सामने है 2027 का विधानसभा चुनाव, और UP में प्रदेश अध्यक्ष पर फंसा पेंच... जानें क्या है पूरा माजरा

उत्तर प्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में पेंच फंस गया है. राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले यूपी का प्रदेश अध्यक्ष चुनना बीजेपी के लिए काफी अहम हो गया है. अखिलेश यादव के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठजोड़ के कारण बीजेपी पर दबाव बढ़ा है. पार्टी एक सशक्त पिछड़ा या दलित चेहरा तलाश रही है जिससे यूपी की राजनीतिक चुनौती का सामना किया जा सके.

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पीएम मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह पीएम मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह

कुमार अभिषेक

  • नई दिल्ली,
  • 22 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 9:37 PM IST

बीजेपी में इस वक्त राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर जो असमंजस की स्थिति बनी हुई है, उसके पीछे उत्तर प्रदेश में नए प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव में फंस रही पेंच भी एक वजह मानी जा रही है. जब तक उत्तर प्रदेश और कुछ अन्य राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्षों की घोषणा नहीं हो जाती, तब तक राष्ट्रीय अध्यक्ष की ताजपोशी भी टलती नजर आ रही है.

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हालांकि, बीजेपी के कुछ जानकारों का मानना है कि राष्ट्रीय और प्रदेश अध्यक्ष के चुनावों को जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, दोनों प्रक्रियाएं अलग-अलग हैं. बावजूद इसके, उत्तर प्रदेश को लेकर पार्टी की अतिरिक्त सतर्कता साफ दिखाई दे रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद से ही पार्टी ऐसा कोई भी कदम नहीं उठाना चाहती, जिससे 2027 के विधानसभा चुनाव में गलत संदेश जाए.

सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष चुनने का जोखिम नहीं उठा रही पार्टी

बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अखिलेश यादव का PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठजोड़ है. यही वजह है कि पार्टी अब तक कोई सवर्ण प्रदेश अध्यक्ष चुनने का जोखिम नहीं उठा रही. अखिलेश यादव लगातार पिछड़े और दलित वर्ग के मुद्दों को लेकर बीजेपी पर दबाव बना रहे हैं. उनकी रणनीति ने बीजेपी को नेतृत्व चयन में उलझा दिया है.

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दलित वोट बैंक को लेकर भी बीजेपी पर दबाव बना हुआ है, खासकर रामजीलाल सुमन के घर पर हमले और करणी सेना द्वारा आगरा में तलवारें लहराने जैसी घटनाओं के बाद पार्टी रक्षात्मक हो गई है. अखिलेश यादव हर रोज बीजेपी सरकार को "ठाकुरों की सरकार" कहकर निशाना बना रहे हैं और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के फैसलों को ठाकुरवाद से जोड़ रहे हैं. ऐसे माहौल में प्रदेश अध्यक्ष पर फैसला टालना ही पार्टी के लिए सुरक्षित विकल्प लग रहा है.

OBC या दलित नेता की तलाश में है बीजेपी?

पार्टी सूत्रों की मानें तो बीजेपी 2027 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए एक ऐसे मजबूत और सक्रिय OBC या दलित नेता की तलाश में है जो अखिलेश यादव के PDA कार्ड की काट बन सके. इस मसले पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और वरिष्ठ नेता राजनाथ सिंह से विचार-विमर्श हो चुका है. संगठन स्तर पर भी कई नामों पर सुझाव मंगाए गए हैं, लेकिन अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को ही लेना है.

OBC वर्ग से जिन नामों की चर्चा है, उनमें लोध बिरादरी से आने वाले पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह और केंद्रीय मंत्री बीएल वर्मा सबसे आगे हैं. इसके अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पसंद माने जा रहे जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह (कुर्मी बिरादरी) का नाम भी चर्चा में है. ब्राह्मण चेहरे के तौर पर दिनेश शर्मा का नाम योगी की पसंद बताया जा रहा है.

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OBC नेता को कमान मिलने की संभावना सबसे ज्यादा प्रबल

OBC वर्ग से ही साध्वी ज्योति निरंजन और बाबूराम निषाद के नाम भी चर्चा में हैं. वहीं, दलित वर्ग से विद्यासागर सोनकर और विनोद सोनकर के नामों पर भी मंथन चल रहा है. खास बात यह है कि बीजेपी दलितों में पासी बिरादरी को भी साधने की रणनीति पर विचार कर रही है. बीजेपी के अंदरूनी जानकारों की मानें तो इस बार प्रदेश अध्यक्ष का पद किसी OBC नेता को मिलने की संभावना सबसे ज्यादा है.

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