चंपारण के लिए कैसे पिघला महात्मा गांधी का दिल, पढ़ें बिहार बुलावेे की पूरी कहानी

गांधी जी की चंपारण यात्रा के बाद ही अंग्रेजों के खिलाफ देशव्यापी विद्रोह की नींव पड़ी. आज गांधी जयंती के मौके पर हम आपको बता रहे हैं गांधी जी के ब‍िहार जाने की पूरी कहानी. 

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Mahatam Gandhi in Champaran Mahatam Gandhi in Champaran

प्रियरंजन कुमार

  • नई दिल्ली,
  • 02 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST

भारतीय इत‍िहास में महात्मा गांधी का एक विशेष स्थान है. मानों भारत और महात्मा गांधी एक-दूसरे के पूरक की तरह हैं. देश की आजादी में उनका अमूल्य योगदान रहा. लेक‍िन क्या आप जानते हैं क‍ि गांधी जी की चंपारण यात्रा के बाद ही अंग्रेजों के खिलाफ देशव्यापी विद्रोह की नींव पड़ी. आज गांधी जयंती के मौके पर हम आपको बता रहे हैं गांधी जी के ब‍िहार जाने के पर्दे की पीछे की कहानी. 

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गांधी जी को कैसे मिला बिहार का बुलावा?

1916 के दिसंबर में लखनऊ में कांग्रेस के अबतक के सबसे बड़े अधिवेशन का आयोजन हुआ. देशभर के अलग-अलग प्रांतों के 2300 प्रतिनिधि इस सभा में पहुंचे. बिहार के भी कई प्रतिनिधि इसमें शामिल हुए. जिसमें चंपारण के नीलवरों से परेशान वहां के रैयतों ने राजकुमार शुक्ल को अपना प्रतिनिधि बनाकर गांधीजी को निमंत्रण देने के लिए भेजा था. (यहां बता दें क‍ि नीलवर दरअसल नील की खेतों के माल‍िक हुआ करते थे और रैयत उनके ल‍िए ठेके पर इस नील की खेती को क‍रने वालों को कहा जाता था.) बिहार के प्रतिनिधियों ने सभा में पहुंचकर 'विषय निर्वाचिनी समिति' के सामने पटना यूनिवर्सिटी बिल और चंपारण में चल रही समस्याओं को लेकर दो प्रस्ताव रखे .  

चंपारण पर प्रस्ताव की मांग और गांधी जी की मनाही

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'विषय निर्वाचिनी समिति' में इन प्रस्तावों के रखने से पहले बिहार के प्रतिनिधियों ने सभा की मुख्य कार्यकार‍िणी में शामिल पंडित मदन मोहन मालवीय और गांधी जी के पास जाकर चंपारण के नीलवरों और रैयतों के बीच समस्याओं की जांच का प्रस्ताव पारित करने का आग्रह किया. मालवीय जी को चंपारण के संबंध में थोड़ी जानकारी थी, लेकिन गांधी जी इससे बिलकुल अनभिज्ञ थे. उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि वह इस विषय में उन्हें कुछ भी मालूम नहीं और वे जबतक इसे पूरी तरह जान नहीं लेते वे कुछ नहीं कर सकते.

चंपारण में गांधीजी और सब-इंस्पेक्टर असम कुर्बान अली (1917): फाइल फोटो

कांग्रेस की सभा में चंपारण की दुख गाथा और गांधी जी को निमंत्रण

गांधी जी की मनाही के बाद इस प्रस्ताव को पेश करने का भार बिहार के सुप्रसिद्ध नेता बाबू ब्रजकिशोर प्रसाद को दिया गया. उन्होंने चंपारण की समस्याओं को बताते हुए सभा में प्रस्ताव पेश किया. उन्होंने कांग्रेस के इस प्रस्ताव को पारित करने का आग्रह किया. साथ ही चंपारण सरकारी और गैर-सरकारी कमेटी नियुक्त कर जांच की मांग की. रैयतों के प्रतिनिधि राजकुमार शुक्ल ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया. उन्होंने गांधी जी को निमंत्रण देते हुए कहा कि चंपारण के लोगों की इच्छा है कि महात्मा जी खुद जाकर उनकी पीड़ा को देखें और उनका निवारण करें.

