भारतीय जनता पार्टी इस बार पंजाब में खाता नहीं खोल सकी. वहीं हरियाणा में भी संख्या 10 से घटकर 5 हो गई. वहीं कांग्रेस जाट वोटों को अपने पास रखने में सफल रही. दिलचस्प बात यह है कि भगवा पार्टी का वोट शेयर पंजाब में बढ़कर करीब दोगुना हो गया और इसमें 18.56 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई.
वहीं हरियाणा में इसमें 12 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई. लेकिन 2019 में जीती गई दो सीटों को बरकरार नहीं रख पाई. पीओके, धारा 370 या राम मंदिर निर्माण जैसे मुद्दे भाजपा को वोट नहीं दिला पाए. पंजाब में कमल न खिल पाने और हरियाणा में कमल के मुरझा जाने के पांच कारण इस प्रकार हैं:
1. शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ा अंतर
पंजाब और हरियाणा में ज़्यादातर मतदाता ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं. हरियाणा की 65.12 प्रतिशत और पंजाब की 62.52 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है. हरियाणा और पंजाब की शहरी आबादी क्रमशः 34.88 और 37.52 प्रतिशत है.
भारतीय जनता पार्टी का पारंपरिक वोट बैंक शहरी और अर्ध शहरी इलाकों में है. हरियाणा हो या पंजाब, पार्टी के पास ग्रामीण आधार की कमी है. वर्ष 2014 एक अपवाद था जब पार्टी ने हरियाणा में अपने दम पर सरकार बनाई. 2019 में उसे ग्रामीण या जाट वोटों का उतना साथ नहीं मिल पाया और उसे जेजेपी के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसने 14.80 प्रतिशत वोट हासिल किए थे और इसमें ज़्यादातर जाट वोट थे.हरियाणा हो या पंजाब, शहरी-ग्रामीण विभाजन कमल न खिल पाने का यह एक मुख्य कारण है.
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2020 तक जब भाजपा-शिअद गठबंधन अस्तित्व में था, तब भाजपा ने केवल 23 विधानसभा सीटों और तीन लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ा था. ग्रामीण निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव अकाली दल ने लड़ा था. यह पहली बार है कि भाजपा ने ग्रामीण पंजाब में अपनी किस्मत आजमाई. पार्टी के पास पंजाब और हरियाणा दोनों में ग्रामीण आधार वाले मजबूत गठबंधन सहयोगी की कमी थी. 2020 तक शहरी-ग्रामीण की खाई उतनी नहीं थी जितनी कि तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के लागू होने के बाद हो गई.
किसान आंदोलन पार्ट-1 और पार्ट-2 ने ग्रामीण और शहरी मतदाताओं के बीच की दरार को और चौड़ा कर दिया. किसान आंदोलन पार्ट-1 को शहरी आबादी सहित लगभग सभी इलाकों से समर्थन मिला था. किसान आंदोलन पार्ट-2 को शहरी हरियाणा और पंजाब से ठंडी प्रतिक्रिया मिली क्योंकि इसने आमजन को प्रभावित किया और व्यापार मालिकों को नुकसान हुआ. किसान यूनियन के नेताओं ने भाजपा नेताओं को गांवों में घुसने नहीं दिया, जिससे पार्टी के चुनाव अभियान को बुरी तरह प्रभावित किया. किसान यूनियनों ने ग्रामीण क्षेत्रों में भाजपा की छवि किसान विरोधी के रूप में पेश की. हरियाणा में एक दर्जन से अधिक फसलों पर एमएसपी देने और पंजाब में हर अनाज को एमएसपी पर खरीदने के बावजूद भाजपा ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाई.
2. जाट मतदाता एकजुट
हरियाणा में एक दशक तक शासन करने के बावजूद भाजपा जाट समुदाय को आकर्षित नहीं कर पाई, जिनकी संख्या मतदाताओं का 22 प्रतिशत है. इस समुदाय के मतदाता कांग्रेस या इनेलो और जेजेपी के प्रति वफादार रहे. कांग्रेस, जिसने 2024 के लोकसभा चुनावों में अपने वोट शेयर में 15 प्रतिशत की बढ़ोतरी की, जाट वोटों को मजबूत करने में सफल रही.
