में मदद करने का जिम्मा सौंपा गया. दिसंबर में लतीफ एक अपहरणकर्ता के साथ गोरखपुर के रास्ते काठमांडू भी गया था. वह एक सप्ताह के भीतर मुंबई वापस आ गया था, लेकिन जल्द ही उसने दूसरी यात्रा की, इस बार वह कलकत्ता और न्यू जलपाईगुड़ी के रास्ते वहां पहुंचा.
बैंक से लूटे थे 7.52 लाख रुपये
इससे पहले, 6 अक्टूबर की सुबह, चार हथियारबंद लोगों ने मलाड से एक कार का अपहरण किया और बोरीवली में महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक में घुस गए. घबराए हुए ग्राहकों और बैंक कर्मचारियों की मौजूदगी में गिरोह ने 7.52 लाख रुपये लूट लिए और भागने से पहले बैंक के एक कर्मचारी से आईडी कार्ड छीन लिया. बाद में उन्होंने कार्ड का इस्तेमाल प्रीपेड सिम कार्ड खरीदने के लिए किया. इसी सेल फोन से लतीफ और उसके साथियों ने कराची, काठमांडू और कंधार में कॉल किए थे. पुलिस ने यह भी पाया कि आसिफ के फ्लैट से बरामद 1.72 लाख रुपये बैंक से लूटे गए पैसे का हिस्सा थे.
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हालांकि कई किरदार अभी भी उलझे हुए थे. एक बात तो यह थी कि पुलिस यह स्पष्ट करने में असमर्थ री थी कि नेपाली, जिसे छठा अपहरणकर्ता माना जाता है और जिसने नेपाल में सभी व्यवस्थाएं की थीं, वह अभी तक भी मुंबई में ही क्यों था. मिस्त्री और शाकिर की वास्तविक भूमिका क्या थी? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पुलिस को लतीफ के चार अन्य सहयोगियों के ठिकाने के बारे में कोई सुराग नहीं मिला जो उनके जाल से बचने में कामयाब रहे.
26 दिसंबर के बाद से मंत्रालय ने लगातार कानूनी और जांच एजेंसियों के साथ संपर्क बनाए रखा है और मुंबई में लतीफ और उसके साथियों द्वारा रची गई शैतानी योजनाओं का पता लगाने में विफल रहने के लिए राज्य खुफिया विभाग से जवाबदेही भी मांगी गई.
(लेखिका- शीला रावल)
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