सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने चुनावी बॉन्ड योजना को 'असंवैधानिक' करार देते हुए राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाले चंदे के बारे में जानकारी साझा करने का निर्देश दिया था. इसके लिए कोर्ट ने छह मार्च 2024 तक का समय बैंक को दिया था. लेकिन एसबीआई ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर अनुरोध किया है कि उन्हें इसके लिए 30 जून तक का समय दिया जाए.
अदालत ने 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक खरीदे गए इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने का निर्देश दिया था. लेकिन अब एसबीआई ने कहा है कि वह अदालत के निर्देशों का पूरी तरह से पालन करने करना चाहता है. हालांकि, डेटा को डिकोड करना और इसके लिए तय की गई समय सीमा के साथ कुछ व्यावहारिक कठिनाइयां हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान छुपाने के लिए कड़े उपायों का पालन किया गया है. अब इसके डोनर और उन्होंने कितने का इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा है, इस जानकारी का मिलान करना एक जटिल प्रक्रिया है.
ऐसे में इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने में एसबीआई की ओर से की जा रही देरी पर कानूनी विशेषज्ञों ने नाराजगी जाहिर की है. कानूनी विशेषज्ञ अंजलि भारद्वाज ने इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी मुहैया कराने में देरी करने पर निराशा जताते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले डोनर्स की जानकारी और से चंदा देने की के डोनर की जानकारी एसबीआई की मुंबई ब्रांच में उपलब्ध है. लेकिन बैंक ने अभी तक ये जानकारी सार्वजनिक नहीं की है. भारद्वाज ने बैंक के उस दावे की भी आलोचना की कि 22 हजार से अधिक की धनराशि वाले बॉन्ड के खरीदार और रिडीमर की जानकारी का मिलान करने में चार महीने का समय लगेगा. बैंक के इस दावे को अंजलि ने हास्यास्पद बताया है.
'इलेक्टोरल बॉन्ड का ब्योरा मुहैया कराने में जानबूझकर की जा रही देरी'
कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को सौंपने में देरी की आलोचना की. सिंघवी ने सरकार और एसबीआई पर आरोप लगाया कि वे इस जानकारी को जानबूझकर छिपाने का प्रयास कर रहे हैं. सिंघवी का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस मामले में जानबूझकर देरी की जा रही है. उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी जानकारी को सार्वजनिक करने के महत्व पर जोर दिया.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और वकील मनीष तिवारी ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप कर इस मामले में एसबीआई की टालमटोली रोकने की बात की. तिवारी ने पारदर्शिता बरतने पर जोर देते हुए कहा कि वोटर्स को पता होना चाहिए किए किन-किन पार्टियों को चंदा मिला है.
वरिष्ठ वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वो एसबीआई का इस्तेमाल कर लोकसभा चुनाव होने तक इलेक्टोरल बॉन्ड के डोनर्स की जानकारी उजागर नहीं करना चाहती. उन्होंने कहा कि अगर इस तरह की जानकारी लोकसभा चुनाव से पहले जारी कर दी जाती है तो कई रिश्वत देने वाले एक्सपोज होंगे कि वे किस तरह सरकारी कॉन्ट्रैक्ट हासिल करने के लिए रिश्वत दे रहे हैं.
क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
सुप्रीम कोर्ट ने बीते फरवरी में इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि ये संविधान के तहत सूचना के अधिकार, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना की कानूनी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया था.
अदालत ने अपने फैसले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को निर्देश दिया कि वो खरीदे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड का डाटा चुनाव आयोग के साथ शेयर करे. साथ ही बॉन्ड खरीदने की तारीख, बॉन्ड खरीदने वाले का नाम और उसकी वैल्यू. इसके अलावा किस राजनीतिक दल ने उस बॉन्ड को भुनाया है. ये सभी डेटा बैंक को चुनाव आयोग को 12 अप्रैल, 2019 से अब त खरीदे गए सभी बॉन्ड का विवरण साझा करना होगा.
बता दें कि चुनावी बॉन्ड योजना के शुरू होने के बाद से ही सवालों के घेरे में थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने जब इसे असंवैधानिक करार दिया है तो चर्चा है कि, अब सरकार इसके लिए विकल्प की तलाश कर रही है.
2018 में आई थी इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम
इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को 2018 में लाया गया था. हालांकि, 2019 में ही इसकी वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिल गई थी. तीन याचिकाकर्ताओं ने इस स्कीम के खिलाफ याचिका दायर की थी. वहीं, केंद्र सरकार ने इसका बचाव करते हुए कहा था कि इससे सिर्फ वैध धन ही राजनीतिक पार्टियों को मिल रहा है. साथ ही सरकार ने गोपनीयता पर दलील दी थी कि डोनर की पहचान छिपाने का मकसद उन्हें राजनीतिक पार्टियों के प्रतिशोध से बचाना है.
नलिनी शर्मा