3. कांग्रेस ने भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग को तोड़ा
2019 में भाजपा जाटों को छोड़कर सभी समुदायों के मतदाताओं को आकर्षित करने में सफल रही. 2019 में पार्टी का वोट शेयर 58 प्रतिशत था, जब उसने सभी 10 सीटों पर क्लीन स्वीप किया था. इस बार वोट शेयर घटकर 46 प्रतिशत रह गया, जो दर्शाता है कि गैर जाट और ओबीसी को आकर्षित करने की उसकी सोशल इंजीनियरिंग काम नहीं आई. पार्टी ने लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मनोहर लाल खट्टर को हटाकर ओबीसी समुदाय को आकर्षित करने के लिए नायब सिंह सैनी को सीएम घोषित किया, लेकिन वह सत्ता विरोधी लहर से नहीं उबर पाई. ब्राह्मण और सरपंच संघ भी भाजपा से नाराज है.
4. बढ़ती बेरोजगारी
एनएसएसओ के अनुसार, हरियाणा में बेरोजगारी दर देश में तीसरी सबसे अधिक है. 15 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में हरियाणा की बेरोजगारी दर 6.1 प्रतिशत है. पड़ोसी राज्य पंजाब में भी बेरोजगारी दर इतनी ही है, जहां कथित तौर पर गैर पंजाबियों को रोजगार दिया गया. हरियाणा सरकार पर आरोप है कि मनरेगा के तहत भी काम नहीं मिल रहा. औद्योगिक क्षेत्रों में 75 प्रतिशत रिक्तियां आरक्षित करने की राज्य सरकार की योजना भी उल्टी पड़ गई.
इजरायल में निर्माण श्रमिकों को रोजगार देने के लिए रोहतक में खोले गए सरकारी भर्ती केंद्र ने भी विवाद खड़ा कर दिया. अनुचित साधनों के कारण कई बार भर्ती परीक्षाएं रद्द होने के बाद राज्य सरकार करीब दो लाख रिक्तियों को भरने में विफल रही. कांग्रेस ने लोगों से वादा किया कि वह अग्निवीर भर्ती योजना को समाप्त करेगी.
5. शहरी क्षेत्रों में मतदाताओं की कम भागीदारी
चाहे पंजाब हो या हरियाणा, शहरी क्षेत्रों में मतदाताओं की कम भागीदारी के कारण वोट शेयर में कमी आई. हरियाणा में 2024 में 64.80 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2019 में 70 प्रतिशत था. शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक मतदान हुआ. लंबे वीकेंड और बढ़ते तापमान ने मतदाताओं को घरों के अंदर ही रहने पर मजबूर कर दिया, गुरुग्राम निर्वाचन क्षेत्र में 62.03 प्रतिशत मतदान हुआ, जो 2019 में 67.33 प्रतिशत था.
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पड़ोसी पंजाब में मतदान 62.80 प्रतिशत रहा. पटियाला, संगरूर, फरीदकोट, फतेहगढ़ साहिब, आनंदपुर साहिब होशियारपुर, लुधियाना, जालंधर अमृतसर की नौ लोकसभा सीटों में से किसी भी विधानसभा क्षेत्र में 70 प्रतिशत मतदान नहीं हुआ. खडूर साहिब सहित ग्रामीण क्षेत्रों में भारी मतदान हुआ. शहरी क्षेत्रों में मतदान ने भाजपा को प्रभावित किया, जिसका पारंपरिक वोट बैंक शहरी और अर्ध शहरी क्षेत्रों में है. दिलचस्प बात यह है कि राम मंदिर निर्माण या राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दे पंजाब और हरियाणा में भाजपा को ज्यादा वोट नहीं दिला सके.
मनजीत सहगल