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गांधी जी से विशेष आग्रह और उनका आश्वासन

सभा खत्म होने के बाद बिहार के प्रतिनिधियों में से कुछ लोग लखनऊ से कानपुर तक उनके साथ गए. पूरे रास्ते उन्होंने चंपारण के लोगों की दुख भरी कहानी सुनाई. इससे गांधी जी का हृदय पिघल गया और उन्होंने कहा कि मार्च-अप्रैल में चंपारण आने की कोशिश करूंगा. यह सुनकर लोगों को काफी तसल्ली मिली.

गांधी जी को राजकुमार शुक्ल का पत्र

रैयतों ने फरवरी के अंतिम में फिर से राजकुमार शुक्ल के जरिए गांधी जी को पत्र भिजवाया और लखनऊ में किए उनके वादे को याद कराया. जिसका अंश कुछ इस प्रकार है-“चंपारण की 11 लाख दुखी प्रजा श्रीमान के चरण-कमल के दर्शन के लिए टकटकी लगाए बैठी है. उन्हें आशा ही नहीं, बल्क‍ि पूर्ण विश्वास है कि जिस प्रकार भगवान श्रीरामचंद्रजी के चरण-स्पर्श से अहिल्या तर गई, उसी प्रकार श्रीमान के चंपारण में पैर रखते ही हम 11 लाख प्रजाओं का उद्धार हो जाएगा.”

चंपारण सत्याग्रह (फाइल फोटो)

बिहार में महात्मा गांधी का आगमन

राजकुमार शुक्ल के पत्र के बाद गांधी जी के साथ इस मामले में कुछ और भी पत्र-व्यवहार हुए. फिर 30 मार्च को गांधी जी ने राजकुमार शुक्ल को एक पत्र लिखकर मुजफ्फरपुर आने के विषय में जानाकरी मांगी. साथ ही पूछा कि यदि वे तीन दिन चंपारण में ठहरें तो जो कुछ वहां देखने की आवश्यकता थी वे पूरी हो सकती है या नहीं. उन्होंने यह भी बताया कि वे अप्रैल में वहां पहुंच जाएंगे. फिर अचानक गांधी जी ने 3 अप्रैल 1917 को एक तार देकर राजकुमार शुक्ल को कलकत्ता (आज का कोलकाता) मिलने के लिए बुला लिया. राजकुमार शुक्ल गांधी जी से मिलवे फौरन कलकत्ता के लिए रवाना हो गए. इन सब बातों की खबर बिहार में किसी को नहीं थी. अंतत: 9 अप्रैल 1917 को वे शुक्ल जी के साथ कलकत्ता से रवाना हुए और 10 अप्रैल को वे उनके साथ बांकीपुर पहुंचे. शुक्लजी सीधे उन्हें राजेंद्र प्रसाद के कमरे पर ले गए.

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गांधी जी का बिहार में पहला अनुभव- जब नौकर ने इंतजार करावाया

महात्मा गांधी के बिहार आने की खबर किसी को भी नहीं मिली थी. राजेंद्र प्रसाद कांग्रेस कमेटी की बैठक के लिए कलकत्ता गए. कमरे पर कोई नहीं था. यहां बस एक नौकर था. उसने गांधी जी को नहीं पहचाना और उन्हें किसी मामली आदमी की तरह बैठाए रखा. इतने में ब्रजकिशोर प्रसाद के साथी मजहरूल हक को खबर मिली और वे गांधी जी को अपने कमरे पर ले गए.

मुजफ्फरपुर स्टेशन पर सैकड़ों की भीड़ और आरती से स्वागत

गांधी जी ने दिनभर घूम-फिरकर बांकीपुर को देखा और शाम को प्रोफेसर जीवतराम भगवानदास कृपलानी के यहां मुजफ्फरपुर के लिए निकल गए. जब गांधी जी देर रात मुजफ्फपुर पहुंचे. वहां पहले से ही उन्हें देखने के लिए सैकड़ों की भीड़ लगी थी. प्रोफेसर कृपलानी ने लोगों को बुलाया और महात्मा गांधी के साक्षात दर्शन कराए. स्टेशन पर उनकी आरती हुई और लोगों ने खुद उनकी गाड़ी को खींचा.

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