सुप्रीम कोर्ट में मथुरा के बांके बिहारी मंदिर के मैनेजमेंट को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई. कोर्ट ने मथुरा के जिलाधिकारी (DM), मंदिर मैनेजमेंट कमेटी और यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है. यह याचिका गोसाईं (पुजारियों) की समिति द्वारा दायर की गई है. याचिका में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित उच्चाधिकार प्राप्त मंदिर प्रबंधन समिति के कुछ फैसलों को चुनौती दी गई है.
याचिका में मंदिर के दर्शन के समय को बढ़ाए जाने, देहरी पूजा को रोके जाने और कमेटी में मनमाने तरीके से गोस्वामी की नियुक्ति होने का आरोप लगाया गया है.
मंदिर मैनेजमेंट कमेटी के वकील श्याम दीवान ने कहा कि दर्शन के वक्त में बदलाव किया गया है, लेकिन इसके लिए थोड़ी संवेदनशीलता की ज़रूरत होती है. उन्होंने कहा कि समयों में बदलाव का मतलब है- अनुष्ठानों में बदलाव, जिसमें देवता के आराम का समय भी शामिल है.
देहरी पूजा का क्या महत्व है?
गोसाईं समिति ने कहा कि देहरी पूजा एक सदियों पुराना अनुष्ठान है, जिसे गोसाईं द्वारा गुरु शिष्य परंपरा के हिस्से के रूप में किया जाता है. 'देहरी' को देवता के चरण के रूप में देखा जाता है और इसकी पूजा फूलों और इत्र से की जाती है. यह पूजा एक विशिष्ट प्रवेश द्वार पर और केवल मंदिर बंद होने के समय की जाती है, जिससे देवता विश्राम कर सकें. उन्होंने आरोप लगाया कि नई प्रबंधन समिति ने इस पूजा को भीड़ प्रबंधन में हस्तक्षेप बताकर बंद कर दिया है.
यह भी पढ़ें: मथुरा: बांके बिहारी का खजाना 54 साल बाद खोला गया, पीतल के बर्तन, बक्से सहित मिले ये सामान
CJI ने VIP दर्शन पर उठाए सवाल...
मुख्य न्यायाधीश (CJI) ने सवाल किया कि अगर मंदिर लंबे वक्त तक खुला रहता है, तो समस्या क्या है? इस पर वकील श्याम दीवान ने कहा कि मंदिर खोलने और बंद करने के समय में देवता को 'जगाने' और उनके 'सोने' का अनुष्ठान शामिल होता है.
CJI ने आशंका जताते हुए कहा कि, "यह वह समय है, जब तथाकथित अमीर लोगों को (जो मोटी रकम दे रहे हैं) अनुष्ठान करने की छूट दी जाती है. वे उस वक्त इस प्रथा में शामिल होते हैं, जब वे उन लोगों को अनुमति देते हैं, जो विशेष पूजा करने के लिए भुगतान कर सकते हैं."
यह भी पढ़ें: मथुरा: बांके बिहारी का खजाना 54 साल बाद खोला गया, पीतल के बर्तन, बक्से सहित मिले ये सामान
भगदड़ और अनुष्ठानों की चिंता
वकील श्याम दीवान ने कहा कि वे भगदड़ जैसी स्थिति नहीं पैदा होने देना चाहते हैं, इसलिए भक्तों की भीड़ पर नियंत्रण रखना होगा. उन्होंने कहा कि यह मुद्दा केवल धर्मनिरपेक्ष कार्यों से संबंधित समय का नहीं है, बल्कि यह अनुष्ठानों और पूजा के समय से जुड़ा हुआ है.
CJI ने यह भी कहा कि जब देवता विश्राम कर रहे हों, उस वक्त किसी भी तरह का कदाचार जैसा आचरण नहीं होना चाहिए. कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के मौखिक अनुरोध पर उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी को भी प्रतिवादी के रूप में शामिल करने का आदेश दिया.
यह भी पढ़ें: बांके बिहारी मंदिर, खजाना और सांप... आधी सदी से बंद ताले के पीछे का क्या है तिलिस्म, जानें पूरी कहानी
अनीषा माथुर / संजय शर्मा