धरती का तापमान बढ़ने की रफ्तार थम नहीं रही. इस नई स्टडी ने हालांकि उम्मीद की किरण दिखाई है. स्टडी के मुताबिक दुनिया अब भी इस सदी के अंत तक ग्लोबल टेंपरेचर यानी औसत वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे ला सकती है लेकिन इसके लिए देशों को तुरंत और बेहद सख्त कदम उठाने होंगे.
क्या कहती है रिपोर्ट?
ये स्टडी (Rescuing 1.5°C: New Evidence on Highest Possible Ambition to Deliver the Paris Agreement) नाम से बर्लिन की क्लाइमेट एनालिटिक्स संस्था ने जारी की है. इसमें कहा गया है कि अगर दुनिया तेजी से इलेक्ट्रिफिकेशन (बिजली आधारित सिस्टम), रिन्यूएबल एनर्जी (सौर और पवन ऊर्जा) का विस्तार और फॉसिल फ्यूल (कोयला, तेल, गैस) का इस्तेमाल खत्म करने जैसे बड़े कदम उठाए तो 2040 के आसपास ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकना संभव है.
रिपोर्ट के हाइएस्ट पॉसिबल एम्बिशन (HPA) मॉडल के मुताबिक तापमान 2040 तक लगभग 1.7°C तक बढ़ेगा और फिर 2100 तक ये घटकर करीब 1.2°C रह जाएगा.
क्या बदलना होगा?
दुनिया को 2045 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 'नेट जीरो' पर लाना होगा यानी अभी जितना उत्सर्जन हो उतना ही सोखने की क्षमता भी बनानी होगी. साथ ही सभी ग्रीनहाउस गैसें 2060 तक खत्म करनी होंगी.
साल 2050 तक दुनिया की दो-तिहाई ऊर्जा बिजली से आएगी जिसमें 90% हिस्सा सोलर और विंड एनर्जी से होना चाहिए. कोयले का इस्तेमाल 2040 तक, गैस का 2050 तक और तेल का 2060 तक खत्म करना होगा. विकसित देश 2050 तक फॉसिल फ्यूल फ्री होंगे और बाकी दुनिया 2070 तक.
2030 तक मीथेन गैस उत्सर्जन में 20% और 2035 तक 30% की कमी लानी होगी. CO₂ हटाने वाली तकनीकें जैसे Direct Air Capture, 2050 तक हर साल 5 अरब टन CO₂ सोखने में सक्षम होनी चाहिए.
अब तक की स्थिति क्या है?
2015 में हुए पेरिस समझौते में तय किया गया था कि वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे और कोशिश करके 1.5°C तक सीमित रखना है. लेकिन अब तापमान पहले ही 1.3°C तक पहुंच चुका है. 2024 अब तक का सबसे गर्म साल रहा और पहली बार औसत तापमान 1.5°C की सीमा पर पहुंचा.
वैज्ञानिकों की चेतावनी
क्लाइमेट एनालिटिक्स के CEO बिल हेयर ने कहा कि 1.5°C की सीमा पार करना राजनीतिक नाकामी है और इससे पृथ्वी पर भारी नुकसान और खतरनाक मोड़ (tipping points) आ सकते हैं. लेकिन अब भी हमारे पास मौका है कि सदी के अंत तक इसे फिर से 1.5°C से नीचे लाया जाए. रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि 1.5°C की यह सीमा करीब चार दशकों तक पार रह सकती है जिससे गरीब और कमजोर देशों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा.
साथ ही रिपोर्ट ये उम्मीद भी देती है कि अगर तुरंत और तेज़ कदम उठाए जाएं जैसे ग्रीन एनर्जी और बैटरी टेक्नोलॉजी का विस्तार तो स्थिति को सुधारा जा सकता है. क्लाइमेट एनालिटिक्स के वरिष्ठ विशेषज्ञ नील ग्रांट ने कहा कि पिछले पांच साल हमने गंवा दिए लेकिन इन वर्षों में रिन्यूएबल एनर्जी और बैटरियों की टेक्नोलॉजी में जो क्रांति आई है, वही अब हमारी उम्मीद की किरण है. अभी मौका है लेकिन समय तेजी से निकल रहा है.
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