बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने गुरुवार को 2014 में अहिल्यानगर में बिजनेसमेन जितेंद्र भाटिया की सनसनीखेज हत्या के मामले में प्रदीप उर्फ शप्पू जनार्दन कोकाटे की दोषसिद्धि को बरकरार रखा और मृतक की पत्नी दिव्या उर्फ हेमा भाटिया को बरी कर दिया. बेंच ने कहा कि संदेह, चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो, सबूत की जगह नहीं ले सकता."
निचली अदालत ने दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. जस्टिस नितिन बी. सूर्यवंशी और जस्टिस संदीपकुमार सी. मोरे की बेंच ने कोकाटे की अपील खारिज कर दी, लेकिन दिव्या की अपील को स्वीकार कर लिया. बेंच ने कहा कि सत्र न्यायालय द्वारा उसे दी गई सजा कमजोर सबूतों पर आधारित थी.
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, कोकाटे ने दिव्या के साथ अवैध संबंध बनाए और उसके साथ मिलकर जितेंद्र को खत्म करने की साजिश रची. उसने जितेंद्र की दुकान 'मोहन ट्रंक डिपो' में उस पर गोली चलाने से पहले भाटिया परिवार को बार-बार फिरौती के लिए फोन भी किए. जांचकर्ताओं ने जबरन वसूली में इस्तेमाल एक देसी पिस्तौल और सिम कार्ड बरामद किए.
'कोई ठोस सबूत नहीं मिला...'
कोकाटे के वकील कुलदीप कहलेकर ने तर्क दिया कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 65-बी के तहत उचित प्रमाणीकरण के बिना कॉल रिकॉर्ड अस्वीकार्य हैं और पिस्तौल की बरामदगी संदिग्ध है. लेकिन बेंच ने इसे खारिज करते हुए कहा, "यकीनन घातक गोली अपीलकर्ता प्रदीप ने उसी पिस्तौल से चलाई थी, जो उसकी निशानदेही पर बरामद की गई थी." कोर्ट ने एक चश्मदीद पर भी भरोसा किया, जिसने उसे घटना से ठीक पहले और तुरंत बाद हथियार के साथ देखा था.
दिव्या के मामले में जजों को षड्यंत्र का कोई ठोस सबूत नहीं मिला और उन्होंने माना कि निचली अदालत ने सबूतों का निष्पक्ष विश्लेषण नहीं किया. बेंच ने कहा, "निचली अदालत ने केवल इस तथ्य के आधार पर सीधा नतीजा निकाला है कि इन अपीलकर्ताओं के बीच प्रेम संबंध थे और इसलिए, उन्होंने एक-दूसरे के साथ मिलकर जितेन्द्र की हत्या की साजिश रची."
अभियोजन पक्ष का तर्क था कि प्रदीप के पास से 10 हजार रुपए नकद मिले थे, जो कथित तौर पर दिव्या ने उसे दिए थे. इस तरह, अभियोजन पक्ष ने यह सुझाव दिया था कि दिव्या ने अपने पति की हत्या के लिए प्रदीप को हथियार खरीदने के लिए नकद राशि उपलब्ध कराई थी.
यह भी पढ़ें: 'राहत के लिए मुंबई हाई कोर्ट जाएं', CBI से समन मामले में समीर वानखेड़े को दिल्ली HC की सलाह
हालांकि, बेंच ने कहा कि अगर दिव्या ने प्रदीप को हथियार खरीदने के लिए इतना कैश दी होती, तो प्रदीप उसे खर्च कर देता. यह जानकर आश्चर्य होता है कि प्रदीप ने उस राशि का इस्तेमाल नहीं किया क्योंकि उसने पहले ही किसी अन्य अभियुक्त से पिस्तौल प्राप्त कर ली थी.
बेंच ने आगे कहा, "अपीलकर्ताओं के बीच अवैध संबंधों के अलावा, दिव्या के आचरण के संबंध में रिकॉर्ड में कोई अन्य साक्ष्य नहीं है, जिससे यह स्थापित हो सके कि उसने वास्तव में अपने पति की हत्या की साजिश रचने में प्रदीप की मदद करने में कोई सक्रिय भूमिका निभाई थी. इसके विपरीत, यह भी अनुमान लगाया जा सकता है कि दिव्या के साथ अपने संबंध के कारण प्रदीप ने अपने पति की हत्या का स्वतंत्र निर्णय लिया होगा, जो दिव्या के मुताबिक उसे शारीरिक और मानसिक रूप से परेशान कर रहा था. रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्य दिव्या की ओर से किसी भी प्रत्यक्ष कृत्य का संकेत नहीं देते हैं."
बेंच ने पाया कि जितेंद्र की हत्या की साजिश रचने में दिव्या की कोई सक्रिय भूमिका नहीं है, अभियोजन पक्ष ने सभी उचित संदेहों से परे यह साबित कर दिया है और कहा, "इसलिए, वह निश्चित रूप से संदेह का लाभ पाने की हकदार है."
विद्या