दो बर्थ सर्टिफिकेट, दो चुनाव, दो बार अयोग्यता... बेटे का वो केस जिसमें आजम फैमिली को हो गई सजा

आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम पर दो अलग-अलग बर्थ सर्टिफिकेट रखने का आरोप हैं. एक सर्टिफिकेट 28 जून 2012 को जारी हुआ जो रामपुर नगर पालिका ने जारी किया. इसमें अब्दुल्ला के जन्मस्थान के रूप में रामपुर को दिखाया गया है. जबकि दूसरा जन्म प्रमाण पत्र जनवरी 2015 में जारी किया गया. इसमें अब्दुल्ला के जन्मस्थान को लखनऊ दिखाया गया है.

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फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम फैमिली के सजा हुई है (फाइल फोटो) फर्जी बर्थ सर्टिफिकेट मामले में आजम फैमिली के सजा हुई है (फाइल फोटो)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 अक्टूबर 2023,
  • अपडेटेड 11:11 PM IST

समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान, उनकी पत्नी तज़ीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम को बुधवार को जेल भेज दिया गया. अदालत ने उन्हें 2019 के फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में दोषी ठहराया और सात साल की सजा सुनाई है. मामले में अभियोजन पक्ष का प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्व जिला सरकारी वकील अरुण प्रकाश सक्सेना ने कहा कि तीनों को पुलिस जीप में रामपुर जिला जेल ले जाने से पहले कुछ घंटों के लिए न्यायिक हिरासत में अदालत कक्ष के अंदर रखा गया था.

साल 2019 का है फर्जी प्रमाण पत्र मामला
आजम खान के लिए साल 2017 से ही थाना-कचहरी का दौर चल रहा है. उनके ऊपर भैंंस चोरी, पायल चोरी से लेकर जमीन कब्जाने और डकैती तक के मामले दर्ज हैं. फिर आया साल 2019 में फर्जी प्रमाण पत्र का मामला. इस मामले के पहले अध्याय का पटाक्षेप बुधवार को हुआ है. समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान, उनकी पत्नी तज़ीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम को बुधवार को जेल भेज दिया गया.

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अदालत ने उन्हें 2019 के फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में दोषी ठहराया और सात साल की सजा सुनाई है. जैसा कि भारत के न्याय विधान में अपने केस को बड़ी अदालतों में ले जाने और फैसले को चुनौती देने का अधिकार है, आजम खान के पास भी ये विकल्प खुला हुआ है, लेकिन अभी तो वह जेल गए हैं. 

अब्दुल्ला आजम पर लगे ये आरोप
दरअसल, आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम पर दो अलग-अलग बर्थ सर्टिफिकेट रखने का आरोप हैं. एक सर्टिफिकेट 28 जून 2012 को जारी हुआ जो रामपुर नगर पालिका ने जारी किया. इसमें अब्दुल्ला के जन्मस्थान के रूप में रामपुर को दिखाया गया है. जबकि दूसरा जन्म प्रमाण पत्र जनवरी 2015 में जारी किया गया. इसमें अब्दुल्ला के जन्मस्थान को लखनऊ दिखाया गया है.

बीजेपी नेता ने दर्ज कराया केस
इसको लेकर बीजेपी नेता आकाश सक्सेना ने अब्दुल्ला आजम के खिलाफ केस दायर किया था. इस मामले में आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत केस दर्ज किया गया था. केस में अब्दुल्ला के पिता आजम खान और मां तजीन फातिमा को भी आरोपी बनाया गया था. अब्दुल्ला पर पहले जन्म प्रमाण पत्र के आधार पर पासपोर्ट हासिल करने और विदेशी दौरे करने के लिए दूसरे प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने का भी आरोप है. इसके अलावा उन पर जौहर विश्वविद्यालय के लिए भी इसका उपयोग करने का आरोप है. आरोप है कि अब्दुल्ला आजम ने दोनों सर्टिफिकेट का सुविधानुसार इस्तेमाल किया.

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रामपुर स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में हुई सुनवाई
इस केस की सुनवाई रामपुर की स्पेशल एमपी-एमएलए कोर्ट में चल रही थी. आजम खान के वकील की तरफ से अर्जी लगाई थी कि केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए. हालांकि ये अर्जी कोर्ट ने खारिज कर दी थी. इसके बाद 18 अक्टूबर (बुधवार) को फेक बर्थ सर्टिफिकेट केस में अदालत ने आजम खान, तंजीन फातिमा और अब्दुल्ला आजम को सजा सुना दी.

