गर्भवती पत्नी का हत्यारा समय से पहले होगा रिहा, कोर्ट ने कहा- पुलिसकर्मी होने के कारण नहीं रोका जा सकता

बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक पुलिसकर्मी द्वारा गर्भवती पत्नी की हत्या के मामले में महाराष्ट्र जेल प्राधिकरण के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें दोषी को समय से पहले रिहाई का लाभ देने से मना किया गया था. कोर्ट ने कहा कि पुलिसकर्मी होने के आधार पर उसे रिहाई से वंचित नहीं किया जा सकता.

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बॉम्बे उच्च न्यायालय (फाइल फोटो) बॉम्बे उच्च न्यायालय (फाइल फोटो)

विद्या

  • मुंबई,
  • 03 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:11 PM IST

बॉम्बे हाई कोर्ट ने गर्भवती पत्नी की हत्या के दोषी पुलिसकर्मी प्रदीप सिंह ठाकुर की समय से पहले रिहाई का रास्ता साफ कर दिया है. कोर्ट ने महाराष्ट्र जेल प्राधिकरण के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें ठाकुर को रिहाई का लाभ देने से मना किया गया था.  

यह मामला 2001 का है, जब प्रदीपसिंह ठाकुर ने दहेज की मांग पूरी न होने पर अपनी गर्भवती पत्नी की गला दबाकर हत्या कर दी थी. निचली अदालत ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे हाई कोर्ट ने उम्रकैद में बदल दिया.

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राज्य का तर्क  

महाराष्ट्र सरकार ने यह कहते हुए ठाकुर की समय से पहले रिहाई का विरोध किया कि वह एक पुलिसकर्मी थे और उनके द्वारा पत्नी की हत्या का अपराध सामान्य हत्या से अधिक गंभीर है. राज्य ने इसे 'असाधारण हिंसा और क्रूरता' का मामला बताया और कहा कि ऐसे अपराध के लिए दोषी को 14 साल बाद रिहाई का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए.  

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कोर्ट का फैसला  

इस मामले पर फैसला सुनाते हुए दो जजों की पीठ ने कहा कि केवल पुलिसकर्मी होने और गर्भवती पत्नी की हत्या करने भर से ठाकुर को रिहाई के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने गवाहों के बयान और चोटों की प्रकृति का अध्ययन करते हुए कहा कि हत्या असाधारण हिंसा या क्रूरता का मामला नहीं है.  

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कोर्ट ने पाया कि मृतका के शरीर पर केवल गला दबाने के निशान और एक खरोंच थी. ऐसे में यह अपराध केवल पूर्वनियोजित हत्या का मामला है, जिसे असाधारण हिंसा की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता. कोर्ट ने कहा कि ठाकुर 22 साल की सजा पूरी करेंगे, जिसमें remission (समय से पहले रिहाई) का लाभ भी शामिल होगा. 

इससे पहने उसने अपने अपराध की सजा में remission (समय से पहले रिहाई) का लाभ पाने के लिए श्रेणीकरण की मांग की थी. उसकी यह अपील 14 सितंबर, 2018 को जेल प्राधिकरण द्वारा खारिज कर दी गई थी. इसके बाद प्रदीप सिंह ठाकुर ने हाई कोर्ट का रुख किया था.

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