दिल्ली के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर नेपाली नागरिक शांभवी अधिकारी को बर्लिन जाने से रोकने का मामला सुर्खियों में है. कुछ स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स ने इसे नेपाली नागरिकों के प्रति भारतीय इमिग्रेशन अफसरों का भेदभाव बताया था. लेकिन केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि भारतीय आव्रजन विभाग की इसमें कोई भूमिका नहीं थी.
मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि शांभवी अधिकारी की आगे की यात्रा रोकने का निर्णय संबंधित एयरलाइन कंपनी ने वीजा वैधता और गंतव्य देश के नियमों के आधार पर लिया था. केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा, 'यह मामला आव्रजन या भेदभाव से जुड़ा नहीं है. नेपाल हमारा सबसे करीबी पड़ोसी है. लाखों नेपाली नागरिक बिना वीजा भारत आते-जाते हैं. हमारी खुली सीमा और मैत्री संधि इसका प्रमाण है.'
'भारत-नेपाल संबंध मजबूत बने रहेंगे'
गृह मंत्रालय के प्रवक्ता ने आगे कहा, 'मीडिया से हम अपील करते हैं कि तथ्यों की पूरी जांच के बाद ही खबरें प्रकाशित की जाएं ताकि दोनों देशों के बीच गलतफहमी न फैले. यह पूरी तरह एयरलाइन कंपनी का निर्णय था. ट्रांजिट यात्रियों को भारतीय इमिग्रेशन क्लियरेंस की आवश्यकता नहीं होती. नेपाल के नागरिकों के प्रति भारत में कोई भेदभाव नहीं है. भारत-नेपाल संबंध मजबूत और सौहार्दपूर्ण बने रहेंगे.'
क्या था पूरा मामला?
शांभवी अधिकारी एयर इंडिया की फ्लाइट से काठमांडू से दिल्ली पहुंची थीं और वहां से कतर एयरवेज की फ्लाइट से बर्लिन जाना चाहती थीं. लेकिन कतर एयरवेज ने उनके वीजा की वैधता और जर्मनी के प्रवेश नियमों का हवाला देकर उन्हें आगे की यात्रा की अनुमति नहीं दी. एयरलाइन ने कहा कि गंतव्य देश में प्रवेश की गारंटी नहीं होने पर बोर्डिंग नहीं दी जा सकती.
ट्रांजिट यात्रियों का नियम
ट्रांजिट यात्री से मतलब ऐसे व्यक्ति से है जो अपनी यात्रा के दौरान किसी दूसरे स्थान से होकर गुजरता है, जहां वह अपनी यात्रा पूरी करने के लिए थोड़ी देर रुकता है. इसमें यात्री एयरपोर्ट परिसर से बाहर नहीं निकलता. अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में ट्रांजिट यात्री भारतीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं करते और वह एयरपोर्ट एरिया में ही रहते हैं. इसलिए उन्हें भारतीय इमिग्रेशन से गुजरना नहीं पड़ता. पूरी प्रक्रिया एयरलाइन और गंतव्य देश के नियमों पर निर्भर करती है. इस मामले में भी यात्री शांभवी अधिकारी ने भारतीय क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया था और एयरलाइन कंपनी कतर एयरवेज ने ही उन्हें वापस भेज दिया था.
जितेंद्र बहादुर सिंह