अदालत ने सुनाई ये सजाएं
अदालत ने आईपीसी की धारा 467 के तहत दोषी पाए जाने पर तीनों को 15,000 रुपये के जुर्माने के साथ सात साल की कैद की सजा सुनाई. आईपीसी की धारा 468 के तहत तीन साल की कैद और प्रत्येक को 10,000 रुपये के जुर्माने की सजा दी गई. उन्हें आईपीसी की धारा 420 के तहत दोषी पाए जाने पर प्रत्येक को 10,000 रुपये का जुर्माना और प्रत्येक को 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया. आईपीसी की धारा 420 के तहत दोषी पाए जाने पर तीनों को दो साल की कैद और 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया. आईपीसी की धारा 120 बी के तहत दोषी पाए जाने पर तीनों को एक साल की कैद और 5,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया." 

जेल की सभी शर्तें चलेंगी समानांतर
उन्होंने कहा, "जेल की ये सभी शर्तें समानांतर चलेंगी, इसलिए अधिकतम सजा सात साल की मानी जाएगी और साथ ही कुल 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया जाएगा." जिला प्रशासन ने आजम खान के समर्थकों द्वारा किसी भी गैरकानूनी सभा पर रोक लगाने के लिए अदालत परिसर में विशेष सुरक्षा व्यवस्था की है. फैसले के बाद किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए शहर में विभिन्न स्थानों पर अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया था.

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अखिलेश यादव ने कही ये बात
फैसला आने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कन्नौज में पत्रकारों से कहा, ''हर कोई जानता है कि आजम खान को परेशान किया जा रहा है, क्योंकि उन्होंने एक विश्वविद्यालय बनाया और उनका धर्म अलग है. अखिलेश यादव ने कहा, "आजम खान पर लगातार इस तरह के हमले हो रहे हैं. एक बड़ी साजिश के तहत उनके साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है. बीजेपी नेता और बाहर से लाए गए कुछ अधिकारी पहले दिन से ही उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं."

आजम खान ने किया था प्रभाव का इस्तेमाल
भाजपा विधायक सक्सेना ने बुधवार को आरोप लगाया कि आजम खान ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और अपने बेटे को 2017 में
चुनाव लड़ने और विधायक बनने के योग्य बनाने के लिए जन्म प्रमाण पत्र जारी करवाया. उन्होंने कहा कि, साल 2017 में, अब्दुल्ला विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए योग्य नहीं थे, क्योंकि उनके पहले जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार वह 24 वर्ष के थे. आजम ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और अब्दुल्ला आजम का एक और जन्म प्रमाण पत्र तैयार करवाया, जिसमें उनकी उम्र 30 सितंबर 1990 के अनुसार दिखाई गई थीं. इस तरह वह 2017 का चुनाव लड़ने के योग्य हो गए. उन्होंने वह चुनाव जीत लिया.  सक्सेना ने कहा कि दो जन्म प्रमाणपत्रों के बारे में जानकारी मिलने के बाद उन्होंने शिकायत दर्ज कराई.

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हेट स्पीच में भी फंसे आजम खान
बता दें कि, आजम खान को पिछले साल विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था जब एक अदालत ने उन्हें 2019 के नफरत भरे भाषण मामले में तीन साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. खान ने 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में रामपुर सदर विधानसभा सीट से रिकॉर्ड 10वीं बार जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने रामपुर संसदीय सीट छोड़ दी, जिस पर उन्होंने 2019 में जीत हासिल की थी. आजम खान 10 बार के विधायक हैं और लोकसभा और राज्यसभा के लिए भी चुने गए थे. 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के टिकट पर सुआर निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले अब्दुल्ला आजम को इस साल फरवरी में मुरादाबाद की एक अदालत ने 2008 में एक लोक सेवक को गलत तरीके से रोकने और हमला करने के मामले में दोषी ठहराया था.

अब्दुल्ला आजम अयोग्य घोषित
मामले में दोषी ठहराए जाने और दो साल की जेल की सजा सुनाए जाने के दो दिन बाद, अब्दुल्ला आजम को उत्तर प्रदेश विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया. वह दोषसिद्धि पर रोक लगाने की मांग करते हुए हाई कोर्ट गए, जिसे अस्वीकार कर दिया गया. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (आरपीए), 1951 के प्रावधानों के तहत, दो साल या उससे अधिक की कैद की सजा पाने वाले किसी भी व्यक्ति को 'ऐसी सजा की तारीख से' अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा और जेल में समय बिताने के बाद अगले छह साल तक अयोग्य रखा जाएगा. 
 

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